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नय
३ पर्यायार्थिकनय सामान्य निर्देश
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पर्यायार्थिकनयका लक्षण ।
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यह वस्तु विशेषांशको एकत्वरूपसे ग्रहण करता
३ द्रव्यकी अपेक्षा विषयकी एकत्वता
१. पर्यायसे पृथक् द्रव्य कुछ नहीं ।
२. गुण गुणी में सामान्याधिकरण्य नहीं है ।
३. काक कृष्ण नहीं हो सकता !
४. सभी पदार्थ एक संख्यासे युक्त हैं ।
क्षेत्रकी अपेक्षा विषयकीकत
१. प्रत्येक पदार्थका अवस्थान अपनेमें ही है।
२. वस्तु अखण्ड व निरवयव होती है।
३. पलालदाह सम्भव नहीं ।
४. कुम्भकार संज्ञा नहीं हो सकती ।
कालकी अपेक्षा विषयको एकता१. केवल वर्तमान क्षणमात्र ही वस्तु है । * वर्तमान कालका स्पष्टीकरण |
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५. उत्पादव्यय सापेक्ष, ६. भेद कल्पना सापेक्ष, ७. अन्वय द्रव्याथिक, ८-६, स्वव पर चतुष्टय ग्राहक, १०. परमभारग्राही शुद्ध द्रव्यार्थिक ।
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-दे० नय /1II/५/७ ।
२. क्षण स्थायी अर्थ ही उत्पन्न होकर नष्ट हो जाता है।
काल की अपेक्षा एकत्व विषयक उदाहरण
१. कषायो भैषज्यम्; २. धान्य मापते समय ही
प्रस्थ संज्ञा; ३. कहीं से भी नहीं आ रहा हूँ ।
४. श्वेत कृष्ण नहीं किया जा सकता ।
५. क्रोधका उदय ही क्रोध कषाय है ।
६. पलाल दाह सम्भव नहीं; ७, पच्यमान पक्व । भावकी अपेक्षा विषयकी एकत्वता ।
किसी भी प्रकारका सम्बन्ध सम्भव नहीं ।
१. विशेष्य- विशेषण सम्बन्धः २ संयोग व समवायः ३. कोई किसीके समान नहीं; ४. ग्राह्यग्राहक सम्बन्ध ५ वाच्य वाचक सम्बन्ध सम्भव नहीं; ६. बन्ध्यबन्धक आदि अन्य कोई भी सम्बन्ध नहीं । कारण कार्य भाव सम्भव नहीं
१. कारण के बिना ही कार्य की उत्पत्ति होती है। २-३ विनाश व उत्पाद निर्हेतुक है।
यह नय सकल व्यवहारका उच्छेद करता है । पर्यायार्थिकका कचित् द्रव्यार्थिकरना।
-३० नम / III/५।
पर्यायार्थिकके चार मेद ऋजुसूत्रादि । इसमें स्वासम्भव निक्षेपोंका अन्तर्भाव
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-- दे० नय / III |
-दे० निक्षेप / २।
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शुद्ध व अशुद्ध पर्यायार्थिक निर्देश
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शुद्ध व अशुद्ध पर्यायार्थिकके लक्षण ।
२-३ पर्यायार्थिकनयके छह मेदोका निर्देश व लक्षण
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१ निश्चयनयका लक्षण निश्चित व सत्यार्थ ग्रहण |
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निश्चयनयका लक्षण अभेद व अनुपचार ग्रहण । निश्चयनयका लक्षण स्वाश्रय कथन निश्चयनयके भेद-शुद्ध व अशुद्ध
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शुद्ध निश्चयके लक्षण व उदाहरण
१. परमभावग्राहीकी अपेक्षा ।
२. क्षायिकभावग्राहीकी अपेक्षा । एकदेश शुद्ध निश्चयनयका लक्षण |
शुद्ध, एकदेश शुद्ध व निश्चयसामान्यमै अन्तर व इनकी प्रयोग विधि |
अशुद्ध निश्चयनयका लक्षण व उदाहरण | निश्चयन की निर्विकल्पता
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सूचीपत्र
१. अनादिनित्य २. सादिनित्य ३. चाण अनित्य, ४. सत्ता सापेक्ष नित्य कर्मोंपाधि निर ५. पेक्ष अनित्य, ६, कर्मोपाधिसापेक्ष । अशुद्ध पर्यायार्थिकनय व्यवहारनय है ।
- दे० नय / V/४ 1
निश्चय व्यवहारनय
निश्चयनय निर्देश
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शुद्ध व अशुद्ध निश्चयनय दध्यार्थिकके मेद हैं। निश्चयनय एक निर्विकल्प व वचनातीत है।
निश्चय नयके भेद नहीं हो सकते ।
शुद्धनिश्चय ही वास्तवमे निश्चयन है अशुद्ध निश्चयनय तो व्यवहार है।
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व्यवहारका निषेध ही निश्चयका वाच्य ह 1 -दे० नय / V/१/२ ६ निर्विकल्प होनेसे निश्चयनयमें नयपना कैसे सम्भव है ?
उदाहरण सहित तथा सविकल्प सभी नये व्यवहार हैं ।
३ निश्चयनयकी प्रधानता
निश्चयनय ही सत्यार्थ है।
निश्चयनय साधकतम व नवाधिपति है।
निश्चयनय हो सम्यक्त्वका कारण है।
निश्चयनय ही उपादेय है।
8 व्यवहारनय सामान्य निर्देश
१
व्यवहारनय सामान्यके लक्षण१. संग्रह] गृहीत अर्थ निधिपूर्वक भेद । २. अभेद वस्तु गुणगुणी आदिरूप भेद । २. भिन्न पदार्थों कारकादिरूप अभेदोपचार | ४. लोकव्यवहारगत वस्तुविषयक-व्यवहारनय सामान्यके उदाहरण१. संगृहीत अर्थ मे मेद करने सम्बन्धी ।
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