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नंदीश्वर दीप
नंदीश्वर द्वोपय मध्यलोकका अहम द्वीप है (दे० सोक /४/५) इस द्वीपमें १६ नापियों, ४ अनगिरि १६ दधिल और १२ रविकर नामके कुल ५२ पर्वत हैं। प्रत्येक पर्वतपर एक-एक चैत्यालय है । प्रत्येक अाहिकपर्व अर्थात् कार्तिक, फाल्गुन में आषाढ मासके अन्तिम आठ-आठ दिनों में देवलोग उस द्वीपमें जाकर तथा मनुष्यलोग अपने मन्दिरों व भैरवायोगे उस द्वीप की स्थापना करके खून भक्ति-भाव से इन ५२ पायोंकी पूजा करते हैं। इस द्वीपकी विशेष रचनाके लिए दे० लोक/४/५
नंदीश्वर पंक्तिव्रत- एक अंजनगिरिका एक बेला, ४ दधिमुख
के ४ उपवास और आठ दधिमुखके उपवास । इस प्रकार चारों
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दिशाओं सम्बन्धी ४ बेला व ४८ उपवास करे। वीचके ५२ स्थानोंमें एक-एक पारणा करे। इस प्रकार यह व्रत कुल १०८ दिनमें पूरा होता है। ॐ ह्रीं मन्दीवरद्वीपस्य द्वारा राज्जिनालयेभ्यो नम:" इस मन्त्रका त्रिकाल जाप्य करे । (ह. पु / ३४ / ८४ ) ( वसु श्रा / ३७३-३७५); (विधान संग्रह / ११०) (किशनसिंह कियाकोश)। नंदीश्वर सागर नन्दीश्वरके आगेवाला सागर दे०
लोक/५/१।
नंदीसंघ - एक संघ दे०७/०६/
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नंदीसूत्र बलभी बचना के समय वि[सं० ५१३ मे र
(जे. सा. इ./१/३१०) ।
नंदोत्तरा - १. नन्दीश्वरद्वीपकी पूर्व दिशामें स्थित एक वापी । - दे० लोक ५/ ११२. मानुषोत्तर पर्वतके लोहिताक्षकूटका स्वामी एक कुमार देवदे० लोक२/१०३. रुचक पर्वत निवासिनी एक दिक्कुमारी देवी- दे० लोक /५/१३ |
५०४
१.
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नंद्यावर्त- सौधर्म स्वर्गका २६ वॉ पटल दे० स्वर्ग/५/२, २. रुचक पर्व एक कूट दे०सो/५/१३ पर्वतका । नकुल - ( पा. पु. / सर्ग / श्लोक ) । मद्री रानीसे राजा पाण्डुका पुत्र था। (८/१७४-१७५) । ताऊ भीष्मसे तथा गुरु द्रोणाचार्य धनुषविद्या प्राप्त की । (८/२०८-२१४) । (विशेष दे० पाण्डव ) । अन्तमें अपना पूर्वभव सुन दीक्षा धारण कर सी (२६/१२) घोर तप किया (२०/ १७-५१ ) । दुर्योधन के भानजे कुर्युधर द्वारा शत्रुंजयगिरि पर्वतपर घोर उपसर्ग सहा और सर्वार्थसिद्धि गये (२५/ ५२-१३६) । पूर्व भव नं. २ में यह धनश्री ब्राह्मणी था । (२३१८२) । और पूर्व भव नं. १ में अच्युतस्वर्ग में देव (२२/९९४) वर्तमान भवने नकुल हुए। (२४/ ७७)।
नक़रवा - भरतक्षेत्र आर्यखण्डकी एक नदी । -
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- दे० मनुष्य / ४ ।
नक्षत्र - तावतारकी पट्टावलीके अनुसार आप प्रथम ११ अंगधारी ये समय पी. नि. २४४२६३ ई. पू./९८२-२६४)। दृष्टनं. ३ के अनुसार बी. नि. ४०५४९० ३० इतिहास ४/४
नक्षत्र - १. नक्षत्र परिचय तालिका
नाम
नं० (ति.प./७/
२६-२०)
(वि. सा.
१
कृत्तिका
२ रोहिणी
३ मृगशिरा
४ वा
५
६
و
१२
४३२-३३)
१३
पुनर्वसु
पुष्य
आश्लेषा
Ε मघा किता
६ पूर्वाफाल्गुनी भग
१० उत्तराफाल्गु.,
१५
१४ विशाखा
अनुराधा ज्येष्ठा
१६
१११ हस्त दिनकर
चित्रा त्वष्टा
स्वाति
अनिल
देवता (त्रि.सा./
४३४-३३ )
अग्नि
प्रजापति
सोम
हन्द्राग्नि
मित्र
इन्द्र
१७ मूल नैति
१८ पूर्वाषाढा जल
१६ उत्तराषाढा विश्व अभिजित् ब्रह्मा
२०
२१ श्रवण विष्णु २१ घनिष्ठा
वसु वरुण
२३ शतभिषा
२४ पूर्वाभाद्रपदा अज
२८ वी २७ अश्विनी
२८
रुद्र
दिति
देवमन्त्री
(बृहस्पति)
सर्प
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अर्यमा
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पूषा अश्व
भरणी यम
आकार
(ति.प./०/४६५
४६७ ) (त्रि. सा. / ४४२
४४४ )
बीजना
गाड़ीकी उद्धि हिरणका शिर
दीप
तोरण
छत्र
चीटी आदि कृत मिट्टीला पंज
गोमूत्र
शर युगल
हाथ
कमल
दीप
अधिकरण
(अहिरिणी)
सेना
हाथीका अगला शरीर
२५ उत्तराभाद्रप, अभिवृद्धि हाथीका पिछला
शरीर नौका
घोड़ेका शिर तुम्हा
हार
वीणा
सींग
बिच्छू
जीर्ण वापी
सिहका शिर
हार्थीका शिर
मृदंग पतिपक्षी
मूल तारोका प्रमाण
(ति.प./७/४६३-४६४ ) (त्रि. सा. (२४०-४४१)
परिवार तारीका प्रमाण
६
४
२
२
१
१
४
६
३
ह
४
४
३
३
५
१११
२
२
३२ ५
३
नक्षत्र
4646
५५५५
३३३३
११११
६६६६
३३३३
६८५६
४४४४
२२२२
२२२२
५५५५
११११
१९११
४४४४
६६६६
३३३३
६६६६
४४४४
४४४४
( त्रि. सा. / ४४५ )_
३३३३
३३३३
५५५५
१२३३२१
२२२२
२२२२
२. नक्षत्रोंके उदय व अस्तका क्रम
ति. प./७/४६३ एदि मघा मज्झन्हे कित्तियरिक्वस्य अत्थमणसमए । उदर अराहा एवं जाओ २४६३ कृतिका नक्षत्रके अस्तमन कालमें मघा मध्याह्नको और अनुराधा उदयको प्राप्त होता है. इसी प्रकार क्षेत्र नक्षत्रोंके भी उदयादिको जानना चाहिए (विशे पार्थ - जिस समय किसी विवक्षित नक्षत्रका अस्तमन होता है, उस समय उससे आठवाँ नक्षत्र उदयको प्राप्त होता है। इस नियम के अनुसार कृत्तिकादिकके अतिरिक्त शेष नक्षत्रोंके भी अस्तमन मध्याह्न और उदयको स्वयं ही जान लेना चाहिए। )
३५५५२
५५५५
३३३३
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