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द्वैत
धनुष
ही एक भेद है। उसे द्वेष कहते है। २. असह्यजनोंमें तथा असह्य- पदार्थों के समूहमें वैरके परिणाम रखना द्वेष कहलाता है। और भी दे० राग/२।
१. द्वेषके भेद क.पा.१/१-१४/चूर्ण सूत्र/६२२६/२७७ दोसो णिक्विवियवो णामदोसो
दुवदोसो दव्वदोसो भावदोसो चेदि । = नामदोष, स्थापनादोष, द्रव्यदोष और भावदोष इस प्रकार दोष ( द्वेष ) का निक्षेप करना
चाहिए । (इनके उत्तर भेदोके लिए दे० निक्षेप)। दे० कषाय/४ क्रोध, मान, अरति, शोक, भय, व जुगुप्सा ये छह कषाय द्वेषरूप हैं।
३. द्वेषके भेदोंके लक्षण क.पा.१/१-१४/चूर्ण सूत्र/१२३३-२३३/२८०-२८३ णामढवणा-आगमदव्व
णोआगमदध्वजाणुगसरीर-मविय-णिक्खेवा सुगमा त्ति कट ट तेसिमस्थमभणिय तबदिरित्त - णोआगमदबदोससरूवपरूवणठमुत्तर तं भणदि । णोआगमदव्वदोसो णाम जं दव्वं जेण उवधादेण उवभोगं ण 'एदि तस्स दबस्स सो उवघादो दोसो णाम।तं जहा-सादियए अग्गिदद वा मूसयभविवयं वा एवमादि । - नामनिक्षेप, स्थापनानिक्षेप, आगमद्रव्यनिक्षेप और नोआगमद्रव्यनिक्षेपके दो भेद ज्ञायकशरीर और भावी ये सब निक्षेप सुगम है (दे० निक्षेप)। ऐसा समझकर इन सब निक्षेपोके स्वरूपका कथन नहीं करके तद्व यतिरिक्त नोआगमद्रव्यदोषके स्वरूपका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं-जो द्रव्य इस उपघातके निमित्तसे उपभोगको नहीं प्राप्त होता है वह उपघात उस द्रव्यका दोष है। इसे ही तद्वयतिरिक्तनोआगमद्रव्यदोष समझना चाहिए। वह उपघात दोष कौन-सा है। साडीका अग्निसे जल जाना अथवा चूहोके द्वारा वाया जाना तथा इसी प्रकार और दूसरे भी दोष है। * द्वेष सम्बन्धी अन्य विषय-दे० राग। * द्वेषका स्वभाव विभावपना तथा सहेतुक अहेतुकपना
-दे० विभाव/२,५॥ द्वत-(प.वि/४/३३) बन्धमोक्षौ रतिद्वेषौ कर्मात्मानौ शुभाशुभौ । इति द्वैताश्रिता बुद्धिरसिद्धिरभिधीयते । बन्ध और मोक्ष, राग और द्वेष, कर्म और आत्मा, तथा शुभ और अशुभ, इस प्रकारको बुद्धि द्वैतके आश्यसे होती है । * द्वैत व अद्वैतवादका विधि निषेध व समन्वय
-दे० द्रव्य/४॥ द्वैताद्वैतवाद-दे० वेदान्त/३,५,६ द्वैपायन--(ह.पु./६९/श्लो.) रोहिणीका भाई बलदेवका मामा भगवान्से यह सुनकर कि उसके द्वारा द्वारिका जलेगी तो वह विरक्त होकर मुनि हो गया (२८)। कठिन तपश्चरणके द्वारा तैजस ऋद्धि प्राप्त हो गयी, तब भ्रान्तिवश बारह वर्ष से कुछ पहले ही द्वारिका देखनेके लिए आये (४४)। मदिरा पीनेके द्वारा उन्मत्त हुए कृष्णके भाइयोंने उसको अपशब्द कहे तथा उसपर पत्थर मारे (५५)। जिसके कारण उसे क्रोध आ गया और तैजस समुद्धात द्वारा द्वारिकाको भस्म कर दिया। बड़ी अनुनय और विनय करनेके पश्चात केवल कृष्ण व बलदेव दो ही बचने पाये (५६-८६)। यह भाविकालकी चौबीसी में स्वयम्भू नामके १६व तीर्थकर होंगे।
-दे० तीर्थकर/५ ।
२. द्वैपायनके उत्तरमव सम्बन्धी ह. पु./६१/६६ मृत्वा क्रोधाग्निर्दग्धतप सारधनश्च स । बभूवाग्नि
कुमाराव्यो मिथ्यादृग्भवनामर' ।। -क्रोधरूपी अग्निके द्वारा जिनका तपरूप श्रेष्ठ धन भस्म हो चुका था ऐसे द्वैपायन मुनि मरकर अग्निकुमार नामक मिथ्यादृष्टि भवनवासी देव हुए। (ध.१२॥
४,२,७,१६/२१/४) द्वचाश्रय महाकाव्य-श्वेताम्बराचार्य हेमचन्द्र सूरि (ई. १०८८११७३) की एक रचना।
[ध] धनंजय-१. विजया की उत्तरश्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर । २. दिगम्बराम्नायके एक कवि थे। आपने द्विसन्धानकाव्य और नाममाला कोश लिखे है। समय-डॉ० के. बी. पाठकके अनुसार आपका समय ई. ११२३-११५० है। परन्तु पं. महेन्द्र कुमार व पं. पन्नालालके अनुसार ई. श.८ । (सि.वि/प्र.३७/पं. महेन्द्र), (ज्ञा./प्र. ६/पं. पन्नालाल) धन-१. लक्षण स.सि./७/२६/३६८/६ धनं गवादि। =धनसे गाय आदि का ग्रहण होता है । (रा.वा/७/२६/५५५/६), (बो.पा./टी./४६/१११/८) * आयका वर्गीकरण-दे० दान/६ । * दानार्थ मी धन संग्रहका कथंचित् विधि निषेध
-दे० दान/६। * पदधन, सर्वधन श्रादि-दे० गणित/11/५/३ । धनद-दे० कुबेर । धनद कलशवत-भाद्रपद कृ.१ से शु. १५ तक पूरे महीने प्रतिदिन चन्दनादि मंगलद्रव्ययुक्त कलशोंसे जिनभगवान्का अभिषेक व पूजन करे। णमोकार मन्त्रका त्रिकाल जाप्य करे। (वत-विधान संग्रह/पृ. ८८) धनदेव-(म.प्र./सर्ग/श्लोक) जम्बूद्वीपके पूर्व विदेहमें स्थित पुष्कलावती देशकी पुण्डरी किणी नगरीके निवासी कुबेरदत्त नामक वणिकका पुत्र था (११/१४) । चक्रवर्ती बज्रनाभिकी निधियोमें गृहपति नामका तेजस्वी रत्न हुआ ।११/१७। चक्रवर्ती के साथ-साथ इन्होने
भी दीक्षा धारण कर ली।११।६१-६२।। धनपति-(म. पु/६/श्लोक ) कच्छवेशमें क्षेमपुरीका राजा था। ।२। पुत्रको राज्य दे दीक्षा धारण की।६-७1 ग्यारह अंगोंका ज्ञान प्राप्त कर तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध किया। समाधिमरण कर जयन्त विमानमें अहम्मिन्द्र हुए । ८.६। यह अरहनाथ भगवान्का पूर्वका
दूसरा भव है-दे० अरनाथ । धनपाल-यक्ष जातिके व्यन्तरदेवोका एक भेद-दे० यक्ष । धनराशि-जिस राशिको मूलराशिमें जोडा जाये उसे धनराशि __कहते हैं।-दे० गणित/U/१। घनानन्द-नन्दवंशका अन्तिम राजा था, जिसे चन्द्रगुप्तमौर्य ने परास्त करके मगध देशपर अधिकार किया था । समय-ई०पू० ३३८३२६. दे०-इतिहास/३/४ (वर्तमानका भारतीय इतिहास )। धनिष्ठा-एक नक्षत्र-दे० नक्षत्र । धनुष-१.क्षेत्रका एक प्रमाण । अपर नाम दण्ड, युग, मूसल, नाली
-दे० गणित/I/१/३२. arc (जं.पं./प्र.१०६); (गणित/II/0/३)
जैनेन्द्र सिमान्त कोश
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