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जीव
३. जीवके गुण व पर्न
व्यारम्यान भी उन्हींके सम्बोधनार्थ किया गया है। (क्योंकि वे किसी चेतन व अमूर्त जोबको स्वीकार नहीं करते, मक्कि पृथिवी आदि पाँच भूतोंके संयोगसे उत्पन्न होनेवाला एक क्षणिक तत्त्व
२. वीर्य अवगाह आदि सामान्य गुण पं.ध./उ./६४६ वीर्य सूक्ष्मोऽवगाहः स्यादव्यामाधश्चिदात्मकः । स्यादगुरुलघुसझं च स्युः सामान्यगुणा इमे । - चेतनारमक वीर्य, सूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, अव्यावाधरव और अगुरुलधुत्व ये पाँच जीवके सामान्यगुण हैं। दे० मोक्ष/३ (सिद्धोंके आठ गुणोंमें भी इन्हें गिनाया है)।
७. जीवके भेद-प्रभेदादि जाननेका प्रयोजन पं.का./ता.क./१२/६६/१८ अत्र जीविताशारूपरागादिविकल्पत्यागेन सिद्धजीवसहशः परमाहादरूपसुखरसास्वादपरिणतनिजशुब्रजीबास्तिकाय एवोपादेयमिति भावार्थः।- यहाँ (जीवके संसारी * मुक्तरूपभेदों मेंसे) जीनेकी आशारूप रागादि विकल्पोंका त्याग करके सिद्धजीव सदृश परमाहादरूप सुखरसास्वादपरिणत निजशुद्धजीवास्तिकाय हो उपादेय है, ऐसा अभिप्राय समझना। (द्र. सं./टो/२/१०11)।
३. जीवके गुण व धर्म
जीवके सामान्य विशेष स्वमावों का नाम निर्देश आ.प./ स्वभावाः कष्यन्ते-अस्तिस्वभावः, नास्तिस्वभावः, नित्यस्वभावः, अनित्यस्वभावः, एकस्वभावः, अनेकस्वभावः, भेदस्वभाव, अभेदस्वभावः, भव्यस्वभावः, अभव्यस्वभावः, परमस्वभावः-द्रव्याणामेकादशसामान्यस्वभावाः । चेतनस्वभावः, अचेतनस्वभावः, मूर्तस्वभावः, अमूर्त स्वभावः, एकप्रदेशस्वभावः, अनेकप्रदेशस्वभावः, विभावस्वभावः, शुबस्वभाव', अशुद्धस्वभावः, उपचरितस्वभाव:एते द्रव्याणी दश विशेषस्वभावाः । जीवपुदगलयोरेकविंशतिः । 'एकविशतिभावाः स्युर्जीवपुद्गलयोर्मता ।' टिप्पणी-जीवस्याप्यसहभूतव्यवहारेणाचेतनस्वभावः, जोवस्याप्यसदभूतव्यवहारेण मूर्तत्वस्वभावः । तत्कालपर्ययाक्रान्तं वस्तुभावोऽभिधीयते । तस्य एकप्रदेशसंभवात् । - स्वभावोंका कथन करते हैं-अस्तिस्वभाव, नास्तिस्वभाव, नित्यस्वभाव, अनित्यस्वभाव, एकस्वभाव, अनेकस्वभाव, भव्यस्वभाव, अभव्यस्वभाव, और परमस्वभाव ये ग्यारह सामान्य स्वभाव है। और-चंतनस्वभाव, अचेतनस्वभाव, मूर्तस्वभाव, अमूर्त स्वभाव, एकप्रदेशस्वभाव, अनेकप्रदेशस्वभाव, विभावस्वभाव, शुखस्वभाव, अशुद्धस्वभाव और उपचरित स्वभाव ये दस विशेष स्वभाव है। कुल मिलकर २१ स्वभाव हैं। इनमेंसे जीव व पुदगलमें २१ के २९ हैं। प्रश्न-(जीवमें अचेतन स्वभाव, मूर्तस्वभाव और एक प्रदेशस्वभाव कैसे सम्भव है)। उत्तर-असदभूत व्यवहारनयसे जीवमें अचेतन व मूर्त स्वभाव भी सम्भव है क्योंकि संसारावस्थामें यह अचेतन व मूर्त शरीरसे मर रहता है। एक प्रदेशस्वभाव भावकी अपेक्षासे है। वर्तमान पर्यायाक्रान्त वस्तुको भाव कहते हैं । सूक्ष्मताकी अपेक्षा वह एकप्रदेशी कहा जा सकता है।
जीवके अन्य भनेकों गुण व धर्म पं.का./म् /२७ जोवो त्ति हवदि चेदा उबओगविसेंसिदो पह कत्ता भोचा य देहमेत्तो ण हि मुत्तो कम्मसंपत्तो १२ -आत्मा जोब है. चेतयिता है, उपयोगलक्षिता है, प्रभु है, कर्ता है, भोक्ता है, देहप्रमाण है. अमूर्त है और कर्मसंयुक्त है। (पं.का./म./१०६): (प्र.सा./म./१२७); (भा पा./मू./१४८); (प.प्र./मू./१/३१) (रा.वा./९/४/२४/८/११): (म.पु./२४/१२): (न च../१०६); (इ.सं./मू./२)। स-सा./बा./परि.-अत एवास्य ज्ञानमात्रैकभावान्तःपातिन्योऽनन्ताः
शक्तयः उत्प्लवन्ते--उस (आत्मा) के ज्ञानमात्र एक भावकी अन्त:पातिनी (ज्ञान मात्र एक भावके भीतर समा जानेवाली) अनन्त शक्तियाँ उछलती हैं उनमें से कितनी ही (४७) शक्तियाँ निम्न प्रकार हैं-१. जोवत्व शक्ति, २.चितिशक्ति, ३. रशिशक्ति. ४.ज्ञानशक्ति, ५. मुखशक्ति, ६. वीर्यशक्ति, ७.प्रभुत्वशक्ति, ८. विभुत्वशक्ति, ६. सर्वदर्शित्वशक्ति, १०. सर्वहत्वशक्ति, ११. स्वच्छत्लशक्ति १२. प्रकाशशक्ति, १३. असंकुचितविकाशवशक्ति, १४. अकार्यकारणशक्ति, १५. परिणम्यपारिणामकत्वशक्ति, १६. त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति, १७. अगुरुलघुत्वशक्ति, १८. उत्पादव्यमनौव्यत्वशक्ति, १६. परिणामशक्ति, २०. अमूर्तत्वशक्ति, २१. अकर्तृत्वशक्ति, २२. अभोक्तृत्वशक्ति, २३. निष्क्रियत्वशक्ति, २४. नियतप्रदेशत्वशक्ति, २५. सर्वधर्मव्यापकत्वशक्ति, २६. साधारण असाधारण साधारणासाधारण धर्मत्वशक्ति, २७. अनन्तधर्मत्वशक्ति, २८. बिल्वधर्मत्वशक्ति, २६. तत्त्वशक्ति, ३०. अतत्त्वशक्ति, ३९. एकत्वशक्ति, ३२. अनेकत्वशक्ति, ३३. भावशक्ति, ३४. अभावशक्ति, ३५. भाषाभावशक्ति, ३६.अभावभावशक्ति, ३७. भावभावशक्ति, ३८.अभावाभावशक्ति, ३६. भावशक्ति, ४०. क्रियाशक्ति, ४१. कर्मशक्ति, ४२. कर्तृ शक्ति, ४३. करणशक्ति, ४४. सम्प्रदानशक्ति, ४५. अपादानशक्ति, ४६. अधिकरणशक्ति, ४७. सम्बन्धशक्ति। नोट-इन शक्तियोंके
अर्थोके लिए-३० वह बह नाम । दे. जीव/१/२-३ कर्ता, भोक्ता, विष्णु, स्वयंभू, प्राणी, जन्तु आदि
अनेकों अन्वर्थक नाम दिये है। नोट-उनके अर्थ जीव/१/३ में दिये हैं। दे. गुण/३. जीवमें अनन्त गुण है।
१. जीवके गुणों का नाम निर्देश १. शान दर्शन आदि विशेष गुण दे० जीव/१/१ (चेतना व उपयोग जीवके लक्षण है)। आ.प./२ षोडशविशेषगुणेषु जीवपुदगलयोः षडिति । जीवस्य ज्ञानदर्शनसुखबीर्याणि चेतनत्वममूर्तत्वमिति षट्। -सोलह विशेष गुणोंमेंसे (दे० गुण/३) जीव व पुदगल में छह छह हैं। तहाँ जीवमें ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, चेतनत्व और अमूर्तत्व ये छह हैं। पं.ध./उ./६४५ तद्यथायथं जीवस्य चारित्रं दर्शन सुखम् । झाम सम्यक्वमित्येते स्युविशेषगुणाः स्फुटम् ।६४५-चारित्र, दर्शन, सुख, ज्ञान और सम्यक्ख ये पाँच स्पष्ट रीतिसे जीवके विशेष गुण है।
जीवमें सूक्ष्म महान् आदि विरोधी धोका निर्देश पं. वि/८/१३ यत्सूक्ष्मं च महच्च अभ्यमपि यन्नो शून्यमुत्पद्यते, नश्यत्येव च नित्यमेव च तथा नास्त्येव चास्त्येव च । एक यद्यदनेकमेव तदपि प्राप्त प्रतीति दृढां, सिद्धज्योतिरमूर्तिचित्सुखमयं केनापि तल्लक्ष्यते ॥१३॥जो सिद्धज्योति सूक्ष्म भी है और स्थूल भी है. शून्य भी है और परिपूर्ण भी है, उत्पादविनाशवाली भी है और नित्य भी है. सद्भावरूप भी है और अभावरूप भी है, तथा एक भी है और अनेक भी है, ऐसी वह दृढ़ प्रतीतिको प्राप्त हुई अमूर्तिक, चेतन एवं सुखस्वरूप सिद्धज्योति किसी बिरले ही योगी परुषके द्वारा देखी जाती है ।१३। (पं वि/१०/१४)।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
भा० २-४३
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