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जन्म
६. गति-अगति चूलिका
९. शलाका पुरुषों की अपेक्षा गति प्रालि
७. लेश्याकी अपेक्षा गति प्राप्ति अर्थात्-किस लेश्यासे मरकर किस गतिमें उत्पन्न हो। (रा.वा./४/२२/१०/२००/६) (गो.जी./म्/५१६-५२८/१२०-६२६ )
अर्थात्-शलाका पुरुष कौन गति नियमसे प्राप्त करते है(ति.प./8/गा.नं.)।
१४२३-प्रति नारायण
=नरकगति।
१४३६-नारायण
=नरकगति।
इन्द्रकमें
-बलदेव
-स्वर्ग व मोक्ष।
१४४२-रुद्र
-नरकगति।
१४७०- नारद
नरकगति।
निर्गमन
निर्गमन देवगति
देव व लेश्यांश
लेश्यांश नरकगति
तिर्यच | शुक्ललेश्या
कृष्णलेश्याउत्कृष्ट | सर्वार्थ सिद्धि | उत्कृष्ट | ७वीं पृ० के अप्रतिष्ठान मध्यम आनतसे अपराजित जघन्य शुकसे सहस्रारतक | मध्यम | छठी प्र. के प्रथम पटल | भवनपद्मलेश्या
से ७वीं के श्रेणी बद्ध त्रिक उत्कृष्ट सहस्रारतक
तक
यथामध्यम ब्रह्मसे शतारतक
योग्य जघन्य सानत्कुमार माहेन्द्र
पाँचौ तक
स्थावर पीतलेश्या- जघन्य ५वीं पृ. के चरम पटलतक उत्कृष्ट सानत्कुमार माहेन्द्र नीललेश्या
के चरम पटलतक उत्कृष्ट ५वी पृ. के द्विचरम मध्यम सानत्कुमार माहेन्द्रके पटलतक द्विचरम पटलतक मध्यम वीं पृ.के तीसरे पटलसे | , तथा
३री पृ.के २रे पटलतक भवन त्रिक व यथा- जघन्य | | ३री पृ. के १ले पटलतक योग्य पाँचौं स्था- कापोतलेश्यावरोंमें
उत्कृष्ट | श्री पृ. के चरम पटलमें जघन्य | सौधर्मद्विकके मध्यम ३री पृ. के द्विचरम पटल १ले पटल तक
से १ली पृ के ३रे पटल
तक जघन्य श्लो पृ. के १ले पटलतक
१०. नरकगतिमें पुनः पुनर्मव धारणकी सीमा
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ध./७/२,२,२७/१२७/११ देव णेरइमाण भोगभूमितिरिक्वमणुस्साणं च मुदाणं पुणो तत्थे बाणं तरमुप्पत्तीए अभावादो। - देव, नारकी, भोगभूमिज तिर्यच और भोगभूमिज मनुष्य, इनके मरनेपर पुनः उसी पर्यायमें उत्पत्ति नहीं पायी जाती, क्योंकि, इसका अत्यन्त अभाव है। नोट-परन्तु बीचमें एक-एक अन्य भव धारण करके पुनः उसी पर्यायमें उत्पन्न होना सम्भव है । वह उत्कृष्ट कितनी बार होना सम्भव है, वही बात निम्न तालिकामें बतायो जाती है।
८.संहननकी अपेक्षा गति प्राप्ति अर्थात-किस संहननसे मरकर किस गतितक उत्पन्न होना
सम्भव है। (गो.क./मू./२६-३१/२५) ( गो.क./जी.प्र./५४६/७२५/१४ ) संकेत-१-वज्रऋषभनाराच; २-वज्रनाराच; ३ नाराच; ४ अर्धनाराच, ५-कीलित:६-सपाटिका।
प्रमाण-ति.प./२/२८६-२८७, रा.वा./३/६/७/१६८/१२वें (इसमें केवल
अन्तर निरन्तर भव नहीं ); ह. पु./४/३७१, ३७५-३७७; त्रि.सा /२०५२०६
संहनन
प्राप्तव्य स्वर्ग
संहनन
विशेष
प्राप्तव्य | नरक पृ०
नरक कितनी बार उत्कृष्ट अन्तर
नरक कितनी बार उत्कृष्ट अन्तर
१
४ बार
२मास
पंच अनुत्तरतक
नव अनुदिशतक १,२,३ | नव ग्रेवेयकतक। १,२,३,४ अच्युततक १-५ सहस्रारतक १-६ सौधर्मसे कापिष्ट
२४ मुहूर्त |पंचम पृ. ७ दिन
४ मास
मनु व मत्स्य वीं पृ. तक स्त्री+ उपरोक्तठी पृ. तक प्रथम पृ. ८ बार | सिंह+उपरोक्त सर्व ५वीं पृ. तक
७ बार भुजंग+ ४थी पृ. तक | पक्षी+ , ३री पृ. तकात. पृ. ६ बार
सरीसृप+ , | असंज्ञी+, ली. पृ. तक |
३ बार २बार
| सप्तम पृ.
६ मास
री पृ. तक
चतु पृ.
५ बार
१मास
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
भा० २-४१
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