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जंबूद्वीप समास
जन्म
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जटाय-(प. पु./४१(श्लोक न०) सीता द्वारा बनमें श्री सुगुप्ति मुनि
राजके आहारदानके अवसरपर (२४) वृक्षपर बैठे गृद्ध पक्षीको अपने पूर्व भव स्मरण हो आये (३३) भक्तिसे आकर वह मुनिराजके चरणोंमे गिर पड़ा और उनके चरण प्रक्षालनका जल पीने लगा।४२-४३। सीताके पूछने पर मुनिराजने उसके पूर्व भव कहे। और पक्षीको उपदेश दिया ।१४६। तदनन्तर मुनिराजके आदेशानुसार रामने उसका पालन किया ।१५० मुनिराजके प्रतापसे उसका शरीर स्वर्णमय बन गया
और उसमें से किरणें निकलने लगीं। इससे उसका नाम जटायु पड गया ।१६४। फिर रावण द्वारा सीता हरणके अवसर पर सीताकी
सहायता करते हुए रावण द्वारा शक्तिसे मारा गया। ६५-८४। जटासिंहनन्दि- जटासिंहनन्दिका दूसरा नाम जटाचार्य भी था।
आपके सरपर अवश्य हो लम्बी लम्बी जटाएँ रही होंगी, जिससे कि इनका नाम जटासिह पड़ा था। आप 'कोषण' देशके रहने वाले थे। वहाँ 'पल्लव' नामकी 'गुण्ड' नामकी पहाडीपर आपके चरण बने हुए है। आप अपने समयमें बहुत प्रसिद्ध विरागी थे। इसीलिए आपका स्मरण जिनसेन नयसेन आदि, अनेको प्राचीन आचार्यों ने किया है। कृति-वराग चारित्र । समय-कवि भारवी (ई. श. ७) के पश्चात
और उद्योतन सूरि (ई श.) के पूर्व । अत ई. श ७-८ के मध्य । (ती./२/२६२-२६४)।
प्रतिपादक, संस्कृत श्लोकबद्ध, एक ग्रन्थ। ३. आ. शक्तिकुमार (ई० श.११) द्वारा रचित लोकस्वरूप प्रतिपादक, संस्कृतश्लोक
बद्ध एक ग्रन्थ। जंबद्वीप समास-आ. उमास्वामी ( ई० श० १-२) कृत, लोक
स्वरूप प्रतिपादक, संस्कृत गद्यमें रचित एक ग्रन्थ । जंबमति-भरतक्षेत्र आर्यखण्डकी नदी-दे० मनुष्य/४। जंबवक्ष-१. जम्बूद्वीपके उत्तरकुरुमे स्थित एक अनादिनिधन वृक्ष
तथा इसका परिवार । दे लोक/३/१३ । २. यह वृक्ष पृथिवीकायिक है
बनस्पतिकायिक नहीं-दे० वृक्ष । जंबुशंकपुर-विजयाधको दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर । जंबस्वामी-(म पु./७६/श्लोक नं०) पूर्वभवमें ब्रह्मस्वर्गका इन्द्र
(३१) वर्तमान भवमे सेठ अर्हदासका। माता पिता भोगो में फंसानेका प्रयत्न करते है, पर स्वभावसे ही विरक्त होनेके कारण भोगोंकी बजाय जिनदीक्षाको धारण कर अन्तिम केवली हुए (३६-१२२ ) । श्रुतावतारकी पट्टावलीके अनुसार आप भगवान् वीरके पश्चात तृतीय केवली हुए । समय-वी. नि. २४-६२ (ई० पू०५०३-४६५।-दे० इतिहास/४/४ जंबस्वामी चरित्र-पं० राजमल्ल (ई० १५७५-१५६३) द्वारा
रचित संस्कृत काव्य । २४०० पद १३ सर्ग । (ती/४/७३)। जगजीवन-बादशाहजहाँगीरके समयमें हुएथे। वि.१७०१ में आपने ५०
बनारसीदासजी बिखरी हुई कविताओंका'बनारसी विलास के रूपमें संग्रह किया है। समय-वि. श. १७ का अन्त १८ का पूर्व ।
(ती/४/२६०) जगत-लोक । जगत कुसुम-रुचक पर्वतका एक कूट ( दे० लोक ५/१३ / जगतघन-(जगत श्रेणी) =३४३ राजू । (रा. बा./३/३८/७/२०८/
२८) (ज.प्र./प्र /२०६) (ध, ४/पृ० १२/विशेषार्थ)। जगतप्रतर-(जगत श्रेणी)-४६ राजू World surface, a
measure of area. ( रा. वा /३/३८/७/२०८/२८ ) (ज. प्र./प्र/२०६) (ध.४/पृ० ११/विशेषार्थ)। जगतश्रेणी-७ राजू प्रमाण लोक पंक्ति (ध.४/पृ० ११/विशेषार्थ )
(ज. प./प्र/२०६ )। रावा./३/३८/७/२०८/६६ धनांगुल ( अद्धापल्य/असं-वर्षके समय)। जगतसुंदरीप्रयोगमाला-आ. यशःकीति (ई० श० १३) को
एक रचना। जगतंग-राष्ट्रकूटका राजा था । इसने अपने भाई इन्द्रराजको सहा
यतासे कृष्णराज प्रथमके पुत्र श्रीवल्लभ ( गोविन्द द्वितीय) को युद्धमें परास्त करके श. सं ७१६ में उसका राज्य (बर्द्धमानपुरकी दक्षिण दिशा) छीन लिया था। इसीलिए इसका नाम गोविन्द तृतीय भी कहा जाता है। अमोघवर्ष प्रथम इसीका पुत्र था। राज्यकाल -श. सं. ७१६-७३५ ( ई० ७१४-८१३)-दे० इतिहास /२/५॥ (ष. खें /प्र. 1/A.N. up); (प.वं १/प्र.३६/H.L. Jain (आ. अनु/प्र. १०/A.N. up & H.L.Jain); (क. पा. १/प्र. ७३/पं० महेन्द्र ) (म.पु. प्र/प्र४१/५० पन्नालाल )।
जाटल-म./७४/६८) एक ब्राह्मण पुत्र। यह वर्तमान भगवानका
दूरवर्ती पूर्व भव है। देखो 'बर्द्धमान' । जड़-जीवको कथं चित् जड कहना-दे० जीव/१/३ । जतुकर्ण-एक विनयवादी-दे० वैनयिक । जनक-१-(प.पु /२६/१२१ ) मिथिलापुरीके राजा सीताके पिता।
२-विदेहका राजा था। अपर नाम उग्रसेन था। समय-ई.पू. १४२० (भारती इतिहास/पु.१/पृ २८६) जनकपुरो-मिथिलापुरी जो अब दरभंगा ( विदेह ) में है । (म.पु /
प्र.५०/पं. पन्नालाल )। जनपदध.१३/५.६,६३/३३५/५ देसस्स एगदेसो जणवओ णाम, जहा सरसेणगान्धार-कासी-अवन्ति-आदओ। -(अंग, बंग आदि देश कहलाते हैं ) देशका एकदेश जनपद कहलाता है। यथा-शूरसेन, गान्धार, काशी, अवन्ती आदि। जनपद सत्य-दे० सत्य/१। जन्नाचार्य-रत्न तथा पौन्न के समकक्ष कन्नड कवि । कृति
अनन्त नाथ पुराण । समय-ई. ११७०-१२२५ (ती./४/३०६)। जन्म-जीवोंका जन्म तीन प्रकार माना गया है, गर्भज, संमूर्छन व उपपादज । तहाँ गर्भज भी तीन प्रकारका है जरायुज, अण्डज, पोतज। तहाँ मनुष्य तिर्यंचोंका जन्म गर्भज व संमूर्च्छन दो प्रकारमे होता है और देव नारकियोंका केवल उपपादज । माताके गर्भसे उत्पन्न होना गर्भज है, जो जेर सहित या अण्डे में उत्पन्न होते हैं वे जरायुज व अण्डज है, तथा जो उत्पन्न होते ही दौडने लगते है वे पोतज हैं। इधर-उधरसे कुछ परमाणुओंके मिश्रणसे जो स्वतः उत्पन्न हो जाते हैं जैसे मेंढक, वे संमूर्च्छन हैं। देव नारको अपने उत्पत्ति स्थानमें इस प्रकार उत्पन्न होते हैं, मानो सोता हुआ व्यक्ति जाग गया हो, वह उपपादज जन्म है।
सम्यग्दर्शन आदि गुण विशेषोंका अथवा नारक, तियचादि पर्याय विशेषों में व्यक्तिका जन्म के साथ क्या सम्बन्ध है वह भी इस अधिकारमें बताया गया है।
जगदेकमल्ल-ई० १०२४ के एक राजा थे (सि. वि./प्र./०५/
शिलालेख । जगमोहनदास-धर्मरत्नोद्योतके कर्ता, आरा निवासीएक हिन्दी
कवि । समय-लगभग वि १८६५ (ई. १८०७)। (ती/४/३०५)।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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