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छेदोपस्थापना
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छेदोपस्थापना
द्र सं/टी/३५/१४७/८ अथ छेदोपस्थापनं कथयति-यदा युगपत्समस्तविकल्पत्यागरूपे परमसामायिके स्थातुमशक्तोऽयं जीवस्तदा-पञ्चप्रकारविकल्पभेदेन व्रतच्छेदेन रागादिविकल्परूपसावद्यभ्यो विवयं निजशुद्धात्मन्यात्मानमुपस्थापयतीति छेदोपस्थापनम्। अथवा छेदे बतखण्डे सति निर्विकारसंबित्तिरूपनिश्चयप्रायश्चित्तेन तत्साधकबहिरङ्गव्यवहारप्रायश्चित्तेन वा स्वात्मन्युपस्थापनं छेदोपस्थानमिति ।
- अब छेदोपस्थापनाका कथन करते है-जब एक ही समय समस्त विकल्पोके त्यागरूप परम सामायिकमें, स्थित होने में यह जीव असमर्थ होता है, तब विकल्प भेदसे पाँच बतोंका छेदन होनेसे ( अर्थात् एक सामायिक व्रतका पाँच व्रतरूपसे भेद हो जानेके कारण ) रागादि विकल्परूप सावधोसे अपने आपको छडाकर निज शुद्धात्मामें उपस्थापन करना; -अथवा छेद यानी व्रतका भंग होनेपर निधिकार निज आत्मानुभवरूप निश्चय प्रायश्चित्तके बलसे अथवा व्यवहार प्रायश्चित्तसे जो निज आत्मामे स्थित होना सो छेदोपस्थापना है।
चाहिए और यदि पाँच यमरूप है तो छेदोपस्थापनामें अन्तर्भाव होना चाहिए। संयमको धारण करनेवाले पुरुषके द्रव्यार्थिक और पर्यायाथिक नयकी अपेक्षा इन दोनों संयमोसे भिन्न तीसरे संयमको सम्भावना तो है नहीं, इसलिए परिहार शुद्धि संयम नहीं बन सकता। उत्तर--नहीं, क्योकि, परिहार ऋद्धि रूप अतिशयकी उत्पत्तिकी अपेक्षा सामायिक और छेदोपस्थापनासे परिहारविशुद्धि संयमका कथंचित् भेद है। प्रश्न-सामायिक और छेदोपस्थापनारूप अवस्थाका त्याग न करते हुए ही परिहारशुद्धिरूप पर्यायसे यह जीव परिणत होता है, इसलिए सामायिक और छेदोपस्थापनासे भिन्न यह संयय नही हो सकता। उत्तर-नहीं, क्योकि, पहिले अविद्यमान परन्तु पीछेसे उत्पन्न हुई परिहार ऋद्धिकी अपेक्षा उन दोनों संयमोसे इसका भेद है, अत' यह बात निश्चित हो जाती है कि सामायिक और छेदोपस्थापनासे परिहारशुद्धि संयम भिन्न है।
१. सामायिक छेदोपस्थापना व सूक्ष्मसाम्परायमें कथंचित् भेद व अभेद
२. सामायिक व छेदोपस्थापनामें कथंचित् भेद व अभेद ध.१/१,९,१२३४३७०/२. सकलवतानामेकत्वमापाद्य एकयमोपादानाद् द्रव्याथिकनय. सामायिकशुद्धिसंयमः । तदेवैकं बतं पञ्चधा बहुधा वा विपाटय धारणात् पर्यायार्थिकनयः छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयम' । निशितबुद्धिजनानुग्रहार्थ द्रव्याथिकनयादेशना, मन्दधियामनुग्रहार्थ पर्यायाथिकनयादेशना । ततो नानयोः संयमयोरनुष्ठानकृतो विशेषोऽस्तीति द्वितयदेशेनानुगृहीत एक एव संयम इति चेष दोषः, इष्टत्वात् । सम्पूर्ण बतोको सामान्यकी अपेक्षा एक मानकर एक यमको ग्रहण करनेवाला होनेसे सामायिक-शुद्धिसंयम द्रव्यार्थिकनयरूप है,
और उसी एक व्रतके पाँच अथवा अनेक प्रकारके भेद करके धारण करनेवाला होनेसे छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयम पर्यायाथिकनयरूप है। यहॉपर तीक्ष्ण बुद्धि मनुष्योके अनुग्रहके लिए द्रव्यार्थिक नयका उपदेश दिया गया है ओर मन्द बुद्धि प्राणियों का अनुग्रह करनेके लिए पर्यायाथिक नयका उपदेश दिया गया है। इसलिए इन दोनों संयमोमें अनुष्ठान कृत कोई विशेषता नहीं है । प्रश्न-तत्र तो उपदेशकी अपेक्षा संयमको भले ही दो प्रकारका कह लिया जावे पर वास्तव में तो बह एक ही है ! उत्तर-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, यह कथन हमे इष्ट ही है। (देखो आगे नं०४ भी); (स सि/७/१/३४३/५); (रा.
वा/७/१/४/५३४/१२) (ध.३/१,२,१४६/४४७/७)। ध. ३/१२.१४६/४४६/१ तदो जे सामाझ्यसुद्धिसंजदा ते चेय छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदा होति । जे छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदा ते चेय सामाइयसुद्धिसंजदा होति त्ति । - इसलिए जो सामायिकशुद्धिसंयत जीव हैं, वे ही छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत होते हैं। तथा जो छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत जीव हैं, वे ही सामायिकशुद्धिसंयत होते हैं । ३. सामायिक व छेदोपस्थापनाका परिहारविशुद्धिसे कथंचित् भेद ध १/१,१,१२६/३७५/७ परिहारशुद्धिसंयत किमु एकयम उत पञ्चयम इति । किं चातो यद्येकयम सामायिकेऽन्तर्भवति । अथ यदि पंचयमः छेदोपस्थापनेऽन्तर्भवति । न च संयममादधानस्य पुरुषस्य द्रव्यपर्यायाथिकाभ्या व्यतिरिक्तस्यास्ति संभवस्ततो न परिहारसंयमोऽस्तोति न, परिहारर्द्धय तिशयोत्पत्त्यपेक्षया ताभ्यामस्य कथंचिदभेदात। तद्पापरित्यागेनैव परिहारद्धिपर्यायेण परिणतत्वान्न ताभ्यामन्योऽन्यं संयम इति चेन्न, प्रागविद्यमानपरिहारर्द्धयपेक्षया ताभ्यामस्य भेदात। ततः स्थितमेतत्ताभ्यामन्यः परिहारसंयमः इति । -प्रश्न-परिहारशुद्धि सयम क्या एक यमरूप है या पॉच यमरूप ? इनमेंसे यदि एक यमरूप है तो उसका सामायिकमे अन्तर्भाव होना
ध. १११,१,१२७/३७६/७ सूक्ष्मसापरायः किमु एकयम उत पञ्चयम इति । किंचातो यद्य कयमः पञ्चयमान्न मुक्तिरुपशमश्रेण्यारोहणं वा सूक्ष्मसापरायगुणप्राप्तिमन्तरेण तदुदयाभावात् । अथ पञ्चयमः एकयमानां पूर्वोक्तदोषौ समाढौकेते। अथोभययमः एकयमपञ्चयमभेदेन सूक्ष्मसापरायाणां द्वैविध्यमापतेदिति । नाद्यौ विकल्पावनभ्युपगमात् । न तृतीयविकल्पोक्तदोषः संभवति पञ्चै कयमभेदेन संयमभेदामावात् । यद्य कयमपञ्चयमौ संयमस्य न्यूनाधिकभावस्य निबन्धनाबेवाभविष्यतां संयमभेदोऽप्यभविष्यत् । न चैवं संयम प्रतिद्वयोरविशेषात् । ततो न सूक्ष्मसांगरायसंयमस्य तद्वद्वारेण द्वैविध्यमिति । तद्वारेण संयमस्य द्वैविध्याभावे पञ्चविधसंयमोपदेश कथं घटत इति चेन्मापटिष्ट । तर्हि कतिविधः संयमः । चतुर्विधः पञ्चमस्य संयमस्यानुपलम्भात् । -प्रश्न-सूक्ष्मसापरायसंयम क्या एक यमरूप ( सामायिक रूप) है अथवा पचयमरूप (छेदोपस्थापनारूप) इनमेसे यदि एकयमरूप है तो पंचयमरूप छेदोपस्थापनासे मुक्ति अथवा उपशमश्रेणीका आरोहण नहीं बन सकता है, क्योंकि, सूक्ष्मसांपराय गुणस्थानकी प्राप्तिके विना ये दोनों ही बातें नहीं बन सकेंगी। यदि यह पंचयमरूप है तो एकयमरूप सामायिकसंयमको धारण करनेवाले जीवो के पूर्वोक्त दोनो दोष प्राप्त होते है। यदि इसे उभय यमरूप मानते हैं तो एक यम और पंचयमके भेदसे इसके दो भेद हो जायेगे? उत्तर-आदिके दो विकल्प तो ठीक नहीं है, क्योंकि, वैसा हमने माना नहीं है ( अर्थाद वह केवल एक यमरूप या केवल पंचयमरूप नहीं है)। इसी प्रकार तीसरे विकल्पमे दिया गया दोष भी सम्भव नहीं, क्योंकि, पंचयम और एकयमके भेदसे संयममें कोई भेद ही सम्भव नहीं है। यदि एकयम और पंचयम. संयमके न्यूनाधिकभावके कारण होते तो संयममें भेद भी हो जाता। परन्तु ऐसा तो है, नहीं, क्योंकि, सयमके प्रति दोनोमें कोई विशेषता नहीं है। अत. सूक्ष्मसांपराय संयमके उन दोनों (एकयमरूप सामायिक तथा पंचयमरूप छेदोपस्थापना) की अपेक्षा दो भेद नही हो सकते। प्रश्न-तो पाँच प्रकारके संयमका उपदेश कैसे बन सकता है। उत्तर-यदि पाँच प्रकारका संयम घटित नहीं होता है तो मत होओ। प्रश्न-तो संयम कितने प्रकारका है। उत्तर-संयम चार प्रकारका है, क्योकि पाँचवॉ संयम पाया ही नहीं जाता है। बिशेषार्थ-सामायिक और छेदोपस्थापना स यममें विवक्षा भेदसे ही भेद है, वास्तवमें नहीं. अतः वे दोनों मिलकर एक और शेष तीन (परिहार विशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथारख्यात) इस प्रकार संयम चार प्रकारके होते है।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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