________________
१३०
कुशील
कुल-स. सि.//२४/४४२/१ दीक्षकाचार्यशिष्यसंस्त्याय' कुलम् ।
-दीक्षकाचार्य के शिष्य समुदायको कुल कहते है। (रा. वा./४/२४/
६/६२३); (चा. सा./१५१/३ ) प्र. सा /ता. वृ./२०३/२७६/७ लोकदुर्गुच्छारहितत्वेन जिनदीक्षायोग्य कुल भण्यते । लौकिक दोषोंसे रहित जो जिनदीक्षाके योग्य होता
है उसे कुल कहते हैं। मू, आ./भाषा./२२१ जाति भेदको कुल कहते हैं।
२. १९९१ लाख कोड़की अपेक्षा कुलोंका नाम निर्देशमू. आ./२२१-२२५ बावीससत्ततिण्णि अ सत्तय कुलकोडि सद सहस्साई । णेयापुढ विदगागणिवाऊकायाण परिसंखा १२२१॥ कोडिसदसहस्साई सत्तट्ट व णव य अठवीसं च । बेइं दियतेई दियचउरिदियहरिदकायाणं ।२२२१ अद्धत्तेरस मारस दसर्य कुलकोडिसदसहस्साई। जलचरपक्खिचउप्पयउरपरिसप्पेसु णव होति ।२२३। छव्वीसं पणवीस चउदसकुलकोडिसदसहस्साई। सुरणेरइयणराणं जहाकम होइ णायव्वं ।२२४। एया य कोडिकोडी णवणवदीकोडिसदसहस्साई। पण्णारसं च
सहस्सा संवग्गोणं कुलाण कोडोओ ।२२५॥ अर्थ-एकेन्द्रियोंमें १. पृथिविकायिक जीवोंमे
लाख क्रोड कुल २. अपकायिक ३. तेजकायिक ४. वायुकायिक ५. वनस्पतिकायिक .
२८ " . विकलत्रय १. द्विइन्द्रिय जीवोंमें २. त्रिइन्द्रिय , ३. चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय १. पंचेन्द्रिय जलचर जीवोंमें २.
खेचर ,
भूचर चौपाये,, ४. , सादि ,, ५. नारक जीवोंमें ६. मनुष्यों में
=१४ लाख क्रोड कुल ७. देवोमें कुल सर्व कुल
-- १६६३ लाख क्रोडकुल ३. १९७३ लाख कोड़की अपेक्षा कुलोका नाम निर्देश नि.सा./टी०/४२/२७६/७ पूर्वोक्तवत् ही है, अन्तर केवल इतना है कि बहॉ मनुष्यों में १४ लाख क्रोड कुल कहे हैं, और यहाँ मनुष्योमें १२ लाख कोड़ कुल कहे हैं। इस प्रकार २ कोड़ कुलका अन्तर हो जाता है। (त.सा./२/११२-११६); (गो.जी.मू./१६३-११७)
४. कुल व जातिमें अन्तर गो. जी/भाषा./१९७/२७८/६ जाति है सो तौ योनि है तहाँ उपजनेके स्थान रूप.पुद्गल स्कंधके भेदनिका ग्रहण करना। बहुरि कुल है सो जिनि पुद्गलकरि शरीर निपजे तिनिके भेद रूप हैं। जैसे शरीर पुद्गल आकारादि भेदकरि पंचेन्द्रिय तिर्यचबिक हाथी, घोड़ा इत्यादि भेद हैं ऐसे सो यथासम्भव जानना ।
कुलकर म.पु./२११-२१२ प्रजानां जीवनोपायमननान्मनवो मताः । आर्याणां कुल
संस्त्यायकृते. कुलकरा इमे ।२११॥ कुलानां धारणादेते मताः कुलधरा इति । युगादिपुरुषाः प्रोक्ता युगादौ प्रभविष्णवः ।२१२१ - प्रजाके जोवनका उपाय जाननेसे मनु तथा आये पुरुषोंको कुल की भाँति इकट्ठे रहनेका उपदेश देनेसे कुलकर कहलाते थे। इन्होंने अनेक वंश स्थापित किये थे, इसलिए कुलधर कहलाते थे, तथा युगके आदिमें होनेसे युगादि पुरुष भी कहे जाते थे। (२११/२१२/त्रि.सा./०६४) १४ कुलकर निदेश-दे० शलाका पुरुष/ह। कुलकुण्ड पार्श्वनाथ विधान-आ० पद्मनन्दि (ई० १२८०
१३३०) कृत पूजापाठ विषयक संस्कृत ग्रन्थ है । कुलगिरि-दे० वर्षधर। कुलचन्द्र-पख /प्र.२/प्र.H. L.Jain नन्दिसंघके देशीय गणके
अनुसार (दे० इतिहास ) यह कुलभूषणके शिष्य तथा माघनन्दि मुनि कोल्लापुरीयके गुरु थे । समय-वि. ११३५-१९६५ ( ई० १०७८
११०८)-दे०-इतिहास ७/५॥ कूलचर्या क्रिया-दे० संस्कार/२ । कुलधर-दे० कुलकर। कुलभद्राचार्य-सारसमुच्चय टीका/प्र. ४ ब्र. शीतलप्रसाद--आप
सारसमुच्चय ग्रन्थके कर्ता एवं आचार्य थे। आपका समय वी. सं./२४६३ से १००० वर्ष पूर्व वी. १४६३, ई० ६३७ है। कुलभूषण-१--प.प्र/३६/श्लोक...वंशधर पर्वत पर ध्यानस्थ इनपर
अग्निप्रभ देवने घोर उपसर्ग किया (१५) मनवासी रामके आनेपर देव तिरोहित हो गया (७३) तदनन्तर इनको केवलज्ञानकी प्राप्ति हो गयी (७५)1 २-नन्दिसंघके देशीयगणकी गुर्वावलीके अनुसार(दे०इतिहास) आविद्ध करण पद्मनन्दि कौमारदेव सिद्धान्तिक के शिष्य तथा कुलचन्द्रके गुरु थे। समय-१०८०-११५५ (ई० १०२३-१०७८) (ष.वं । २ H. L. Jain) दे० इतिहास/७/५ । कुलमद-दे० मद । कुलविद्या-दे० विद्या। कुलसुत-भाविकालीन सातवें तीर्थकर थे। अपरनाम कुलपुत्र,
प्रभोदय, तथा उदयप्रभ है । दे० तीथ कर/५॥ कुलोत्तंग चोल-क्षत्र चूड़ामणि/प्र./७ प्रेमीजी, स्याद्वाद सिद्धि/ प्र.२०६०दरबारीलाल कोठिया-चोलदेशका राजा था। समय--
वि. ११२७-११७५ ( ई० १०७०-१११८ ) । कुवलयमाला-आ० द्योतन सूरि (ई०७७८) की रचना है। कुश-प.पु./सर्ग/श्लोक · रामचन्द्रजीके पुत्र थे (१००/१७) मारदकी प्रेरणासे रामसे युद्ध किया (१०२/४१-७४) अन्तमे पिताके साथ मिलन हुआ (१०३/४१,४७) अन्त में क्रमसे राज्य (११६/१-२) व मोक्ष प्राप्ति
की। (१२३/८२)। कुशपुर-१. भरत क्षेत्र मध्य आर्य खण्डका एक देश । दे० मनुष्य/४ ।
२. म.पु /प्र.४६/पं० पन्नालाल-वर्तमान कुशावर ( पंजाबका एक प्रसिद्ध नगर)। कुशाग्रपुर-दे० कुशपुर । कुशानवश-भृत्यशका अपरनाम था--दे० इतिहास/३/४ । कुशील-दे० ब्रह्मचर्य ।
هالع
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org