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परिशिष्ट
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१. संवत् विचार
१६ वर्षांतक देशाटन किया, १५ वर्ष मिथ्योपदेश सहित राज्य किया और ४० वर्षतक जिनवरका धर्म पालन करके उन्होने देव पद प्राप्त किया। इन्द्रनन्दि श्रुतावतारमें ही निबद्ध नन्दिसंध बलात्कारगणकी पट्टावली। सरस्वती गच्छके अनुसार--वीराव ४६२, विक्रमजन्मान्तर वर्ष २२, राज्यान्तर वर्ष ४-वीर-
निर्वाणके ४६२ वर्ष पश्चात अथवा विक्रम जन्मके २२ वर्ष पश्चाद अथवा उसके राज्यारोहणसे ४ वर्ष पश्चात भद्रबाहु (द्वि) मूलसपके पट्टपर बैठे। इनके शिष्य गुप्तिगुप्त हुए जिनके द्वारा नन्दि आदि चार स घोको स्थापना हुई। (यहाँ वी.नि.४७० में विक्रमका जन्म और ४८८ में उनका राज्याभिषेक माना गया है।) इन्द्रनन्दि श्रुतावतारमें ही निबद्ध नन्दिसंघ बलात्कारगणकी पट्टावली। पारिजातगच्छकी अपेक्षा (ती.४/३४६)- श्री वीर-निर्वाणके ४६२ वर्ष पश्चात्, सुभद्राचार्य के २४ वर्ष पश्चात, विक्रम जन्मके २२ वर्ष पश्चात अथवा विक्रम राज्यके ४ वर्ष पश्चात द्वितीय भद्रबाहू हुए। (यहाँ भी पहले की भाँति वो नि. ४७० में विक्रमका जन्म और वी.नि. ४८८में उसका राज्याभिषेक माना गया है।) परन्तु श्वेताम्बराचार्य मेरुतुंग एक साथ दो मान्यताओं की ओर
सकेत करते है। एकके अनुसार वी.नि, ४७० में विक्रमका जन्म हुआ और दूसरीके अनुसार वी. नि. ४७० में उसका राज्याभिषेक हुआ । यथामेरुतु ग कृत 'विचारश्रेणी-सत्तरि चदुसदजुत्तो जिणकाला विक्कमो हबई जम्मो । विक्क मरज्जारं मो परओ सिरिवीरणिव्वुई भणि आ। सुन्न मुणिवेयजुत्तो विक्कम कालाउ जिण काले।' =१ वीर निर्वाणके ४७० वर्ष पश्चात विक्रमका जन्म हुआ। २ वीर निर्वाण की तिथिमें 'सुन्नमुणिवेय' (४७०) वर्ष जोड देनेपर अर्थात वीर निर्वाणके ४७० वर्ष पश्चात विक्रम का राज्य आरम्भ हुआ।
३. ऊहापोह दिगम्बराचार्य इन्द्रनन्दीकी तथा श्वेताम्बराचार्य मेरुतुगकी मान्यताओं
का उल्लेख किया गया। जिनके अनुसार विक्रम का जन्म तो वो नि ४७० में ही हुआ परन्तु उसका राज्याभिषेक वी नि ४७० में,४८८में अथवा ४९४ मे माना गया। अब प्राचीन ग्रन्थ तिल्लोयपण्णप्तिकी अपेथा विचार करते है, जिसे दिगम्बर तथा श्वेताम्बर सभी विद्वानों ने विक्रम सवत विषयक खोजके लिए आधार स्वरूप माना है। इसका कारण यह है कि विक्रम सवतका जितना सम्बन्ध वीर निर्वाणके साथ है उतना हो मगरदेशके इतिहास में मौर्य वश के साथ भी है। इस विषयमें दो मान्यतायें प्रसिद्ध है। एकके अनुसार वीर निर्वाणके पश्चात ६० वर्ष पालकका राज्य रहा १५५ वर्ष नन्द वंशका और २५५ वर्ष मौर्य व शका। इस प्रकार ४७० वर्ष की गणना पूरी करके उसके पश्चात् विक्रमका जन्म अथवा राज्यारोहण हुआ। दूसरी मान्यताके अनुसार वीर निर्वाण के पश्चात् १५५ वर्ष तक पालक तथा नन्दवंश दोनोका राज्य रहा और उसके पश्चात २५५ वर्ष तक मौर्य वंशका शासन चला। इस प्रकार ४१० वर्ष के पश्चात विक्रमका राज्य प्रारम्भ हुआ जो ६० वर्ष अर्थात् घी, नि ४७० तक रहा। क्योंकि तिल्लोयपण्णतिमें मगधदेश के इन राज्यवंशोका सुनिश्चित काल दिया गया है इसलिये विक्रम संवतकी खोज करनेमे उसकी सहा
यता ली जा सकती है। ति प.४/१५०५-१५०६ जक्काले वीरजिणे णिस्सेयससंपय समावण्णो।
तक्काले अभिसित्तो पालयणामो अवतिसुदो १५०५। पालकरज्ज सट्ठि इगिसयपणवण्ण विजयव सभवा । चाल मुरुदयवसा तीस सुपुस्समित्तम्मि ।१५०६। = जिस काल में भगवान् वीरने निर्वाण संपदाको प्राप्त किया था, उसी दिन पालक नामक अवन्तिसुत (अवन्तिक राजा) का राज्याभिषेक हुआ था। उसका राज्य ६० वर्ष तक रहा। तदुपरान्त १५५ वर्ष पर्यन्त विजयव शियोका (नन्दवशका) और ४०
वर्ष मुरुडवशियोंका (मौर्यवंशका) राज्य रहा । इसके पश्चात वर्ष
पुष्पमित्रने राज्य किया। तिल्लोयपण्णतिकारने यद्यपि ४० वर्ष पूरे मौर्यवशका राज्यकास
बताया है, परन्तु वास्तव में यह काल उस वंशके प्रथम राजा चन्द्रगुप्तका है। आगे चलकर इसो वंशमें अशोक सम्प्रति आदि हुए। उन सबका समुदित काल दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों
आम्नायोंमें २५५ वर्ष माना गया है । (दे. इतिहास ३/४)। इस प्रकार जैन शास्त्रोंके अनुसार चन्द्रप्रस मौर्यका काल बी. नि. २१५-२५५ आता है और जैन इतिहासकारोंने उसे बी.नि. २०१-२२५ (ई० पू० ३२६-३०२) पर स्थापित किया है। दूसरी ओर भद्रबाहू प्र० का काल मूलसंघकी पट्टावलीमें बी. नि. १३३-१४२ (ई. पू. ३६४-३६५) बताया गया है। (दे. इतिहास ४/४) । चन्द्रगुप्तका काल शास्त्र के अनुसार वी नि. २१५-२५५ माननेपर भद्रबाहू स्वामीके साप उसको समकालीनता किमो प्रकार भी घटित नहीं होती। इतिहास-मान्य काल (वी, नि २०१-२२१) स्वीकार करनेपर भी दानों की उ नर धिमें लगभग ६० वर्ष का अन्तर रह हो जाता है, जबकि द्वादशवर्षीय दुर्भिक्षके समय चन्द्रगुप्तका जिनदोक्षा धारण करके भद्रबाहु स्वामी के साथ दक्षिणकी ओर गमन करना शास्त्र
तथा इतिहास दोनों के द्वारा सिद्ध है (दे परिशिष्ट २)। (१) इस आपत्तिमे बचनेके लिए श्वेताम्बराचार्य श्री हेमचन्द्र
सूरि वीर निर्वाणसे लेकर चन्द्रगुप्त के राज्यारम्भ तककी जो २५ वर्ष काल गणना शास्त्रों में दी गई है उसमें ६० वर्ष की कमी कर देनेका सुझाव देते है ।३५७। अपनी इस कल्पनाको साकार बनानेके लिए वे नन्द वंशके कालको १५५ वर्षकी बजाय १५ वर्ष मानकर ।३१३। उसे वी. नि. २१५ में समाप्त करनेकी बजाय वी नि. १५५ में समाप्त कर देते है। ६० वर्षकी इस कमीको आप विक्रम सबदकी कास गणनामें हेर-फेर करके पूरा करते है अर्थात उसका प्रारम्भ विक्रम की मृत्यु कालमे न मानकर उसके राज्यारोहण से अर्थात (४७०-६०) -वी नि ४१० से मान लेते है। (जै./पी./पृष्ठ संख्या ): (ध.१/ प्र ३०. H I Jan) (२) इस मतभेदसे प्रेरित होकर प्रसिद्ध जैन इतिहासज्ञ डा. हेमन्त
जेकोबीको वीर निर्वाण सवत के विषयमें शका उत्पन्न हो जाना स्वाभाविक है। उसका समाधान करनेके लिए जार्ज चान्टियरने वीर निर्वाण तथा विक्रम सवतके मध्यवर्ती अन्तरालको ४७० वसे घटाकर ४१० कर दिया, अर्थात् वीर निर्वाणके ४७० वर्ष पश्चात विक्रमकी मृत्यु मानकर उसमें से उसका शासनकाल (६० वर्ष) ६टा दिया और विक्रम संवतका प्रारम्भ उसके राज्यारोहणसे मान लिया। (जै /पी. २८५) (३) स्व पं काशीलाल जायसवाल ने इस मान्यतामें अनेकों
आपत्तियें प्रस्तुत करके बी नि. ४७० में विक्रमका जन्म होना सिद्ध किया, और इसमे उनके बाल्यकाल वाले १८ वर्ष मिलाकर उन्हें वि नि ४८८ में राज्यारूढ कर दिया, क्योकि १८ वर्ष की आयुमें उनका राज्यारूढ होना प्रसिद्ध है। इस प्रकार विक्रम संवत्का प्रारम्भ विक्रमके राज्यसे अर्थात वी. नि.४८८ में माननेका उन्होंने सुझाव दिया। (जै /पी २८७) (४) परन्तु प. जुगलकिशोर जी मुख्तारने जायसवाल जी की इस
मान्यतामें अनेकों आपत्तिये उठाकर वीर निर्वाण तथा विक्रम सवतके मध्य जो ४७० वर्षका अन्तर प्रसिद्ध है उसे ज्योंका त्यों बनाये रखना अधिक स गत समझा। परन्तु इस कालमे इन्होने विक्रमका जन्म अथवा राज्याभिषेक न मानकर उसकी मृत्यु मानी। अर्थात् विक्रम संवत्का प्रारम्भ इन्होने विक्रमकी मृत्युसे स्वीकार किया ।२६११ इस विषय में उसके जन्म अथवा राज्याभिषेकसे संवत् का प्रारम्भ माननेवाली जो श. इन्द्रनन्दि तबा मेरुतुंग सूरिकी मान्य
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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