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उदय
४०१
८. बन्ध उदय सत्त्व की त्रिसंयोगी स्थान प्ररूपणा
मग
दोनों
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२४ नीच | "
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काल
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७ गोत्र-( सं./प्रा./१६-१८)
चारों गतियों सम्बन्धी भंग गुण। । स्थान।
स्थान
गुण स्थान । नरक । तियंच । मनुष्य । देव स्थान बन्ध । उदय । सत्त्व
बन्ध । उदय । सत्त्व ५. ओध प्ररूपणा (गो.क ६४६-६४६/८४१-८४३) १५ नीच | नीच ( नीच
ऊँच दोनों नीच
५ ७ (२.६ रहित)/७ (२,६ रहित) ऊँच
३(२-३रहित) (२.१ रहित) १२.५ रहित) ३(२-३रहित) नीच
४ ४ (२ रहित) ६२-४ रहित)| ६ (२-४ रहित) ४ (२ रहित) ऊच
३ (१.५,६) ऊँच
। ८ अन्तराय (ज्ञानावरणीवत) २. चार गतियों में आयु कर्म स्थानोंको त्रिसंयोगी सामान्य |(उपशामक)
२ (१६) व ओघ प्ररूपणा
क्षपक
१(नं.) (प.स./प्रा. ५/२१-२४); (पंसं./सं १/२५-३०), (गो.क.६३६
२ (१६) ६४६/८३६-८४३)
१ (नं.) संकेत-अबन्ध काल-नवीन आय कर्म बन्धनेसे पहलेका काल ।
बन्ध काल-नवीन आय बन्धने वाला काल । उपरत बन्ध काल-नवीन आयु बन्धने के पश्चात्का काल। तिर्य - ३. मोहनीय कर्म स्थानोंको त्रिसंयोगी सामान्य स्थान तिर्यगायु । नरक - नरकायु । मनु - मनुष्यायु, देव-देवायु।
प्ररूपणा
|स केत-'आधार' अर्थात अमुक बन्ध स्थान विशेष या उदय स्थान विशेष भंग
स्थान बन्ध । उदय ।
या सत्त्व स्थान विशेषके साथ 'आधेय' अर्थात अमुक अमुक उदय, सत्त्व
सत्त्व या बन्ध स्थान होने सम्भव है। उन-उन स्थानों का विशेष १. नरक गति सम्बन्धी पॉच भग (पं.सं /प्रा/२१)
ब्योरा उन-उन विषयोंके अन्तर्गत दो गयी सारणियों में देखिए । अबन्ध.
नरक नरकायु एक बन्ध. तिर्य. |
कुल बन्ध स्थान-१०(१,२,३ ४.५.६,१३,१७,२१,२२) नरक तिर्य. दो नरक मनु. दो
कुल उदय स्थान--६(१,३,४,५,६,७,८६,१०)
कुल सत्त्व स्थान-१५(१,२,३,४,५,११,१२,१३,२१,२२,२३,२४,२६,२७,१८)
नरक तिर्य दो उपरत.
सत्त्व विशेष-नं.१-मिथ्यात्व, नं.२- वेदक सम्यक्त्व; न.३-उपशम नरक मनु दो
सम्यक्त्व, नं. ४-उपशम सम्यक्त्व उपशम श्रेणी: नं२. तिथंच गति सम्बन्धी नौ भंग (पं.सं./प्रा५/२२)
कृतकृत्य वेदक सम्यक्त्व; नं.६ क्षायिक सम्यक्त्व; नं ७- क्षायिक अबन्ध.
। तिर्यगायु एक
सम्यक्त्व उपशम श्रेणी; नं. क्षायिक सम्यक्त्व क्षपक श्रेणी। नरक
तिर्य नरक दो तिर्य तियं दो
१.बन्ध आधार-उदय सत्त्व आधेयकी स्थान प्ररूपणा तिर्य, मनु दो
(गो. क. ६६२-६६४/६५०-६५१) तिर्य देव दो
उदय स्थान
तिर्य नरक दो उपरत.
आधार
सत्त्व स्थान आधेय तिर्य.तिर्य दो
तियं. मनु दो देव । तिय. देव दो
में स्थान ३ मनुष्य गति सम्बन्धी नौ भंग (पं सं/प्रा./२३)
विशेष
নিহী अबन्ध
| मनु. | मनुष्यायु एक नरक
मनु नरक दो तिर्य.
मनु, तिर्य दो १ २२ | ४ ७,८,६ | ३ २६,२७, मनु. मनु मनु. दो
१० २८ मनु. देव दो
२१/३/७८६१ नरक
मनु, नरक दो १७ ४ ६,७,८,६२२८, तिर्य
मनु. तिर्य. दो ।४ १३ मनु. मनु दो
२१ देव मनु. देव दो
|११,१२,१३ ४. देव गति सम्बन्धी पाँच भग (प सं./प्रा५/२४) | अबन्ध. । देवायु एक
४१ बन्ध
देव, तिर्य दो मनु.
देव मनु. दो उपरत. तियं.
देव तिर्य दो । देव मनु. दो
तिर्य
तिर्य
मनु
मनु
बन्ध स्थान आधार
कुल स्थान
कुल स्थान
कुल स्थान
कुल स्थान
६.७ में स्थान विशेष
कुल स्थान
बन्ध.
देव
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२२,२३१
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२६
ननेन्द्र सिद्धान्त कोश
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