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उदय
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६. कर्म प्रकृतियोकी उदय व उदयस्थान प्ररूपणाएँ
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उदय
उदय नं. | प्रकृति । विशेषता | स्थिति अनुभाग प्रदेश नं. | प्रकृति विशेष
का | नरक गतिमें है|१समय द्वि. , अज, | ३८ | स्थिर चारो गतियों में है १ समय| चतु. | अज. नियमसे मनु.
अन्यतम तियं में भाज्य।
३६ | अस्थिर शेष चार
मनु, तिर्य में .. . .. ४० यश कीर्ति सुभगवद (देखो.., । अन्यतम
नं २६) संहनन
४१ | अयश कीर्ति दुर्भगवत (देखो .. "
नं. २७) वज्र वृषभ नाराच मनु, तिर्य में | है |१ समय चतु.
तीर्थकर अन्यतम
७ गोत्र
द्वि.. | शेष पाँच
उच्च | देवोमें नियमसे है १ समय चतु. १०-१३ स्पर्श, रस, गन्ध वर्ण:
मनु में भाज्य प्रशस्त
नरक तिर्य में चारों गतियों में है | १ समय चतु,
अज. | २ नीच
नियमसे मनु. अप्रशस्त
में भाज्य आनुपूर्वी चतु.
८ अन्तरायअगुरुलघु चारों गतियोमें है|१समय चतु.
चारों गतियोमें है . द्वि, उपधात परघात आतप
५. मूलोत्तर प्रकृति सामान्यकी उदय स्थान प्ररूपणा उद्योत | तिर्य गतिमें है १ समय भाज्य
१. मूल प्रकृतिस्थान प्ररूपणा उच्छ्वास चारो गतियोमें. "
देखो अगला उत्तर शीर्षक सं.२ विहायोगतिः
__'मूलप्रकृति ओघ प्ररूपणा' प्रशस्त ! देवगतिमे नियम है|१समय चतु अज.. से मनु. तिथं
| क्रम , नाम प्रकृति कल प्रति प्रति स्थान स्थान स्थान
विशेष विवरण में भाज्य
प्रकृति भग अप्रशस्त नरकगति में नियमसे मनु
| ज्ञानावरण | १ |५ । १ । पाँचोका सर्वदा उदय रहता है तिर्य में भाज्य
| २ दर्शनाबरण | २ | ४ १ । चक्षु अचश्व, अवधि व केवल प्रत्येक चारो गतियोमे, है १समय चतु. अज
चारीका उदय साधारण
अन्यतम पाँच निद्रा सहित प्रस
उपरोक्त४ । है | १ समय चतु.। अज, स्थावर
इस प्रकार पाँच प्रकृति सहित
५भग है सुभग देवगतिमें नियम है १समय चतु. अज. | ३ वेदनीय १ | १ २ दोनो वेदनीयमें से अभ्यतम से मनु, तिर्य में
१ का उदय होनेसे १ प्रकृतिके
दो भंग है नरकगति में , | ४ | मोहनीय
देखो आगे नं. ६ वाली पृथक नियमसे मनु.
प्ररूपणातियं में भाज्य
५ | आयु
१-४ गुणस्थानमें अन्यतम आयु २८ । सुस्वर सुभगवत
से ४ भंग दुस्वर दुर्भगवत
५ गुणस्थानमें मनु. तिर्य, आयु आदेय सुभगवत
से २ भग अनादेय
६-१४ गुणस्थानमें मनु. आयुसे शुभ चारों गतियोंमें
१भग अन्यतम
दे, आगे नं ७ पृथक प्ररूपणा
६ नाम अशुभ
१-५ गुणस्थानमें अन्यतमके बादर
७ | गोत्र चारों गतियोमें ...
उदयसे २ भंग ३५ ।सूक्ष्म
महा ३६ । पर्याप्त चारोगतियों में है १ समय चतु..
६१४ गुणस्थानमें केवल उच्च
का१भग ३७ । अपर्याप्त
- ८ अन्तराय ।१५१ । पाँचो का निरन्तर उदय
ट
भाज्य
भग
दुभगवत
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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