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उदय
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६. कर्म प्रकृतियोकी उ दय व उदयस्थान प्ररूपणाएँ
मार्गणा
गुण स्थान
व्युच्छिन्न प्रकृतियाँ
अनुदय
पुन उदय
योग्य /
उदय अनदया पुन, कुल | ब्यु
उदय। उदय च्छित्ति
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आहारक मिश्र | - | उदय योग्य-- सुस्वर, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहा. इन ४ रहित आहारक काय योगकी ६१-५७ ।
आहारक द्विक कार्माण काय योग
उदय योग्य-सुस्वर, दु'स्वर, प्रशस्ताप्रशस्त बिहायो., प्रत्येक, साधारण, आहारक द्वि., औदा, द्वि, वैक्रि.द्वि , मिश्र,
उपघात, परषात, आतप, उद्योत, उच्छवास, स्त्यान त्रिक, छह सस्थान, छह सहनन इन ३३ के बिना सर्व
१२२-३३-८४ मिथ्यात्व, सूक्ष्म, अपर्याप्त -३ सम्य , तीर्थ -२)
६ । २ अनन्ता. चतु, १-४ इन्द्रिय, स्थावर, सीवेद-१० नरक त्रिक-३॥
गुणस्थान सम्भव नहीं ४ | वैक्रि. द्वि. बिना मूलोधके ४थे वाली
सम्य , नरकत्रिका ७१ १५+(उद्योत,आहा.द्वि.,स्त्यान.त्रिक स्त्री वेद प्रथम रहित ५ महनन इन १२ के बिना ओघकी ५-१२ गुणस्थान वाली
४८-१२-३६) ३६+ १५८५१ १-१२
गुणस्थान सम्भव नहीं (समुद्धात केवलीको) वज्रवृषभनाराच,
तीर्थकर । । १ । २५ । २५ स्वरद्विक विहायो, विक, औ.द्वि , ६ सस्थान, उपधात परघात प्रत्येक उच्छ. वास इन १७के बिना ओधके १३,१४वे
गुणस्थानोकी ४२-१७-२५ ५. वेद मार्गणा--(गो क /जी.प्र. ३२०-३२१/४५४-४५८) पुरुष वेद । उदय योग्य---स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, नारक त्रिक, १-४ इन्द्रिय, स्त्री वेद, नपुंसक वेद, तीर्थकर,
आतप इन १५ रहित सर्व-१२२-१५=१०७ मिथ्यात्व = आ द्वि.,
१०७४ । सभ्य, मिश्र
१०२ ।
५-८
१०-१४
स्त्री वेद
अनन्तानुबन्धी चतु.
-४ मिश्र मोह
=१ देव, मनु.व मिश्र -१
तिर्य गत्या
नुपूर्वी-३ अप्रत्या चतु , वैक्रि. द्वि , देवत्रिक,
देव, मनु.व मनु व तिर्य. आनु, दुर्भग, अनादेय,
तिर्य, आनु. अयश
सम्य. -४ भूलोघवत्
आहा,द्वि -२ पुरुषवेद, क्रोध, मान, माया
गुणस्थान सम्भव नहीं उदय योग्य--पुरुष वेदकी १०७-(आहा, नि, पुरुष वेद)+ स्त्री वैद -१०५ मिथ्यात्व
___-१ | सम्य मिश्र -२, अनन्ता चतु, देव मनुष्य तिर्य आनु मिश्र मोह
मिश्रमोह -१ अप्रत्या ४, देवगति व आयु, वैक्रि
सम्य. -१ द्वि., दुर्भग, अनादेय, अयश =११ मूलोघवत् स्त्यानगृद्धि त्रिक सम्य, मोह, ३ अशुभ सहनन मूलोघवत् स्त्री वेद, क्रोध, मान, माया -४
गुणस्थान सम्भव नहीं
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