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________________ इतिहास ३. ऐतिहासिक राज्यवंश सवत् ६५० में अर्थात वीर निर्वाणके ११२० वर्ष पश्चात स्थापित हुआ था । इसीको मुहर्रम या शाबान सन् भी कहते है। १. मघा संवत निर्देश म. पु.७६/३६६ कल्की राजाकी उत्पत्ति बताते हुए कहा है कि दुषमा काल प्रारम्भ होनेके १८०० वर्ष बीतने पर मधा नामके संवत में कसकी नामक राजा होगा। आगमके अनुसार दुषमा कालका प्रादुर्भाव की नि के ३ वर्ष व ८ मास पश्चात् हुआ है। अतःमधा संवत्सर वीर निर्वाणके १००३ वर्ष पश्चात प्राप्त होता है। इस सवत्सरका प्रयोग कहीं भी देखनेमे नहीं आता। १०. सर्व संवत्सरोंका परस्पर सम्बन्ध निम्न सारणीकी सहायतासे कोई भी एक संवत् दूसरेमें परिवर्तित किया जा सकता है। कम नाम संकेत श्वी नि २ विक्रम ३ईसवी ४ शक । ५ गुप्त ६ हिजरी १/ वीर । वी. निर्वाण नि. पूर्व ४७० पूर्व ५२७ पूर्व६०५ पूर्व८४६ पूर्व ११२० २ विक्रम वि ४७० १ , ५७.१३५,३७६ ,६५० ३ ईसवी ई ५२७ । ५७१ ।., ७८.३१६,५६३ ४ शक श६०५ | १३५७८ | १ २४१,५१५ 1 ग |८४६ । ३७६ ३११२४१ १ ,२७४ ६ हिजरी। हि ११२० । ६५० ५६४५३५ । २७४ १ ३ ऐतिहासिक राज्यवंश १. भोज वंश द सा /प्र ३६-३७ (बगाल एशियेटिक सोसाइटी बाल्यूम ५/पृ. ३७८ पर छपा हुआ अर्जुनदेवका दानपत्र); (ज्ञा /प्र/प पन्नालाल)- यह वंश मालवा देशपर राज्य करता था। उज्जैनी इनकी राजधानी थी। अपने समयका बड़ा प्रसिद्ध व प्रतापी व श रहा है। इस वशमे धर्म व विद्याका बडा प्रचार था। बगाल एशियेटिक सोसाइटी वाल्यूम पृ ३७८ पर छपे हुए अर्जुनदेवके अनुसार इसकी बशावली निम्न प्रकार है। समय नाम वि.स | ईसवी सन् विशेष सिहल ६५७-६६७ | ६००-६४० दानपत्रसे बाहर ६१७-१०३१ ६४०-१७४ | इतिहासके अनुसार मुञ्ज ११०३१-१०६० १७४-१००३ दानपत्र तथा इतिहास सिन्धु राज १०६०-१०६५/१००३-१००८ | इतिहासके अनुसार १०६५-१११२/१००८-१०५५ / दानपत्र तथा इतिहास | जयसिंह राज १११२-१११५१०५५-१०५८ | उदयादित्य १११५-११५०१०५८-१०६३ समय निश्चित है नरधर्मा ११५०-१२००/१०६३-११४३ यशोधर्मा १२००-१२१०१९४३-११५३ दानपत्रसे बाहर अजयवर्मा १२१०-१२४६११५३-११२) विन्ध्य वर्मा १२४६-१२५७१९६२-१२०० | इसका समय निश्चित विजय वर्मा सुभटवर्मा १२५७-१२६४/१२००-१२०७ / १३ | अर्जुनवर्मा १२६४-१२७५/१२०७-१२१८ १४ | देवपाल १२७५-१२८५१२१८-१२२८ १५ | जैतुगिदेव १२८५-१२६६१२२८-१२३६ ) (जयसिह) नोट इस वंशावलीमे दर्शाये गये समय, उदयादित्य व विन्ध्यवर्माके समयके आधारपर अनुमानसे भरे गये है। क्योकि उन दोनों के समय निश्चित है, इसलिए यह समय भी ठीक समझना चाहिए । २. कुरु वंश इस वशके राजा पाठचाल देशपर राज्य करते थे। कुरुदेश इनकी राजधानी थी। इस वशमें कुल चार राजाओका उल्लेख पाया जाता है-१ प्रवाहण जैबलि (ई. पू १४००), २ शतानीक (ई. पू. १४००-१४२०), ३ जन्मेजय (ई.पू. १४२०-१४५०) ४. परीक्षित (ईपू १४५०-१४७०)। ३ मगध देशके राज्यवंश १ सामान्य परिचय जे पी /पु-जैन परम्परामें तथा भारतीय इतिहास में किसी समय मगध देश बहुत प्रसिद्ध रहा है। यद्यपि यह देश बिहार प्रान्तके दक्षिण भागमे अवस्थित है, तथापि महावीर तथा बुद्धके काल में पाब, सौराष्ट्र, बङ्गाल, बिहार तथा मालवा आदिके सभी राज्य इसमे सम्मिलित हो गये थे। उससे पहले जब ये सब राज्य स्वतन्त्र थे तब मालवा या अवन्ती राज्य और मगध राज्यमें परस्पर कड" चलती रहती थी। मालवा या अवन्ती की राजधानी उज्जयनी थी जिसपर 'प्रद्योत' राज्य करता था और मगध की राजधानी पाटलीपुत्र (पटना) या राजगृही थी जिसपर श्रेणिक बिम्बसार राज्य करते थे। प्रद्योत तथा श्रेणिक प्राय समकालीन थे। प्रद्योतका पुत्र पालक था और श्रेणिकके दो पुत्र थे, अभय कुमार और अजातशत्र कुणिक । अभय कुमार श्रेणिक्का मन्त्री था जिसने प्रद्योतको बन्दी बनाकर उसके आधीनकर दिया था ।३२०। वीर निर्वाणवाले दिन अवन्ती राज्यपर प्रद्योतका पुत्र पालक गद्दी पर बैठा । दूसरी ओर मगध राज्यमें बी नि.सेहवर्ष पूर्व श्रेणिकका पुत्र अजातशत्र राज्यासीन हुआ (३१६। पालकका राज्य ६० वर्ष तक रहा। इसके राज्यकाल में ही मगधकी गद्दीपर अजातशत्रु का पुत्र उदयी आसीन हो गया था। इसने अपनी शक्ति बढा ली थी जिसके द्वारा इसने पालको परास्त करके अवन्तीपर अधिकारकर लिया परन्तु उसे अपने राज्य में नहीं मिला सका। यह काम इसके उत्तराधिकारी नन्दिवर्धनने किया। यहाँ आकर अवन्ती राज्यकी सत्ता समाप्त हो गई ।३२८,३३१। श्रेणिकके वशमे पुत्र परम्परासे अनेको राजा हुए। सब अपनेअपने पिताको मारकर गज्यपर अधिकार करते रहे, इसलिये यह सारा बंश पितृघाती कुल के रूप में बदनाम हो गया। जनताने इसके अन्तिम राजा नागदासको गद्दे से उतारकर उसके मन्त्री सुसुनागको राजा बना दिया। अवन्तीको अपने राज्य में मिलाकर मगध देशकी वृद्धि करने के कारण इसीका नाम नन्दिवर्धन पड गया।३३।यह नन्द वंशका प्रथम राजा हुआ। इस व शने १५५ वर्ष राज्य किया। अन्तिम राजा धनानन्द था जो भोग विलासमें पड़ जाने के कारण जनताकी दृष्टिसे उतर गया। उसके मन्त्री शाकटालने कूटनीतिज्ञ चाणक्य की सहायतासे इसके सारे कुल को नष्ट कर दिया और चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बना दिया ।३६॥ चन्द्र गुप्तसे मौर्य या मुरुड वशकी स्थापना हुई, जिसका गज्यकाल २५५ वर्ष रहा कहा जाता है। परन्तु जैन इतिहासके अनुसार वह ११५ वर्ष और लोक इतिहासके अनुसार १३७ वर्ष प्राप्त होता है। इस व शके प्रथम राजा चन्द्रगुप्त जैन थे, परन्तु उसके उत्तराधिकारी बिन्दुसार, अशोक, कुनाल और सम्प्रति ये चारों राजा बौद्ध हो गये थे। इसीलिये बौद्धाम्नायमें इन चारोका उल्लेख पाया जाता है, जबकि जैनाम्नायमें केवल एक चन्द्रगुप्तका ही कार देकर समाप्तकर दिया गया है ।३१६। इसके पश्चात् मगध देशपर शक वशने राज्य किया जिसमें पुष्यमित्र आदि अनेको राजा हुए जिनका शासन २३० वर्ष रहा। अन्तिम राजा नरवाहन हुआ। तदनन्तर यहाँ भृत्य अथवा कुशान हर्ष MMG.mec was 4 भोज जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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