SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आबाधा चाहिए। इस प्रकार आबाधाके इस अन्तिम समयमें बन्धके योग्य स्थिति विशेषोकी एक आबाधा काण्डक संज्ञा है । यह अभिप्राय है। आभाचा द्विपरम समयकी विवक्षा करके इसी प्रकार द्वितीय अबाधा काण्डकको प्ररूपणा करना चाहिए। आबाधाके त्रिचरम समयको विमक्षा करके पहिले के समान तृतीय आवाधाण्डकी प्ररूपणा करना चाहिए। इस प्रकार जघन्य स्थिति तक यही क्रम जानना चाहिए। इस सूत्र के द्वारा एक आबाधा काण्डकके प्रमाणकी प्ररूपणा की गयी है। एक-एक आबाधा स्थान सम्बन्धी जो पत्योपके असंख्यातवें भाग मात्र स्थितिबन्ध स्थान है उनकी आबाधा काण्डक संज्ञा है । २. आबाधा सम्बन्धी १. आबाधा सम्बन्धी सारणी विषय १. उदय अपेक्षा गोक/भा.संह पचेका मिध्यास्स समयोन मुहूर्त ७००० वर्ष १५०/१८५ कर्म सामान्य आबाधा १५६/९८१ आयुके बिना हमको प्रतिसागर स्थितिप्रतिको को सागर परसाधिक पर १०० वर्ष सं उच्छ् वास (घ. ८/१०२) असाद्धा अत-कोडि पूर्व वर्ष मुहूर्त आ बसं आयु बन्ध भये पीछे शेष भुज्य मानायु प्रमाण १९५/११०० ६/१६६/१३) आयुकर्म (पमान कुछ नियम गोक ११० आयुकर्मका सामान्य नियम गोमू. १५६ गो. ११८ आबाधा काल गो. १९४६२५६२७२ को अन्तहूर्त से. सा. वाला कर्म जघन्य Jain Education International उत्कृष्ट आपली X २ उदीरणा अपेक्षा आयु बिना कमौको बध्यमानामु भुज्यमाना के कर्मभूमिया) कहली पाठ द्वारा उदीरणा होवे, इसलिए उसकी आबाधा भी नहीं है। देव, नारकी व भोग भूमियों में आयुको उदीरणा सम्भव नहीं । ★ कर्मोंकी जघन्य उत्कृष्ट स्थिति व तत्सम्बन्धित आबाधा काल दे, स्थिति । २. आबाधा निकालनेका सामान्य उपाय प्रत्येक एक कोडाकोडि स्थितिकी उत्कृष्ट आबाधा - १०० वर्ष ७० मा ३० कोडाकोडी स्थितकी उत्कृष्ट आबाधा १००x३० या १००x१० - ७००० या ३००० या १००० १ लाख कोड सागर स्थितिको उत्कृष्ट आवाधा - १०० १०० X ७० या वर्ष + (१०x१०) - १ वर्ष १०० काड सागर की उत्कृष्ट आबाधा - १ वर्ष + (१०×१०×१०) - १/१००० वर्ष १० कोड़ सागरकी उत्कृष्ट आबाधा - - ३६५x२४४६० - ५२१४ मिनिट १२५१२३७ कोड सागरकी उत्कृष्ट आधा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त १०,००० २५ २४९ अन्तर्मुहूर्त X X नोट - उदोरणाको अपेक्षा जघन्य आबाधा, सर्वत्र आवली मात्र जानना, क्योंकि बन्ध हुए पोछे इतने काल पर्यन्त उदीरणा नहीं हो सकती । २. आबाषा सम्बन्धी कुछ नियम ३. एक कोडाकोड़ी सागर स्थितिकी आबाधा १०० वर्ष होती है घ. ६/१.६-६३१/१०२/८ सागरोमको डाकोडीर वाससमाभाषा होदि = एक कोडाकोडी सागरोपमकी आबाधा सौ वर्ष होती है । ४. इससे कम स्थितियोंकी आबाधा निकालनेकी विशेष प्रक्रिया घ. ६/१,६००,४/१८३/८सग-सगजा पमिद्धामाधाकंडएहि सगसगदी ओहदा सगसग बाबाधामुप्पतोदो न च सव्वजादी आषाधाकंडयानं सरिसत्तं, सरखेज्जवरसट्ट दिन धेसु अतो मुहुत्तमेत्तआबाधोवदिठिन समयमेत्तयामाधाकड सणादो। रादो खेचरूनेह जहणट्ठदिम्हि भागे हिदे संखेज्जावलियमेत्ता णिसेर्गाट्ठदीदो सखेज गुणहीणा जहण्णाबाधा होदि । - - अपनी-अपनी जातियों में प्रतिबद्ध आबाधा काण्डकोंके द्वारा अपनी-अपनी स्थितियोंके अपकिरनेपर अपनी-अपनी अर्थात प्रकृतियोंकी आमाधा उत्पन्न होती है । तथा, सर्व जातिवाली प्रकृतियों में आबाधाकाण्डको के सदृशता नहीं है, क्योकि सख्यात वर्षवाले स्थिति बन्धों में अन्तमुहूर्त मात्र आधा अपवर्तन करनेपर संपात समयमात्र आबाधाकान्हक उत्पन्न होते हुए देखे जाते है। इसलिए सख्यात रूपों से जयग्य स्थिति भाग देनेपर निषेक स्थितिये सख्यातगुणित होन संख्यात आवलिमात्र जघन्य आबाधा होती है । ५. एक आबाधाकाण्डक घटनेपर एक समय स्थिति घटती है ६/१.६.३/१४०/४०मामाधान एक दिउदिन धमागस्स समजविष्णवाससहसाणि आगाधा होदि एफ सदी चिमाधापर्ण जागिर दोहि आनाधार्कडरहि अभियमुदिदि मधमाणस्य आमाधा एकस्सिया मना होदि । तोहि आमाधारहि उणियमुस्सदिदि गयमाणस्स आबाधा उक्कसिया तिसमऊना । चउहि चदुसमऊणा । एवं दव्वं जाहिदिति सम्मामाधार बीचारात पत्त े समऊमाना धाकं उयमेतदोषमदा आबाधा होदि छिपेतम्य - एक आबाधा काण्डकसे होन उत्कष्ट स्थितिको बाँधनेवाले समयप्रबद्ध के एक समय कम तीन हजार वर्षकी आबाधा होती है। इसी प्रकार सर्व कर्म स्थितियोंकी भी प्ररूपणा जानकर करना चाहिए । विशेषता केवल यह है कि दो आबाधा काण्डकोंसे हीन उत्कृष्ट स्थितिको बाँधनेवाले जीवके समय प्रबद्ध की उत्कृष्ट आमाधा दो समय कम होती है। तीन आमाधाकाण्डकोसे होन उत्कृष्ट स्थितिको बाँधनेवाले जीवके समयप्रबद्धकी उत्कृष्ट आमाधा तीन समय कम होती है। चार आबाधा काण्डकोंसे हीनवालेके उत्कृष्ट आबाधा चार समय कम होती है। इस प्रकार यह क्रम विवक्षित कर्मको जघन्य स्थिति तक ले जाना चाहिए। इस प्रकार सर्व आबाधा काण्डको के विचारस्थानस्व अर्थात् स्थिति भेदाँको प्राप्त होनेपर एक समय कम बाधा काण्डकमात्र स्थितियोंकी आवाघा अवस्थित अर्थात् एकसी होती है, यह अर्थ जानना चाहिए। उदाहरण - मान लो उत्कृष्ट स्थिति ६४ समय और उत्कष्ट आबाधा १६ समय है । अतएव आबाधाकाण्डका प्रमाण ३४. १६-४ होगा । मान लो जघन्य स्थिति ४५ समय है। अतएव स्थितियोंके भेद ६४ से ४५ तक होंगे जिनकी रचना आमाधाकाण्डकोंके अनुसार इस प्रकार होगी १ प्रथमकाण्डक - ६४,६३,६२,६९ समय स्थितिकी उ. जमावा - १६ समय जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.016008
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages506
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy