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अल्पबहुत्व
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३. प्रकीर्णक प्ररूपणाएं
कौन र्मका अनुभाग
अल्पबहुत्त्व
कौन कर्मका अनुभाग
अल्पबहुत्व
स्तोक अनन्तगुणा
स्तोक
अनन्तगुणा
५. आयुतियंचायु मनुष्यायु नरकायु देव आयु
६. नामकर्म (गति)तिर्यंच गति नरक , मनुष्य , देव (जाति):चतुरिन्द्रिय त्रीन्द्रिय द्वीन्द्रिय एकेन्द्रिय पंचेन्द्रिय (शरीर)
औदारिक वैक्रियक तेजस कामंण आहारक (संस्थान):न्यग्रोध परिमण्डल स्वाति कुब्ज वामन
(उपधातादि)
स्तोक उपघात परधात
अनन्तगुणा उच्छ्वास अगुरुलघु
७. गोत्र कर्मनीच गोत्र
स्तोक ऊच गोत्र
अनन्तगुणा ८. अन्तरायदान अन्तराये
स्तोक लाभ
अनन्तगुणा भोग उपभोग वीर्य (९) अष्ट कर्म प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभाग की ६४
स्थानीय परस्थान ओघ प्ररूपणा
(म ब. १/६४३६-४३६/२२-२२९) साता वेदनीय
सबसे तीव यश कीति
अनन्तगुणाहीन उच्च गोत्र
ऊपर तुल्य देव गति
अनन्तगुणा हीन कार्मण शरीर
स्तोक अनन्त गुणा
स्तोक अनन्तगुणा
तेजस
॥
स्तोक अनन्तगुणा
हुण्डक
स्तोक अनन्तगुणा
ऊपर तुल्य अनन्तगुणा हीन
विशेष हीन
स्तोक अनन्तगुणा
आहारक, वैक्रियक , मनुष्य गति औदारिक शरीर मिथ्यात्व केवल ज्ञानावरण केवल दर्शनावरण असाता वेदनीय वीर्यान्तराय अनन्तानुबन्धी लोभ
माया क्रोध मान लोभ माया क्रोध
मान प्रत्याख्यान लोभ
माया क्रोघ
मान अप्रत्यारुमान लोभ
माया कोध
मान मति ज्ञानावरण
संज्वलन
समचतुरस (अगोपांग):औदारिक वैक्रियक आहारक (संहनन):वज्र नाराच नाराच अर्ध नाराच कोलित असम्प्राप्त सृपाटिका वज्र ऋषभ नाराच (वर्ण) - अप्रशस्त वर्ण चतुष्क , प्रशस्त , , .
अंगोपांग):तिर्यच गत्यानपूर्वी नरक मनुष्य
" देव
अनन्तगुणा हीन विशेष हीन
अनन्तगुणा हीन विशेष हीन
स्तोक अनन्तगुणा
स्तोक अनन्तगुणा
अनन्तगुणा हीन विशेष हीन
अनन्तगुणा हीन
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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