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अल्पबहुत्व
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३. प्रकीर्णक प्ररूपणाएं
कौन कर्म का अनुभाग
अल्पबहुत्व
कौन कर्म का अनुभाग
अल्पबहुत्व
सर्वात तीव्र अनन्तगुणा होन
ओघवत
सर्वत' तीव अनन्तगुणा हीन
तीत्र अनन्तगुणा हीन
तीन
अनन्तगुणा हीन
सर्वात' तीव्र अनन्तगुणा हीन
ओघवत उपरोक्त बव नरक बत
सर्वात तीव अनन्तगुणा हीन
तिथंच बत ओघवत
(संस्थान) :समचतुरस्र
संस्थान हुण्डक न्यग्रोध परिमण्डल स्वाति संस्थान कुब्जक वामन
(अंगोपांग):आहारक
अंगोपांग क्रियक औदारिक
(संहनन) - वज्र ऋषभ नाराच संहनन असम्प्राप्त सृपाटिका वज्रनाराच नाराच अर्ध नाराच कीलित
(वर्ण) - प्रशस्त वर्ण चतुष्क अप्रशस्त
, , (आनूपूर्वी) - देवगति
आनुपूर्वी मनुष्य गति नरक तिथंच ,
(अगुरुलघु आदि) - अगुरुलधु उच्छवास परघात उपधात
(प्रशस्ताप्रशस्त युगल).सर्वां प्रशस्त प्रकृति .. अप्रशस्त
७ गोत्रकर्म:उच्च गोत्र नीच गोत्र
८. अन्तराय कर्म :वीर्यान्तराय उपभोग
अन्तराय भोग लाभ दान
आदेश प्ररूपणा - १ गति मार्गणा :
नरक गति में :नरक गति सामान्य में १-७ पृथिवी में
तियं च गति में - नरकायु देवायु मनुध्यायु तिथंचायु देव गति नरक गति तिर्सच गति मनुष्य गति शेष कर्म तिरुचो के अन्य विकल्पों में पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त
मनुष्य गति में - मनुष्य प व मनुष्यणीमे चारों गतियोंक, शेष कर्मों
का देवगति में,सर्व विकल्पों में
२. इन्द्रिय मार्गणा :सब एकेन्द्रिय तथा सब विकलेन्द्रियमें पंचेन्द्रिय प व अप, में
३. काय मार्गणा.पाँचौं स्थावर काय में प्रसप अप में
४. योग मार्गणा .पाँचो मनोय गी में पाँची वचन योगो में काय योगी सा. में औदारिक काय योगी में
मिश्र वै क्रियक व वै क्रियक मिश्रमें आहारक आहारक मिश्रमे कामण योग में
५ वेद मार्गणा:तीनो वेद व अपगत वेद में
६. कपाय मागणाचारो कषाय में
ओघवत
सर्वतः तीव्र अनन्तगुणा हीन
पंचे. तिथंच अप. बत ओघवत्
सनत तीव्र अनन्तागुणा हीन
पंचे. तिथंच अप. वत ओघवत
ओघवत
सर्वात तीव्र अनन्तगुणा हीन
सर्वात तीव अनन्तगुणा होन
मनुष्यणीवत तिर्यच सा बद देवगति वत् सर्वाथ मिद्धिवव औदारिक मिश्रवद
सर्जत तीव, अनन्तगुणा हीन
मूलोधवत्
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ओघवद
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जैनेन्द्र सिद्धान्त केश
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