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मल्पबहुत्व
२. ओघ व आदेश प्ररूपणाएं
सत्र
मार्गणा
२५ २रा अधो प्रैवेयक १६ १ला. . १७| आरण अच्युत १८ आनत प्राणत १६/७वीं पृथिवी नरक
६ठी . .
शतार-सहसार २२ शुक्र महाशुक्र २३. ५वीं पृथिवी नरक २४ लातव कापिष्ठ २६ ४थी पृथिवी नरक २६ ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर २७ ३री पृथिवी नरक समाहेन्द्र स्वर्ग २९| सनत्कुमार , ३० २री पृथिवी नरक ३१ मनुष्य अप.
ssior wrior upt aar
३२ ईशान देव ३३ ईशान देवियाँ ३४ सौधर्म देव ३५ देवियाँ ३६ १ली पृथिवी नरक ३७ भवनवासी देव ३८ , देवियाँ ३६ चे तिर्य योनिमति
गुण
अल्पबहुत्व कारण व विशेष सूत्र मार्गणा स्पान | अन्पमहुत्व कारण व विशेष स्थान गुणकार-सं, समय १६ वायु काय वा प. असं गुणे -प्रतरागुल/असं. तेज , , अप.
" , असं. लोक ५८ वन, अप्रति. प्रत्येक
बा. अप.
५६ वन, प्रति, प्रत्येक असं गुणे गुणकार - (ज. श्रे.)३
बा अप. या निगोद श्रे) ३ | ६० पृथिवी काय आ.अप , - (ज श्रे) ४ ६१अप् काय वा, अप,
असं, गुणे | गुणकार- अस, लोक ६२ वायु १० . .
तेज काय सू. .. पृथिवी,, ,,
विशेषाधिक उपरोक्त+वह/अस.लोक अप .. , ६६/ वायु , , तेज ,
सं गुणा पृथिवी,, ,
विशेषाधिक उपरोक्त+अस.लोक ६६ अप काय ,, ७०/ वायु , , ..
७१ अकायिक (सिद्ध) अनन्तगुणे ,, -अस समय
७२/वन साधारण वा पा ,,, ,, अप
असं गुणा | गुणकार-असं. लोक .. " , सा.
विशेषाधिक | पर्याप्त+अपर्याप्त ... -(ज श्रे)
असं. गुणे गुणकार - अस, लोक २- अस.
सं.गुणे " -सूच्यंगुल/अस. ७७ , , , सा विशेषाधिक | पर्याप्त + अपर्याप्त ३२ गुणी ७० वन साधारण सा.
सूक्ष्म सा+बादर सा. सं. गुणे ७६ निगोद
विशेष-वन, प्रति.३२ गुणी
प्रत्येक बा.सा, असं गुणे - गुणकार-(घनौगुल)३] ८.योग मार्गणा
" | (घनागुल)३ -स | १ सामान्यकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा३२ गुणी
(ष.व.७/२,११/सू.१०७-११०) असं. गुणे |, - (अस ज श्रे) १०७ मनोयोगी सा.
स्तोक देव सा./असं, (३-स) १०८ वचन ।
सं. गुणे स.गुणे
अयोगी (सिद्ध)
अनन्त गुणे ३२ गुणी
११० काय योगी सं. गुणे
२ विशेषकी अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा३२ गुणी
(ष. खं/७/२, ११/सू.१११-१२६) सं. गुणे
१११/ आहारक मिश्र योग स्तोक विशेषाधिक उपरोक्त+बह-आ./अस. १९२ आहारक काय योग दुगुने
| बै क्रियक मिश्र,
असं. गुणे ११४ सत्य मनो योग
सं. गुणे अर्स गुणे | गुणकार- आ./असं..
११५ मृषा मनो योग |विशेषाधिक उपरोक्त+ह+आ./अस ११६ उभय ..
११७ अनुभय, ११८ मनोयोगी सा
विशेषाधिक चारों मनोयोगी ५१६ सत्य वचन योग
सं गुणे असं.गुणे गुणकार = पत्य/अस,
१२० मृषा , ,
१२१] उभय .. . " -आ./अस. १२२/ बैंक्रियक काय योग
(१२३ अनुभय वचन योग १२४/ वचन योगो सा. | विशेषाधिक | चारों वचन योगी
(१०६/
४० व्यतर देव ४१ , देवियाँ ४२ ज्योतिषी देव ४३ देवियाँ ४४ चतुरिन्द्रिय प. ४५ पंचेन्द्रिय प. ४६) द्वीन्द्रिय प. ४७त्रीन्द्रिय प. ४८ पंचेन्द्रिय अप ४ चतुरिन्द्रिय अप. ५० त्रीन्द्रिय अप
द्वीन्द्रिय अप. ५२ वन. अप्रति, प्रत्येक
बा, प. ५३ वन, प्रति प्रत्येक
| बा.प.या निगोद ५४ पृथिवी बा प. ५० अप, काय बा.प. ।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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