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आख्यानकमणिकोशे एत्वंतरि पत्तउ निरु गिजंतउ. चित्त मास महयरगणेण ॥१॥ वियसिया जत्थ सहयारतरुमंजरी, कामभल्लि व्व विरहियणसल्लंकरी । कुसुमिया किंया कीरचंचुप्पहा, विरहियणदहणपजलियचियासच्छहा । फुल्लिया मल्लिया फुरियवरगंधया, महुयरा जीए महुपाणमयअंधया । सहइ वियसंतिया कुंदकुसुमावली, नं वसंतस्सिरी दित्तदंतावली । पाडलापरिमलाइन्नमलयानिलो, नं महुत्थीए निम्सासवरपरिमलो । कोइलाकलयलारावबहिरियवणं पेच्छिउं पहियलोयाण झिजद मणं । सहइ पवणेण वणराइ कूयंतिया, नं समासाइउं वरमहुं मत्तिया । सुब्बए मंजुरुणझुणिर भमरावली, कामएवस्स नं गिज्जए कागली ।। इय अवरि वि तरुवर, विलिहियअंबर, नवपवाल भरमंथरिय ।
सिंगारियपुरिसिहि, कयमहहरिसिहि सहं कुसुमिहिं समलंकरिय ॥२॥ तथाहि
बियसिय कंकेल्लि सकंचणार, पुन्नाग नाग फुल्लिय अपार । ककोल लवल कयकुसुमबंध, पोमिणि पबुद्ध परिमलसुयंध । उम्मीलिय एलाऽगरु लवंग, हिंताल ताल कयकुसुमसंग । उन्जिभिय[....."]धवसणाह, कप्पूर कलिय कुसुमियससाह। मउरिय पिचुमंद निरंतराल, मंजरिय तिलय सपियंगुसाल । पसविय असेस कणियारयाउ, कलियाऽभिराम मालूस्याउ । मचकुंद कुंद कलिया विचित्त, जंबीर जाय पसविहिं पवित्त । केसर तमाल हुय कुसुमसार, विहसिय तरु अवरि वि बहुपयार ।। इय चित्ति पहुत्तइ, परहुयमत्तइ, कामकेलिविणिहियहियय । गीएहि गिजंतइ, जणि नच्चंतइ, चत्तारि वि उज्जाणि गय ||३|| आढत्त तेत्थु अंदोलिकील, तरुणीयणमणहरकामलील | तो मिलिए असेसए तरुणिवग्गि,, गणियागणि आगइमणहरिल्लि । जायउ अंदोलारुहणि ताहं, अन्नोन्न कलहु पन्नंगणाह ।। तो पभणिउ नयरमहाजणेण, किं गज्जहु अलियमडप्फरेण ?। जा चाई कणयह लक्खु देइ, जणि सज्जि पढम अंदोलएइ । तो ताहिं निरूविउ पियह वयणु, पडिभणिउ धणेसरु समयवयणु । हउ कामरइहि [ - - - - - - - - - - - - - - -----
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१. सुसाह -२०॥
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