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१. वेगु रं० ।
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५. भावनास्वरूपवर्णनाधिकारे भरताख्यानकम्
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किं कारणु उत्तावलउ भट्ट !, सो भणइ रिसहमुय गुरुमरट्ट । आभिट्टा गरि बलपट्टि जाएवडं तहिं मई गुणगरिट्ट ! | भो भट्ट ! भुंजि तुह होउ भद्दु, मं करि वियत्त इव उच्चसद्दु । जाणिस्स वइयरु अनिल वेगु, पियपरिभवु मुणि एही सुवेगु । जा एय तत्थ आलाच हुंति, ता अनिलवेउ' संपत्तु झति । महु दिउ किंपि हुसेनु देव ! मई समरि करेवी तायसेव || पुति पभवतिं गुणेहिं महंति, ताय ! जणेरह गुण कवणु ? । मइ रणि पइसेवउं, निरु जुज्झें [उं], एम्व भणि चल्लिउ गुणभवणु ॥ ३ ॥ तं सुणिवि नेहिं भोलविउ ताउ, बोल्लणह लग्गु पल्हायराउ । तुहुं अज्ज वि बालउ सवह सज्झु, अन्नायचक्कहरजु [ज्झ ] मज्झु । आयन्नचि तं निम्मलविवेउ, पभणिउ साहसघणु अनिलवेउ । ह बालु अकारणु ताय ! एउ, जइ जियह फुरइ अप्पणउं तेउ । किं कुद्ध सीह किसोर बालु, निद्दलइ न गयकुलु कमकराल ? | लहुयउ चिंतामणि जणि समत्थु, चितिथउ पणामइ किं न वत्थु ? । किं नासियतमभरु फुरियतेउ, न पयासह दीवउ गुरुनिकेउ ? | पज्दलियउ सिहिकणु अप्पयासि किं न कुणइ तणभरु भासरासि ? ॥ बाहुबलिहितायह, भरहह भायह, मइ साहेज्जु करेव । निच्छ जोएवड, रणि पइसेवउ, वइरिमाणु मलेव ||४|| दससहस समप्पिय मयगलाह, तत्तिय जि रहहं हयचंचलाहं । दसलक्ख हयह कयघणथडाह, सन्नद्धकोडि दुद्दमभडाह । इम् विसs कुमरु रणि बलमहंतु, भडसंकडि ददु मयवज्जु दिंतु । परिकुविउ सणिच्छरु जिम्व नियंतु, उत्थरिउ नाइ कुद्ध कियंतु । सायरजल जिम्ब महि रेल्लयंतु, सरधोरणिछाइयदहदियंतु ।
गुणकार भरि सलु, बंभंडखंडु नं फुडइ वियलु । अच्च पेच्छवि तं समम्गु, भरहेसरु सइ बोल्लणह लग्गु । अहु हु हु किं वरिसयालु ?, किं वा वि जुयवखइ पलयकालु ? ॥ अक्खड, भडयणसक्खिउ, अनिलवेउ एहु वावरइ ।
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साहिज्जइ आइउ, महिहिं न माइउ, जसु जसु तिहुयणु आवरइ ||५|| अह जावेव तेण बलुकाइउ, ता सुसेणु तमु सम्मुहु धाइउ | करयलकयदंडरयणु सुब्भड । हकंतउ दुप्पिच्छु दप्पुभडु । ओर चल रे निष्फलवग्गिय !, पाडमि तुह सिरि रोस निभग्गिय ! |
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ता गलगज्जइ मत्तउ मयगलु,
तो कुमरिं दंडाहिवु वुच्चइ, एहउ गव्वु महाभड मुच्चइ । कज्जदुवारि मुणिज्जइ भल्लउ, अप्पणि अप्पु न थुणइ महल्लउ ।
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