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५. भावनास्वरूपवर्णनाधिकारे भरताख्यानकम् ।
उद्दालइ अम्हह भरह रज्ज, किं ओप्प हुं ? भवहुं कि जुज्झसज्ज ? । इंगा लगदा गपमुह ताहं, दिट्टंत देवि विसइहिं स्याहं । संबुज्झह होह म मूढचित्त, वेयालिय अड्डाणवड़ वित्त । पडिबोहिय पढिवि जुगाइदेवि, निदेवि विसय कयभुत्रणसेवि ॥ फव्वइय महायस, वडियसाहस, सेविय दुक्कर तव चरण । उप्पाडिय केवल, खालिय कलिमल, विहरहिं वसिकयनियकरण ||५|| साहिवि वह नराहिवसाहणु, पविसइ नयरिहिं हय-गय-वाहणु । जिम्व चउवेड विप्पु मायंगेह, पविसद गेहि न वज्जियसंगहं । जिव गुणवंती का वि महासइ, वेसहं पाडइ कहवि न पइसइ । अकयपओयणु भिच्चु पहाणउ, जिम्व लज्जइ पेच्छंतेउ राणउ । तिम्व चक्कु विक्रयवंदणमालहिं, पविसद् नवरि न आऊहसालहिं । तं पक्खि विम्हि भरहेसरु,
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gat मंतिहिं पहु ! निमुणिज्जउ, कारणु चक्कपवेसि भरहेसरु | जिव कमचुक्कउ वणि पंचाणणु, कहवि न वंछड़ खरनहराणणु ॥ जिव को विकुलीण, मम्गनिलीणउ, महइ न माणु विणा सयणु । तिम्व माणधणेसरु, तक्खसिलेसरु, बाहुबलि वि तुह सासणु || ६ || ता अकपओणु चक्करयणु सट्टाणि न पइसइ दिव्वनयणु । अन्नु विआन व सामि !, तुह हियकरु सुरकरिलीलगामि ! | पइ भरह जित्तउं का देव !, बाहुबलि अलितई तुज्झ सेव । पय मुट्ठिपहारिहिं पहउ गयणु, किउ कुमउ मुयवि सञ्वन्नुवयणु । कण मेल्लिव रिसहेसरकुलेस ?, पइ कुक्कुस कुट्टिय कयकिलेस । चिरं निरत्थउं अंधयारि, किउ अग्गिहोमु निष्फलउ छारि । कि अंध मंडणू मुहह एउ, रोविउ अरन्नि पदं निव्विवेउ । उ दिन बहिरह कन्नजावु, एत्तिउ पयासु निष्फलउ सावु !!
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भरहु जिणंत, नउ अमुयंतइ, मुयह कलेवरु उच्चैलिउ । बाहुबलि अकायरु, लहुयउ भायरु, कारिउ सेव न जं बैलिउ ॥७॥ तं नच भर पपइ, भुंजउ रज्जु सु इंवइ संपइ ।
तिहु हु उ वय न भावइ, जगि अप्पणउ कु बंधव पावइ ? | सा संपय जासह दिज्जइ, तं फलु जं विहलहमुवउज्जइ । धतूरा कवणि खज्जह ?, किंपागह फल मुक्खु वि वज्जइ । किave घरि थुत्थुक्किय अच्छड़, लच्छिहि तर्हि कहि को मुहु पेच्छइ ? । लहुयसहोयर जं निकालिय, जणई दिन्न रज्जडं उद्दालिय ।
तंपि हु अज्ज वि पुट्टिहिं धावइ, दुव्विलसिड जिम्व मणु संतावइ । भरसर संतुट्ट सप्पड़, पुणरवि मंतिहि इम्व विन्नप्पद ॥
१. जिम रं० । २. • गहु रं० । ३. पिच्छंत रं० । ४. कुट्टिमपाय० रं । ५. उच्चलियउ रं० । ६. बलियउ । ७. संपइ रं० ।
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