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आख्यानकमणिकोशे
ताण तओ चत्तारि वि पुत्ता भणिऊण ताय : ताय ! त्ति । आरूढा उच्छंगे झड त्ति जखम्स पहमंता ॥ १२८ ।। तो तेऽभय-कय उन्ना एगंताओ विणिम्गया झत्ति । तं दट्टणं ताओ अवणमियमुहाओ जायाओ ॥ १२९ ।। तो अभएणं महिमा हकारिय हकिया तहा कहवि । जह चलणेसु निवडिया दोण्हं पि हु दीणमुहछाया ॥ १३० ।। इय सत्तकलत्तेहिं सहियम्स सुहाई भुंजमाणम्स । रजसिरिमणुहवंतम्स तस्स कालो अइक्कमइ ।। १३१ ॥ एत्थंतरम्मि भयवं भुवणगुरू वद्धमाणजिणनाहो । थुव्वंतो सुर-चारणनियरेण तहिं समोसरिओ॥ १३२ ॥ तो कय उन्नयराया गंतुं उज्जाणपालपुरिसेहिं । बद्धाविओ तओ ताण देह पीइप्पयाणं सो ॥ १३३ ॥ संचलिओ जयवारणमारूढो धरियधवलसिरछत्तो । सामंत-मंतिजुत्तो संपत्तो समवसरणम्मि ॥ १३ ॥ का पयाहिणतियं खोणीमंडलमिलंतभालयलो । पणमित्तु जिणं सिररइयअंजली थोउमाढत्तो ॥ १३५ ॥ जयकम्ममहावणदहणगहण दवजलण ! माणनिम्महण ? | जय करणतरंगिणिनाहमणवरमंदर ! नमो ते ।। १३६ ॥ इय संथणिण जिणं पणरवि पणमित्त सामिकमकमलं। नरनाहनियरनिम्सियसहाए गंतं समवविट्रो ॥ ३७॥ तयणंतरं जिणिदो दसणावलिकिरणधवलियदियन्तो । जलहरगंभीरसरेण देसणं काउमाढत्तो ॥ १३॥ हंहो ! संसारमहासमुद्दनिवडंतजंतुजायम्स । जिणधम्मजाणवत्तं मोत्तूण न अस्थि उत्तारो ॥ १३९ ।। धस्मेण असुर-नर-खयर-अमररिद्धीओ हुंति जंतूण । कि बहुणा ? सिवमुहमवि सत्ता पावंति धम्मेण ॥ १४० ॥ इय निसुणिऊण जिणनाहदेसणं पाणिणो भवविरत्ता । कयउन्नयनिवई वि य संविग्गो भणइ भयवंतं ॥ १४१॥ भयवं! कि मह असरिसरिद्धी भोगा य सुंदरा जाया ? | परमंतरायबहुला कारणमएसिमाइसह ॥ १४२ ॥ तो भयवया समग्गो पुत्वभवो अक्खिओ नरिंदम्स । जाव परमन्नथाले रेहाकरणा विपरिणामो ॥१४३ ॥ तो तेण खीरिदाणेण पाविया उभडा तए रिद्धी । रेहाभावखएणं जायं भोयंतरायं पि ॥ १४४ ॥ तं सोउं कयउन्नयरोया संजायजाइसरणेण । अवलोइय पुत्वभवं जह कहियं जिणवरिंदेण ॥ १४५ ॥ जंपइ जहा जिणेसर ! तुमए कहियं तहा मए दिढें । इय जंपिडं नरिंदो पणामपुव्वं पुणो भणइ ॥ १४६ ॥ नाह ! तुह पायपासे फव्वज्जमहं करेमि भवमहणिं । आउच्छिऊण सेणियनिवाइ तो पभणिओ पहुणा ॥१४७ ॥ भो भो देवाणप्पिय ! मा पडिबंधं करेज्ज तो राया। पणमित्तु सामिसालं गओ य सो नयरमज्झम्मि ॥१४८॥ आपच्छिऊण सेणियनरेसरं नियसुयाण रज्जसिरिं । सव्वं पि विभइऊणं घोसाविय अभयदाणाइ ॥१४९ ॥ परिपाउं जिणिंदे सम्माणिय चउविहं समणसंघं । आरुहि सिबियाए सकलत्तो पुत्तसंजुत्तो ॥ १५०॥ सेणियनरेसरेणं अणुगम्मतो जणेण थुव्वंतो । महया महूसवेणं समागओ समवसरणम्मि ॥ १५१ ॥ जिणचरणकमलपणओ सकलत्तो दिक्खिओ जिणिंदेणं । कयपंचमुट्टिलोओ तो उवणीओ गणहराण ॥ १५२ ।। अज्जाउ चंदणज्जाइ अप्पिया तयणु मुणियसुत्तत्थो । गीयत्थो संजाओ चरिउ अइघोरतव-चरणं ॥ १५३ ॥ काऊण कालमासे कालं संलेहणाए कयकिच्चो । परिवत्तियनवकारो उववन्नो देवलोगम्मि ॥१५४॥
॥ कृतपुण्यकाख्यानकं समाप्तम् ॥ ६ ॥ इदानीं द्रोणाद्याख्यानकमारभ्यते । तच्चेदम्
निस्सेसदेसवसुहाविहूसणे कोसलम्मि देसम्मि । सिरिउरनयरं सिंगारमंदिरं आसि लच्छीए ॥१॥ तत्थऽस्थि कलानिलओ निहणियनिम्सेसदोसतमपसरो । तारावइ ब्व तारापीडो नामेण नरनाहो ॥ २ ॥ तम्सऽस्थि कामरइकेलिकुलहरं कामघरिणिसमरुवा । सयलंतेउरसारा देवी रदमुंदरी पचरा ।। ३ ।। निवसति तत्थ चत्तारि सेट्टिपुत्ता विसिट्टगुणजुत्ता। सुधण-धणवइ-धणीसर-धणया धणरिद्धिपरिकलिया ॥ ४ ॥ अह अन्नया कयाई अम्मा-पियराणि वंचिउंचलिया। दविणाय रयणदीवे दोणभिहाणक्ककम्मयरा ॥ ५ ॥ वच्चंताणं ताणं समागया कत्थई वियडअडवी । तो तेहि तत्थ पडिमापडिवन्नो मुणिवरो दिट्टो॥६॥ हरिसाऊरियहियएहिं तयणु गुरुभत्तिनिव्भरं भणिओ। संबलयमिणं दोणय ! देहि मुणिंदम्स एयस्स ॥७॥
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