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हिन्दी-गुजराती धातुकोश वह व्याकरण और दर्शन दोनों क्षेत्रों की उपलब्धि के रूप में हमें प्रभावित करता है. क्योंकि 'शब्द की सीमा के अंतर्गत प्रातिपदिक, धातु आदि संकल्पनात्मक संज्ञाओं का भी समावेश है. भारतीय चिन्तन के वाक्केन्द्रित होने का रहस्य स्पष्ट करते हुए मिश्रजी ने भर्तृहरि की यह उक्ति उद्धृत की है : 'अनुविद्धमिव ज्ञानं सर्व शब्देन भासते' - प्रत्येक ज्ञान शब्दविद्ध होकर ही ग्राह्य बनता है. ' 'शब्दविचार - भारतीय दृष्टिकोण' नामक लेख में डा. मा. गो. चतुर्वेदी ने कहा है :
"संस्कृत वैयाकरणों ने जिस प्रकार दार्शनिक स्तर पर शब्दों को ब्रह्म आदि माना है, उसी प्रकार भाषा-वैज्ञानिक स्तर पर भी शब्द को मूलतः एक आंतर यथार्थ ही माना है, जो मानवीय बुद्धि, मन और प्राण में प्रतिष्ठित रहता है तथा वक्ता में विवक्षा के होने पर, वही वर्णात्मक ध्वनियों के रूप में व्यक्त होता है. पतंजलि ने अपने महाभाष्य में शब्द की जो परिभाषाएँ स्थान-स्थान पर दी हैं, उनसे भी यही सिद्ध होता है कि 'शब्द' के दो पक्ष हैं, एक आंतरिक और दूसरा बाह्य. शब्द के आंतरिक पक्ष को उन्होंने भी स्फोट कहा है और बाह्य पक्ष को ध्वनि.""
'शब्द' के ये दोनों पक्ष धातु-विचार के संदर्भ में भी प्रस्तुत हो सकते हैं. परन्तु हमें यहाँ तो केवल भारतीय व्याकरण-शास्त्र की सीमा में रहकर ही कहना है कि क्रियावाचक रूप का मूल है धातु.
संस्कृत धातुपाठ पर उल्लेखनीय शोधकार्य करनेवाले डा० गजानन पलसुले कहते हैं :
By the term dhato, then, the grammarians understood that souud-unit which characterized by a certain meaning ( action ), was found to be a kernal of a group of related words. 7
-वैयाकरणों की दृष्टि से सम्बन्धित शब्दों के वर्ग में समान रूप से व्याप्त किसी अर्थविशेष ( क्रिया) करनेवाली ध्वनि-इकाई ही धातु है.
भाष्यकार ने इसे 'क्रियावचनो धातु : ' और यहाँ तक कि 'भाववचनो धातुः' भी कहा है:
(1) a root; the basic word of a verbal form, defined by the Bhasyakara as क्रियावचनो धातु : or even as भाववचनो धातु : a word denoting a verbal activity, Panini has not defined the term as such, but he has given a long list of roots under ten groups, named dasagani, which includes about 2200 roots which can be called primary roots, as contrasted with secondary roots. The secondary roots can be divided into two main groups (1) roots derived from roots (धातुजधातवः) and (2) roots derived from nouns (नामधातवः) The roots derived from roots can further be classified into three main subdivisions : (a) causative roots, or णिजन्त, (b) desiderative roots or सन्नन्त, (c) intensive roots or यङन्त and यङगन्त while roots derived from nouns or denominative roots can further be divided into क्यजन्त, काम्यजन्त, क्यङन्त, क्यबन्त, णिङन्त, क्विबन्त, and the miscellaneous ones (प्रकीर्ण) by the application of the affix यक् or from nouns like सत्य
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