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गुजराती धातुएँ दी हैं । हिन्दी-गुजराती का कोई तुलनात्मक धातुकोश नहीं है। इस क्षेत्र में मेरा यह प्रयास प्रथम होगा जो विद्वानों की सहायता से भविष्य में अधिकाधिक निर्दोष भी हो सकता है।
आधुनिक भाषाविज्ञान का आरंभ तुलनात्मक भाषाशास्त्र से हुआ। हिन्दी और गुजराती दोनों परस्पर प्रभावित आधुनिक भारतीय आर्य-भाषाएँ हैं। एक के गहरे अध्ययन के लिए दूसरी भाषा का ज्ञान उपयोगी हो सकता है। जब राष्ट्रीय और शैक्षणिक दृष्टि से हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन का प्रचार और प्रसार आवश्यक हो तब ऐसे प्रयत्नों की उपयोगिता स्वयं स्पष्ट है, परन्तु शोधकर्ता का प्रथम लक्ष्य तो वह संतोष है जो अज्ञात के ज्ञात होने से प्राप्त होता है।
दो भाषाओं की धातुओं के बीच साम्य-वैषम्य की सैद्धान्तिक भूमिकाएँ स्पष्ट करने के साथ-साथ उम्मीद है कि यह प्रयत्न शब्दकोशीय सामग्री-संरक्षणशास्त्र - 'लेक्सिको-स्टेटिस्टिक्स' की दृष्टि से भी कुछ उल्लेखनीय निष्कर्ष तक पहुंचेगा।
प्रस्तुत शोधप्रबन्ध के प्रकाशन के लिए डा. नगीनभाई जी. शाह, पंडित दलसुखभाई मालवणिया तथा एल. डी. इन्स्टीटयुट आफ इण्डालाजी का अनुगृहीत हूँ। और भायाणीसाहब ? इस युग में भी होते हैं ऐसे दाता, निर्हेतुक विद्यादान के लिए सदा उत्सुक और प्रसन्न !
रघुवीर चौधरी
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