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________________ प्राचीन ग्रन्थों में वैशाली का बहुत सम्बद्ध तथा वैभवशाली नगर के रूप में वर्णन किया गया है। लिच्छवी गण की राजधानी होने के अतिरिक्त यह बज राज्य संघ जिसमें कुल मिलाकर पाठ गणराज्य सम्मलित घे की भी राजधानी थी। इस दिशा में बिलकुल स्वाभाविक है कि यह बहुत ही उन्नत और समृद्ध दशा को पहुँचा होगा। वर्तमान समय में बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर जिले में बसा नामक एक गांव है जो गण्डक नदी के बायें तट पर स्थित है। इसी स्थान पर प्राचीन समय की प्रसिद्ध वैभवशाली वैशाली नगरी विद्यमान यी । ३४ वैशाली के निवासियों में उच्च, मध्य, वृद्ध, ज्येष्ठ आदि के भेद का विचार नहीं किया जाता या वहां प्रत्येक प्रादमी अपने विषय में सोचता था कि वह स्वयं राजा है, और कोई किसी से छोटा बनना स्वीकार नहीं करता था । निधी राज्य की राजसभा के अधिवेशन सभ्यागार में होते थे । इस सभा में कितने लिच्छवी 'राजा' सम्मलिए होते थे, इसका निर्देश भी बौद्ध साहित्य में मिलता है एक पण जातक में लिखा है कि वैशाली में जो राजा राज्य करते हैं, उनकी संख्या सात हजार मात सौ सात है। साथ ही राजाओ के साथ शासन करने वाले उपराजा, सेनापति और भाण्डागारिकों की संख्या भी इतनी ही है। यह वेवल इतना ही सूचित करता है कि लिच्छवी राज्य में शासन करने वाली श्रेणी बहुत बड़ी थी कुछ ऐतिहासकारों का मत है का मत है कि यह सात हजार सात सौ सात शासक परिवार थे । Jain Education International वैसे तो वैशाली को ग्राबादी बहुत थी । महात्मा बुद्ध वहां जब यात्रा करते हुये पहुँचे तो १,६८,००० प्रादमी उनका स्वागत करने के लिये आये । इससे वैशाली की आबादी के घनत्व पर प्रचुर मात्रा में प्रकाश पड़ता है । इन राजाओं का राज्याभिषेक भी होता था, क्योंकि प्रत्येक लिच्छवि अपने को राजा समझता था। राज्य में एक शासनाधिकारी होता था, जिसे नायक कहते थे । इस नायक की नियुक्ति निर्वाचन द्वारा होती थी। सम्भव है कि लिच्छवि राजाओं में प्रधान प्रथमा राष्ट्रपति का कार्य यही नायक करता हो। इसका कार्य विि राजसभा के नियमों को क्रिया रूप में परिणत करना होता था । लिच्छवि का यह शक्तिशाली राज्य समीप के साम्राज्यवादी शासकों की दृष्टि में अखर गया। इस राज्य की स्वतंत्रता का विनाश मगधराज के प्रजातशत्रु ने किया। ऐतिहासिक पृष्ट भूमि अवलोकन करने से स्पष्ट हो गया कि जैन धर्म ने राज्य व्यवस्था को अच्छी तरह प्रभावित किया है। जैन आचायों का यह कम रहा है कि वे सदैव से ही अपने ध्येय सिद्धि करने के लिये शनिभर स्वयं भाग लेते हैं और अपने पास पास शक्तिशाली (सम्प्रभू) लोगों को सत्ता का भी अधिक से अधिक उपयोग करते पाये है जो कार्य वे स्वयं सरलता से नहीं कर सकते उस कार्य की सिद्धि के लिये अपने अनुयायी या धनुयायी राजा, मंत्री धीर दूसरे अधिकारी तथा अन्य समर्थ लोगों का पूरा २ उपयोग करते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014041
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1964
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size15 MB
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