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भारतीय भाषाओं को बेन साहित्यकारों की देन
• मुनि श्री बुद्धमल्लजी
जैनों के मूल आगम संस्कृत में न होकर उस समय जनसामान्य की भाषा प्राकृत ( अर्ध-मागधी ) में लिखे गए। स्वयं भगवान् महावीर ने पाबाल-गोपाल द्वारा समझी और बोली जाने वाली अर्ध-मागधी को ही अपने उपदेश का माध्यम बनाया। उसका बिहार क्षेत्र मुख्यतः मागध और उसके पास-पास का क्षेत्र था । मागध में बोली जाने वाली उस समय की जन-भाषा को मागधी कहा जाता था। भगवान् महावीर की भाषा को अर्ध-मागधी इसलिए कहा गया कि वह मागधी से कुछ भिन्न थी। मागध के सीमान्त प्रदेशों तथा अन्य प्रदेशों की अठारह भाषाओं का उस पर प्रभाव रहता था। इस नाम के पीछे दूसरा कारण यह भी बतलाया जाता है कि वह प्राधे मागध देश में बोली जाती थी।
मानव-संस्कृति के विकास में भाषा का अप्रतिम के विषय में वे बहुत ही उदार रहे हैं। वे जहां भी गए
योग रहा है । आज तक के सम्पूर्ण कला- प्रायः वहीं की भाषा को उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति का विकास तथा वैज्ञानिक उपलब्धियों के मूल में भाषा का माध्यम बनाने का प्रयास किया। वे उस कार्य में दो वरद हाथ रहा है। मनुष्य में यदि भाषा-शक्ति का सफल तो हुए ही साथ ही साथ उन-उन भाषाओं को विकास नहीं होता तो यह संसार पशुओं के विभिन्न भी उन्होंने बहुत बड़ी देन दी। एक प्रकार से उन्होंने चीत्कारों से ही भरा होता, न बातें होती और न विभिन्न जन-भाषाओं के साहित्य की सरिता बहा दी। पस्तकें न सरस भावाभिव्यक्तियां होती और न विचारा जैनों के मूल पागम संस्कृत में न होकर उस समय का आदान-प्रदान, सब कुछ या तो मूक ही होता या जन-सामान्य की भाषा प्राकृत ( अर्धमागधी ) में लिए फिर चीत्कार पूर्ण ही। वस्तुतः भाषा का जल-सेक
गए। स्वयं भगवान् महावीर ने आबालगोपाल द्वारा पाकर ही मानवीय संस्कृति और सभ्यता का यह उपवन समझी और बोली जाने वाली अर्धमागधी को ही अपने अपनी सर्वाङ्गीण शोभा के साथ लहलहा रहा है। उपदेश का माध्यम बनाया । उनका विहार-क्षेत्र
हर प्रदेश की अपनी भाषा होती है। लोग उसे मुख्यतः मगध और उसके आसपास का क्षेत्र था। मगध प्यार करते हैं। जो उनकी भाषा में बोलता है उसकी में बोली जाने वाली उस समय की जनभाषा को मागधी बात आदर सहित सुनी और समझी जाती है। जो कहा जाता था। भगवान् महावीर की भाषा को वैसा नहीं करता या नहीं कर पाता उसे असफलता का अधमागधी इसलिए कहा गया कि वह मागधी से कळ म देखना पडता है। जैन श्रमणों ने इस तथ्य को भिन्न थी। मगध के सीमांत प्रदेशों तथा अन्य प्रदेशों बत गम्भीरता से ग्रहण किया था। इसीलिए भाषा की अठारह भाषामों का उस पर प्रभाव रहा था। इस
१-"बालस्त्रीमन्द मूर्खाणं, नृणां चारित्र काङ रक्षिणाम् अनुग्रहार्थ तत्वज्ञैः, सिद्धान्तः प्राकृतः कृतः।"
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