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प्रात्म विजय पर जोर देते हुए भगवान ने संयम के प्रति द्वष भाव को छिन्न-भिन्न करो, विषयों के कहा है कि :
प्रति राग भाव का नाश करो, ऐसा करने से ही संसार - इमेण चेब जुज्झाहि किं ते जुज्झेरा बज्झयो जुद्धा- में सुखी होंगे । रिहं खलु दुल्लभं ।
मनुष्य को कर्तव्य के प्रति सावधान करते हुए । अर्थात् तेरी आत्मा के साथ ही युद्ध कर, बाहरी युद्ध भगवान महावीर अपने प्रधान गणधर गौतम को सम्बोधन करने से क्या प्रयोजन है। दुष्ट प्रात्मा के समान युद्ध करने करते हुए कहते हैं :योग्य दूसरी चीज नहीं है।
दुम पतए पंड्यए निवडइ राइ गणाण अच्चए क्योंकिः
एवं मरणयारण जीवियं समयं गोयम मा पमायए। गुरणेहि साहू अगुरणेहिऽसाहू गिण्हाहि साहू गुण मुचऽसाह ।।
जैसे अनेक रात्रियों के चले जाने पर वृक्ष के पत्ते वियाठिया अप्पग पप्प एणं
पीले पड़कर झड़ जाते हैं उसी तरह मनुष्य जीवन भी जो राग दोसे हि समो स पुज्जो॥
आयु के समाप्त होने पर खत्म हो जाता है, इसलिए हे अर्थात् -मनुष्य गुणों से साधु होता है और दोषों गौतम ! क्षणभर भी प्रमाद मत करो। से असाधु ।
आज की दुनियां में संसार के राष्ट्र परस्पर अनेक इसलिए सद्गुणों को ग्रहण करो और दुर्गुणों को संघर्षों में लगे हुए हैं। छोड़ो। जो अपनी ही आत्मा के द्वारा अपनी आत्मा को
किसी को शान्ति नहीं है । एक दूसरे से भय भीत जानता है वही पूज्य है।
हैं । वे भयभीत ही सोते हैं और भयभीत ही उठते हैं । सखी होने का उपाय बतलाते हुए भगवान एक सब के मन में हिंसा है, इसलिए किसी का दिल साफ नहीं जगह कहते हैं कि :
है और घातक शस्त्रों के निर्माण की होड़ में एक दूसरे आयाब याही चय सोग्रमल्लं
को पीछे ढकेलना चाहते हैं । यह एक ऐसी समस्या है कामे कमाहि कमियं क्खु दुक्खं ।
जिसका हल किसी के पास नहीं है । यदि वे भगवान छि दाहि दोसं बिरणयेज्ज रागं
महावीर के उपदेशों का अनुसरण कर अहिंसा, सत्य, एवं सुहीं होहिसि संपराये ॥
और अपरिग्रह वाद को अपने जीवन में उतारें तो उनकी अर्थात-पात्मा को तपायो, सुकुमारता का त्याग सभी समस्याएं हल होकर जगत में स्थायी शान्ति करो, कामना को दूर करो अवश्य ही दुःख दूर होगा, उत्पन्न हो सकती है ।
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