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राजस्थान जैन सभा, जयपुर
कार्य-विवरण
राजस्थान, जैन सभा जैन समाज का एक मात्र
सभा की प्रवृत्तियां प्रतिनिधि संगठन है । वह अपने जीवन के ११ वर्ष समाप्त कर बारहवें वर्ष में पदार्पण कर रही है। अपने १. पयूषण पर्व इस अल्पकाल में वह जो कुछ कर पाई है उससे इस युवकों में धार्मिक विषयों का अध्ययन एवं मनन सभा की कार्य प्रगति का संकेत मिल सकता है। समाज करने की दिशा में रुचि बढ़े एवं जन साधारण में भी में प्राज से ११ वर्ष पूर्व कई संस्थायें विद्यमान थीं और धर्म के प्रति श्रद्धा बनी रहे इसी उद्देश्य से सभा ने सामाजिक कार्यकर्ता उनमें विभक्त थे । समाज के उत्साही प्रारम्भ से ही भाद्रपद मास में पर्युषण पर्व प्रायोजित नवयुवकों ने संगठन के महत्व को समझ परस्पर के किया है। समस्त मतभेदों को भुलाकर तत्कालीन संस्थानों के नाम
इस वर्ष पर्युषण पर्व की विशेषता यह रही है कि का मोह त्यागकर समाज के हित में राजस्थान स्तर पर
अनेक माने हुये विद्वानों के जैन धर्म और उसकी महत्ता एक संगठन बनाने का निश्चय किया। जिसके फलस्वरूप
पर महत्वपूर्ण भाषण हये । इस पर्व गज का उद्घाटन सन १९५२ में कई जैन संस्थानों के अभूतपूर्व एवं
राज्य के उद्योग एवं वित्त विभाग के उप मंत्री श्री चन्दनअद्वितीय एकीकरण से राजस्थान जैन सभा की स्थापना
मलजी वैद ने किया । पयूषण में प्रतिदिन जैन दर्शन
के प्रसिद्ध विद्वान पं० चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ के इस सभा की स्थापना समाज-हित को हाष्ट से ग्रोजस्वी एवं सारभित प्रवचन हए । प्रापके समस्त राजस्थान में जैन समाज के प्रत्येक स्त्री पुरुष को अतिरिक्त प्रतिदिन अधिकारी विद्वानों, बक्तामों प्रादि का संगठित करने, विभिन्न जैन संस्थानों से सम्पर्क स्थापित विभिन्न विषयों पर प्रभावोत्पादक एवं प्रेरणादायक करके एक सूत्र में लाने, जैन समाज की सर्वागीण भाषणों का प्रायोजन किया गया जिनमें सर्वश्री रामउन्नति के लिये यथा सम्भव प्रयत्न करने एवं जैन प्रसाद लढा. उप मंत्री, देवस्थान एवं राजस्व, समाज के हितों की रक्षा के लिये प्रयत्नशील रहने के डा० हीरालाल माहेश्वरी, राजस्थान विश्व विद्यालय, उद्देश्य से हुई।
डा० नरेन्द्र भानावत, राजस्थान विश्व विद्यालय ____ अपने उद्देश्य की पूर्ति में समाज में जीवन, जागृति श्री केवलचन्द ठोलिया, श्री मोहनलाल रांवका, श्री ताराएवं स्फूति उत्पन्न करने के अतिरिक्त जनमानस को चन्द शाह, श्री फूलचन्द जैन सदस्य विधान सभा, धर्म एवं कर्तव्य की ओर आकृष्ट करने के लिये अनेक डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल, डा० राजमल कासलीवाल, प्रवृत्तियां प्रारम्भ की।
प्रिन्सिपल मेडिकल कालेज, श्री कपूरचन्द्र पाटनी एवं
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