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सामना किया जाता है। इसी प्रकार न्याय, व्यक्तिगत का विरोध करने की प्रेरणा देता है। इसी प्रकार संचय पक्षपात और हित की उपस्थिति में तटस्थता धारण करने भी हमें व्यक्तिगत जीवन के प्रलोभन से दूर करने की का दृढ़ संकल्प है। इसी प्रकार विवेक का अर्थ सत्य को प्रेरणा देता है। हमारे जीवन में दो प्रकार के मुख्य जानने के लिए और कर्म को ज्ञान पर प्राधारित करने प्रलोभन उपस्थित रहते हैं। एक तो वह प्रलोभन है, के लिए दृढ़ निश्चय है।
जो हमें दुःख से दूर भागने की प्रेरणा देता है। दूसरा इस दृष्टि के कुछ अन्य गुणों को भी सद्गुण माना वह प्रलोभन है, जो हमें सुख की ओर आकर्षित करता जा सकता है। उदाहरणस्वरूप. बचत का पार्थिक है। जो व्यक्ति पहले प्रकार के प्रलोभन से प्रभावित सगुण, काम से सम्बन्धित ब्रह्मचर्य का सदगुण तथा होता है, वह पलायनवादी कहलाता है और जो विषयसामाजिक दृष्टि से निष्ठा का सद्गुण भी चार मुख्य भोग आदि में संलग्न हो जाता है, उसे सुखवादी कहते सद्गुणों के सदृश हैं किन्तु यदि इन सद्गुणों की व्याख्या हैं । इन दोनों अवगुणों से बचने का एकमात्र उपाय की जाय, तो इन सभी को चार मुख्य सदगुणों के साहस और संयम के द्वारा, बुद्धि की स्थिरता बनाए अन्तर्गत माना जा सकता है। इनमें वही समान तत्त्व रखना है । जो व्यक्ति स्थिर बुद्धि वाला है उसीमें ये उपस्थित रहता है, जो चार मूल सद्गुणों में है। दोनों सद्गुण उपस्थित रहते हैं। उदाहरणस्वरूप, बचत में विवेक के अतिरिक्त संकल्प का भारतीय तथा पश्चिमीय प्राचारशास्त्र के अध्ययन वह स्थायित्व है जो व्यक्ति को वर्तमान आर्थिक सुख की से हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं कि बुद्धि की स्थिरता अपेक्षा भविष्य के आथि:5 शुभ का निर्वाचन करने के ही व्यक्तिगत सद्गुणों का लक्ष्य है और वही नैतिकता
त करता है । इसी प्रकार ब्रह्मचर्य एक प्रकार का का उच्चतम प्रादर्श है । जिस प्रकार प्लेटो ने साहस और संयम है, किन्तु इसका मूल तत्त्व भी संकल्प का वह संयम के साय २ विवेक को अनिवार्य सद्गुण बताया है. स्थायित्व है जो व्यक्ति को वर्तमान शारीरिक कामवृत्ति उसी प्रकार भगवद्गीता में भी ज्ञान को संतुलित जीवन की तृप्ति की अपेक्षा उत्कृष्ट मूल्यों का निर्वाचन करने के लिए प्राधार माना गया है । कोई भी व्यक्ति तब तक के लिए प्रेरित करता है। इसी प्रकार सभी मूल्यों को संतुलित व्यक्तित्व बाला नहीं कहा जा सकता, जब तक चार मुख्य मूल्यों के अन्तर्गत किया जा सकता है ।। कि वह साहस और संयम के साथ २ विवेक न रखता
ये चारों मूल सद्गुण या तो व्यक्तिगत विकास के हो । जो व्यक्ति इन तीनों सद्गुणों का अनुसरण करता मूल्य हैं या सामाजिक कल्याण को प्रेरित करने वाले है, वह निस्सन्देह न्याय का भी अनुसरण करेगा। इस
किन्त इसका अभिप्राय यह नहीं कि इनको हम दो प्रकार यद्यपि हम साहस और संयम को व्यक्तिगत जीवन भागों में विभक्त कर सकते हैं। वास्तव में व्यक्ति कदापि । के आधारभूत सद्गुण मानते हैं, तथापि सम्पूर्ण वैयक्तिक समाज से पृथक नहीं हो सकता और जो सद्गुण व्यक्ति विकास के लिए विवेक तथा न्याय के सदगुण भी के विकास के लिए है, वही सामाजिक विकास के लिए उपयोगी होते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि चारों भी उपयोगी होता है। अतः एक दृष्टि से चारों सद्गुण मूल सद्गुण व्यक्ति तथा समाज के विकास के लिए सामाजिक सद्गुरण हैं। किन्तु साहस और संयम दो समान महत्त्व रखते हैं। सदगुण ऐसे हैं, जो प्रत्यक्षरूप से व्यक्ति के जीवन पर संकुचित दृष्टिकोण से सद्गुण को कर्तव्य से सम्बद्ध प्रभाव डालते हैं और विवेक तथा न्याय ऐसे सद्गुण हैं, किया जाता है । इस दृष्टिकोण से सद्गुरण चरित्र के वे जिनका सीधा सम्बन्ध सामाजिक कल्याण से है। यदि अंग तथा प्रादतें हैं जो कि व्यक्ति अपने कर्तव्यों का हम साहस का प्रथ, दुःख के भय का सामना करना एवं पालन करते हुए तथा अनेक प्रकार के अधिकारों का दःख सहन करने की वीरता समझे, तो इसका अभिप्राय उपभोग करते हुए ग्रहण करता है । इस दृष्टि से सद्गुरण यह होता है कि साहस व्यक्तिगत जीवन में हमें लोभ उत्कृष्टता का वह प्राकार है, जो शुभ संकल्प में
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