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________________ नीच कहेजाने वाले के यहां उत्पन्न होने से ही किसी से निश्चित राशि से अधिक धन धान्य, दासी दास, मकान घृणा करना उचित नहीं है । मानव की पूजा गुणों से की आदि संपत्ति किसी भी श्रावक को नहीं रखना चाहिये । जानी चाहिए जाति वर्ण एवं गोत्र से नहीं । भगवान यदि ये परिग्रह की वस्तुएँ अधिक होगी तो समाज में महावीर के इस क्रान्तिकारी कदम से बड़े २ पुरोहितों किन्हीं लोगों का ही प्रभुत्व रहेगा। समाज के सर्वोदय एवं पुजारियों के पासन हिल गये । उन्होंने सबको के लिए आवश्यक है कि धन धान्य आदि के वितरण जीवन विकास का समान अवसर दिया और इससे सारे एवं संग्रह में अधिक विभिन्नता न हो। किसी गृहस्थ के भारत में उस समय उपेक्षित, पददलित एवं पीडित पास जरूरत से इतना अधिक न हो कि वह उससे खाया समाज में पूनः प्राशा का संचार हया और वे भी अपने भी न जाय और दूसरे लोग भूखे पेट ही सोवें । महावीर विकास के सुनहले स्वप्न देखने लगे । ने सभी जीवनोपयोगी वस्तुओं का संग्रह करने पर अंकुश भगवान महावीर ने सर्वधर्म समभाव का भी। लगाने का प्रयत्न किया जिससे समाज में सभी सुखी उपदेश दिया। उनके समय में ३६३ प्रकार के विभिन्न एवं साधन सम्पन्न हो सकें । इस प्रकार महावीर ने परिग्रह परिणाम के नाम पर २॥ हजार वर्ष पूर्व ही मत मतान्तर प्रचलित थे और जो एक दूसरों को नीचा दिखलाने के लिये लड़ा करते थे। इसलिये महावीर ने समाजवाद के सिद्धान्त का सूत्रपात कर दिया था जिसकी आज चारों ओर चर्चा है। सबसे सर्वधर्म समभाव अपनाने के लिये कहा । और आ अनेकान्तवाद तथा स्याद्वाद के सिद्धान्त को जन्म दिया। भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित पंचागवत उन्होंने कहा कि प्राग्रह ही लडाई झगडे का कारण (अहिंसा सत्य अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं परिग्रह परिमाण । बनता है अतः सभी धर्मों का आदर करना चाहिए। जो आज भी जीवन के लिए उतने आवश्यक है जितने कि ये कुछ हम कहते हैं वहीं एक मात्र सही नहीं है किन्तु उस समय थे। आज जहां नैतिकता का दिनों दिन हास किसी दृष्टि से दूसरे का कथन भी सही हो सकता है । होता जारहा है, फैशन परस्ती बढ रही है तथा व्यक्ति इस सिद्धान्त को जीवन में उतारना चाहिए। तभी अपने कर्तव्य से विमुख होता जारहा है उस समय जगत में सुख शान्ति स्थापित हो सकती है । सर्वधर्म महावीर के इन सिद्धान्तों को जीवन में उतारा जाय समभाव के रूप में उन्होंने सहमस्तित्व के सिद्धान्त तो हम सबका जीवन फिर से सूखी एवं सम्पन्न बन का ही मानों प्रतिपादन किया जिसकी आज के युग में सकता है । इन उपदेशों को जीवन में उतारने के लिए सबसे अधिक आवश्यकता है। किसी सम्प्रदायवाद के चक्कर में पड़ने की आवश्यकता नहीं। धर्म के नाम पर समाज के नाम पर वर्ण भेद के पार्श्वनाथ के चातुर्याम धर्म में महावीर ने ब्रह्मचर्य नाम पर जो जगत् के कोने २ में अत्याचार एवं उत्पीडन व्रत को और जोड़ कर पांच व्रत किये । उस जमाने में हो रहा है वह तभी मिट सकता है जब हम अपने लोगों का चरित्र भी बहुत गिर चुका था तथा वे असंयमी जीवन में सर्वजीव समभाव ( अहिंसा ) सर्वधर्म समभाव बन चुके थे । कूमार्ग में जाने में जरा भी संकोच नहीं (अनेकान्त ) एवं सर्व जातिसमभाव के सिद्धान्तों को करते थे। स्त्रियों का बाजार लगता तथा वे बिका जीवन में उतारें। यदि हम ऐसा नहीं करसकें तो हमारा करती थीं । वैश्याओं की दुकानें लगती तथा अनैतिक समाज की भविष्य में क्या गति होगी इसका सहज ही व्यापार का भी बाहुल्य था। इसे रोकने के लिये महावीर अनुमान लगाया जा सकता है । आशा है भगवान महावीर ने ब्रह्मचर्य को जीवन का प्रमुख अंग घोषित किया। की इस पावन जयन्ती पर हम भारतीय फिर से उनके परिग्रह परिमाण व्रत के नाम पर महावीर ने द्वारा दिखलाये हये मार्ग पर चलने का पूनः प्रयास करेंगे आर्थिक समानता के सिद्धान्त को जन्म दिया। एक जिससे हम अपने जीवन का विकास कर सकें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014041
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1964
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size15 MB
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