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वरण करने वाले वीर दूल्हे का स्वागरूपक नमूने के लिए खिम्मा खड्ग ज्यार हाथ में, ग्यान घोड़े असवार दृष्टव्य है
मुकति रा डंका बाजिया, संजम सैन्या लार । (१) सील रथ के जुपादयो २ गुरुजी माने,
अचल अखै सुख मागवा, होय रह्या छो त्यार ।। मुगति को पंथ बतादयो। जड़ावजी अधिक पढ़ी लिखी न थी। चलती हुई दया धरम की भूल करणी कर फुघरमाल राजस्थानी में उन्होंने हृदय की भाव-घटा को विविध
बंदादयो २ गुरुजी० राग-रागिनियों के साथ बरसाया है । यह सहज अमृतक्रिया किलंगी, व्रत की बागा,
वर्षा कला-समीक्षकों को चाहे आकर्षित न कर सके पर मेमा का मुगट धरादयो २ गुरुजी० जो रस से मग्न होना चाहते हैं उन गोताखोरों को इसमें चेतन राजा माह विराज्या,
राशि राशि भावदर्शन मिलेंगे। __ जस का बाजा बजादयो २ गुरुजी. ग्यान लगास, ठाम मन घोड़ा,
धारा का प्रतिनिधित्व करने वाली कवियित्री जड़ावजी समता की सड़क चलादयो २ गुरुजी०
का हिन्दी कवियित्रियों में विशिष्ट स्थान है। उसने न सतगुरु सारथी खेड़ण वाला,
तो डिंगल कवियों की भांति अन्तःपुर में रह कर सिवपुर की सैर करादयो २ गुरुजी०
रानियों के मनोविनोद के लिए काव्य रचना की न किसी (२) पंच इन्द्री ने बस करो, सुमत गुपत सुखकार । की प्रतिस्पर्धा में ही कलम तोड़ी । वह तो सबको
संवर बांध्यो सेवरो, सी लरो कियो सिणगार ॥ समान रूप से अपने हृदय का प्रेम प्रसाद बांटती हुई क्रिया किलंगी खुल रई, तपस्यां रो तिलक लिलार। विश्व मन्दिर के विशाल प्रांगण में लोक-धुन गाती रही।
जैन-कवियों ने मूलतः धर्मप्रधान काव्यों की रचना करते हुए भी उन्हें कोरा धर्मोपदेशक ग्रन्थ नहीं बना दिया।
काव्य धर्म के प्रमुख तत्त्व कल्पना की सुरक्षा करते हुए इन्हें वाग्वैदग्ध्य के बल पर चमत्कृत किया है-यह अलग प्रश्न है कि ऐसे स्थलों से ये अनुस्यूत नहीं है। वस्तुतः यह समुचित भी हुआ है अन्यथा मूल विषय के प्रति अन्याय होने का भय रहता।
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