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________________ ६६ विरोध प्रादि दूषण पावै । जैसें अपनी बुद्धि सू कल्पित संवत् १८६१ में जयचन्द्र छाबड़ा प्रख्यात वचनिकासिद्ध करें है। बहुरि ऐसे ही बोधमती वस्त कूक्षणिक कार हुए। ये फागी ग्राम में छाबड़ा गोत्रीय खंडेलवाल अन्यत्य रूप माने हैं । नित्य मानने कू अविद्या कहै हैं। वैश्य श्री मोतीराम जी के यहां उत्पन्न हुए थे । जयचन्द्र नित्यानित्य मान में विरोध आदि दूषण कहै हैं, तहां जयपुर में अपने समय के सर्वोत्तम विद्वानों में गिनेजाते ऐसा जानूं। जो वस्त का स्वरूप है सो स्याद्वाद त सिद्ध थे। इनकी अभिलाषा थी कि राजवार्तिक ग्रादि बड़े-बड़े होय है । ता मैं विरोध प्रादि दूषण नाही आवे है। ग्रन्थों के अनुवाद किये जायं, किन्तु अपने पुत्र नंदलाल ऐसा स्वरूप अन्यमती समझे नाहीं अपनी बुद्धि में कल्पना की प्रेरणा से इन्होंने केवल उन्हीं ग्रन्यों की वचनिकाएं करि जैसे तैसें थापि संतुष्ट भये । परंतु वस्त विचारिए लिखीं जिनसे सर्व साधारण को अधिक लाभ हो। ७ इनके तब तिनि के ध्याता ध्यान ध्येयादिक किछू भी सिद्ध अनूदित ग्रन्थ सर्वार्थ सिद्धि, प्रमेयरत्नमाला. द्रव्य संग्रह, नाहीं होय है तात तिनिका कहनां सर्व प्रलाप मात्र है; स्वामि कार्तिकेयानुप्रेक्षा, समयसार, अष्ट पाहुड़, प्राप्त ऐसा जानना। मीमांसा, परीप्रमुख, भक्तामर स्तोत्र, देवागम स्तोत्र 'ढाड़ी भाषा में टब्बा टीका लिखने वालों में ज्ञानावर्णव, सामायिक पाठ, धन्यकुमार चरित्र, तत्वार्थ शीर्ष स्थान दौलतराम कासलीवाल का है। इन्होंने व- सूत्र, चन्द्रप्रभ चरित्र ( द्वितीय सर्ग ) पत्रपरीक्षा और सुनन्दि श्रावकाचार और तत्वार्थ सूत्र की टब्बा टीकाएं मतसमुच्चय है । जयचन्द्र के बाद सदासुख कासलीवाल की हैं। दौलतराम बसवा निवासी खंडेलवाल वैश्य भी अच्छे वचनिकाकार हए । भगवती पाराधना, तत्वार्थ मानंदराम के पुत्र थे । इनका रचनाकाल संवत् १७- सूत्र, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, अकलंक स्तोत्र, समयसार ७७ है। आदि ग्रन्थों पर इनकी वचनिकाएं उपलब्ध हैं। परवर्ती गद्यकारों में नाथूलाल दोषी, पन्नालाल चौधरी, शिवलाल बालावबोध टीका के लिए राजमल्ल पाण्डे और हेमराज पाण्डे प्रसिद्ध हैं। समयसार कलशटीका राजमल्ल व दुलीचन्द प्रमुख हैं जिन्होंने कई ग्रन्थों की वचनिकाएं लिखी हैं। की सत्रहवीं शताब्दी के प्रथम चरण में लिखी गई प्रथम ढाड़ी गद्य रचना है। हेमराज ने पंचास्तिकाय, स्वतंत्र ग्रन्थकार :-विभिन्न प्रकार की टीकामों प्रवचनसार, नयचक्र, गोम्मटसार तथा परमात्म प्रकाश के अतिरिक्त ढूढ़ाड़ी में स्वतंत्र ग्रन्थ भी लिखे गये हैं; पर बालावबोध टीकाएं की हैं। हेमराज सत्रहवीं इस लिए भाषा में मौलिक ग्रन्थों का पूर्णतः प्रभाव शताब्दी के सर्वोत्तम विद्वानों में से थे। पाण्डे रूपचन्द, रहा हो ऐसी बात नहीं । टोडरमल और दीपचन्द बनारसीदास आदि आध्यात्मिक पुरुष व मनीषियों से ढूढ़ाड़ी भाषा के सबसे बड़े मौलिक गद्यकार हैं। इनकी घनिष्ठता थी। टोडरमल जयपुर में गोदीका ( ढोलाका ) गोत्रीय ढाडी में घनिकाएं अधिक लिखी गई। टोडरमल खंडेलवाल वैश्य परिवार में संवत् १७६७ में उत्पन्न ने गोम्मटसार नामक प्रख्यात मय पर सम्यग्ज्ञान हए थे । इनके पिता जोगीदास और माता रमाबाई चन्द्रिकाटीका पुरुषार्थ सिध्धुपाय टीका भाषा, प्रात्मानु थी। टोडरमल बड़े धार्मिक, दार्शनिक तथा प्रतिभासम्पन्न शासन टीका भाषा प्रादि वचनिका-ग्रंथ लिखे । टब्बा व्यक्ति थे । संवत् १८२३-२४ में अल्पवय में ही टीकाकार दौलतराम ने भी पद्मपुराण, आदि पुराण, साम्प्र साम्प्रदायिक झगड़ों में इनकी मृत्यु हो गई थी। हरिवंश पुराण, श्रीपाल चरित्र, पुण्याश्रव कथाकोष व टोडरमल के वचनिका-ग्रन्थों की चर्चा पहले हो परमात्म प्रकाश की वनिकाएं लिखीं। इसके उपरान्त चुकी है। उनका मौलिक ग्रन्थ मोक्षमार्ग प्रकाशक है। ६. जयचन्द्रकृत ज्ञानार्णव भाषा, २१ ७. , सर्वार्थ सिद्धि भाषा, ३१-३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.014041
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1964
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size15 MB
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