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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास, डा० जगदीश चन्द्र शास्त्री, पृ० 175 6. डा० आर.पी. जैन का मत (भोगी लाल लेहर चन्द भारतीय संस्कृति संस्थान द्वारा मई 1989 में आयोजित प्राकृत कार्यशाला में दिए गए वक्तव्य के आधार पर) 7. क) प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० 177 ख) आगम और त्रिपिटिक एक अनुशीलन, पृ० 497, 500 8. द्रष्टव्य–दशवैकालिक सूत्र, बृहद वृत्ति (हरिभद्र), दशवैकालिक चूर्णि (अगस्त्य सिंह, जिनदासमहत्तर गणि) 9. डा० आर०पी० जैन का मत 10. क. जुत्ति त्ति उवाय य निरवयवा होदि णिज्जुत्ती—मूलाचार 17/14 ख. युक्तिरिति उपाय इति चैकार्थः निरवयवा संपूर्णाऽखण्डिता भवति नियुक्तिः । —मूलाचार वृत्ति। 17/14 11. क. आगम और त्रिपिटकः एक अनुशीलन,—भा० 2, पृ० 497 ख. जैन लक्षणावली, भा० 2, पृ० 22 ग. सूत्रे प्रथमेव संबद्धानां एतामर्थानां व्याख्यारूपा युक्ति-योजनम् । नियुक्ति-नियुक्तिरिति प्राप्ते शाकपार्थिवदर्शनात् । युक्त लक्षणस्य पदस्य लोपात् नियुक्तिरिति भवति—आवश्यक नियुक्ति, मलयगिरि वृत्ति, गाथा 88 12.. Ghatega A.M. Dasavaikalika Niryukti, I.H.Q. December 1935 p 628 13. निज्जुता ते अत्या जं बद्धा तेण होई निजुती। तहषि यं इच्छावेई विभासिउं त्तपरिवाड़ी।। आवश्यक नियुक्ति, गा० 88 14. सूत्रार्थयोः परस्पर निर्योजन-सम्बधं नियुक्तिः। -आवश्यकसूत्र गा० 88 पर हारिभद्रीय टीका, पृ० 41 एवं मलयगिरि टीका, पृ० 100 15. क. निश्चयेन सर्वाधिक्येन आदौ वा युक्ता नियुक्ताः, अर्यन्त इत्यर्थाः जीवादयः श्रुतविषयाः, ते ह्या निर्युक्ता एव सूत्रे, यत् यस्मात् बद्धा सम्यग् अवस्थापिताः योजिता इति यावत्, तेनेयं नियुक्तिः। निर्युक्तानां युक्तिनियुक्तिरितिप्राप्ते युक्तशब्दस्य लोपः क्रियते-उष्ट्रमुखी कन्येति यथा, निर्युक्तार्थ व्याख्या नियुक्तिरिति हृदयम्-आवश्यकसूत्र, हरिभद्रवृत्ति, गा० 88 ख. यस्मात् सूत्रे निश्चयेनाधिक्येन साधु वा आदौ वा युक्ताः सम्बद्धा निर्युक्ताः, निर्युक्ता एव सन्तस्ते श्रुताभिधेयाः जीवाजीवादयोऽर्था अनया प्रस्तुत नियुक्तया बद्धा व्यवस्थापिताः, व्याख्याता इति यावत्, तेनेयं भवति नियुक्तिः। -आवश्यकसूत्र 88 पर मलयगिरि वृत्ति 16. निर्युक्तानामेव सूत्रार्थानाम् युक्तिः परिपाट्या योजनं निर्युक्तयुक्तिरिति वाच्ये युक्त शब्दलोपानियुक्तिः -दशवैकालिक सूत्र, हरिभद्र वृत्ति, पत्र -2 17. आवश्यक सूत्र, शीलांकाचार्य टीका, पृ० 28 18. जैनसाहित्य का बृहद् इतिहास, भाग 3 पृष्ठ 6364 19. निश्चयेन अर्थप्रतिपादिका : युक्ति : नियुक्तिः आचारांग-सूत्र 1/2/1 20. Ind. Stud. XVII, 57n.2 21. Ghatege, A.M. Dasvaikalika Niryukti, I.H.O., Dec. 1935, p. 628 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014040
Book TitleWorld Jain Conference 1995 6th Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain
PublisherAhimsa International
Publication Year1995
Total Pages257
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size23 MB
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