SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किया जाए तो नियुक्ति की व्याख्यान-पद्धति अन्य पद्धतियों की अपेक्षा विलक्षण प्रतीत होती है जो संपूर्ण भारतीय साहित्य में कहीं वर्णित हुए दिखाई नहीं देती। अतः नियुक्ति का न केवल भारतीय साहित्य में अपितु संपूर्ण व्याख्या-साहित्य में सर्वाधिक वैशिष्ट्यपूर्ण स्थान है। नियुक्ति का अर्थ नियुक्ति' शब्द प्राकृत के 'णिज्जुत्ती' शब्द का ही संस्कृत रूपांतर है जो निर् और युक्ति—इन दो पदों के मेल से व्युत्पन्न हुआ है। निर् अर्थात् निरवयव, अखंडित या संपूर्ण और युक्ति का अर्थ है- उपाय। इस प्रकार नियुक्ति का अर्थ हुआ संपूर्ण या अखंडित उपाय। परंतु यहां निर् उपसर्ग 'निश्चित' अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। इस प्रकार सूत्रों में जो नियुक्ति है अर्थात् निश्चित किया हुआ अर्थ है, वह जिसमें निबद्ध हो—यथावत् रूप में निर्दिष्ट हो वह 'नियुक्ति' है।" मलयगिरि ने 'नियुक्ति' शब्द की जो व्याख्या की है उसका अर्थ है- “सूत्र में पहले से ही संबद्ध अर्थ का योजन कर व्याख्या करना।"ll मलयगिरि के उक्त कथनानुसार नियुक्ति का अर्थ हुआ—सूत्रों की व्याख्या। आवश्यक नियुक्ति में 'नियुक्ति' शब्द की जो व्याख्या की गई है तदनुसार सूत्र और अर्थ का निश्चित संबंध बताने वाली व्याख्या नियुक्ति है। 13 आवश्यकसूत्र की ही हारिभद्रीय टीका में सूत्र और अर्थ के परस्पर नियोजन/संबंध को नियुक्ति कहा गया है।4 आवश्यकसूत्र की टीकाओं में नियुक्ति शब्द की विस्तार से व्याख्या हुई है। यथा-'नि' का अर्थ है—निश्चय या अधिकता तथा 'युक्ति' का अर्थ है- सम्बद्ध । तदनुसार जो जीवाजीवादि तत्त्व सूत्र में निश्चय से या अधिकता से प्रथम ही सम्बद्ध हैं उन निर्युक्त तत्त्वों की जिसके द्वारा व्याख्या की जाती है उसे 'नियुक्ति' कहा जाता है। 15 दशवकालिक सूत्र की टीका में आचार्य हरिभद्र ने 'नियुक्ति' की जो परिभाषा दी है, उसके अनुसार सूत्र में प्रतिपादित विषयों को किसी एक विशेष शैली में कहना 'नियुक्ति' है। शीलांकाचार्य के मत में निश्चय रूप से सम्यक् अर्थ का ज्ञान कराना तथा सूत्र में ही परस्पर सम्बद्ध अर्थ को प्रकट करना 'नियुक्ति' है।" उपर्युक्त सभी लक्षणों का तात्पर्य यह है कि एक शब्द के संभावित अनेक अर्थों में कौन सा अर्थ किस प्रसंग घान महावीर के उपदेश के समय कौन सा अर्थ किस शब्द से सम्बद्ध था इत्यादि बातों को ध्यान में रखते हुए ठीक-ठीक अर्थ का निर्णय करना और उस अर्थ का सूत्र के शब्दों के साथ संबंध स्थापित करना ही 'नियुक्ति' है। 18 अथवा निश्चयार्थ का प्रतिपादन करने वाली युक्ति नियुक्ति है।" पाश्चात्य विद्वान् डा० वेबर ने प्राकृत के 'निज्जुत्ती' शब्द को निरुत्ति का अशुद्ध रूप मानते हुए उसका संस्कृत के "निरुक्ति' शब्द से सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया है। 'निरुक्ति' का अर्थ है-निश्चित उक्ति या कथन । निरुक्ति को उन्होंने भारतीय साहित्य के प्रसिद्ध निर्वचनशास्त्र 'निरुक्त' के समानांतर माना है। 20 डा० वेबर का निजुत्ती को निरुक्ति का रूपांतर मानना उपयुक्त नहीं है क्योंकि व्याख्याकारों ने निरुक्त और निज्जुत्ती दोनों शब्दों का पृथक्-पृथक् उल्लेख किया है। 21 उदाहरणतः दशवैकालिक नियुक्ति के दशवें अध्याय में 'भिक्खु' शब्द की व्याख्या करने के लिए अनयोग के अन्य द्वारों के साथ 'निरुक्त' का भी उल्लेख हआ। इससे स्पष्ट होता है कि निरुत्त यानि निरुक्त में निजुत्ती (नियुक्ति) में प्रतिपादित विषयवस्तु के एक भाग की ही व्याख्या की जाती है जबकि नियुक्ति में विषयवस्तु का विभिन्न दृष्टियों से प्रतिपादन किया जाता है। यहां यह भी ध्यातव्य है कि निरुक्त और निरुत्ति दोनों एक ही शब्द के वाचक हैं और नियुक्ति (निजुत्ती) की व्याख्यान-पद्धति का ही एक अंग है। दशवैकालिक नियुक्ति में विषय की व्याख्या करने के लिए चरणानुयोग के 12 द्वारों में निरुक्त का उल्लेख है। नियुक्ति के संबंध में यह भी माना जाता है कि 'निजुत्ती' शब्द अपने समानांतर 'निजूद 24 अथवा 'निज्जूहग' शब्द से व्युत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है—पूर्वो से उद्धृत करके (छांटकर) रचित । 26 ऐसा भी माना जाता है कि नियुक्ति ग्रंथ मूल व्याख्या ग्रंथों (जो लुप्त हो चुके हैं) से चुनकर तैयार किए गए हैं इसलिए उन्हें 'निजत्ती' (नियक्ति) संज्ञा से अभिहित किया गया है। 27 यद्यपि 'निर्यक्ति' की यह व्याख्या अपेक्षाक सरल प्रतीत होती है तथापि विद्वानों को मान्य नहीं है। आचार्य हरिभद्र ने आवश्यक सूत्र की टीका क्रिया, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014040
Book TitleWorld Jain Conference 1995 6th Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain
PublisherAhimsa International
Publication Year1995
Total Pages257
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy