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________________ प्रतिक्षण....कर्मबंध ? या कर्म निर्जरा -गुलाब कंवर नाहटा आज के इस भौतिक युग में फिल्मों व दूरदर्शन की चकाचौंध में, शहरी जीवन की अत्यधिक व्यस्तता में हम इतने लिप्त हो गये हैं कि आत्म-कल्याण व आत्म-उत्थान के लिए साधना, जप, तप, संयम व भक्ति करने का समय भी निकाल पाना मुश्किल हो गया है। सारी दिनचर्या में कर्मबंधन, हिंसा, जीव विराधना होती ही रहती है। मन, वचन व काया से प्रतिपल किसी प्राणी का हनन होता है, किसी के मन को पीड़ित किया जाता है। विवेकशून्य वाणी से अनंतानुबंधी कर्म बांध लिए जाते हैं। एक व्यक्ति उच्च भावनाओं की परिणति से मोक्ष पा जाता है जैसे गजसुकुमाल को सद्भाव से मोक्ष मिला और दूसरा व्याक निकृष्ट विचार व भाव द्वारा नारकीय जीवन पाता है। अतः हम आज भी अपना जीवन उत्कृष्ट बनाकर मुक्ति की राह पा सकते हैं। इसी धरती पर स्वर्ग या नरक सा जीवन पा सकते हैं। सामाजिक संरचना में नारी को जो कार्य सौंपा गया उसमें प्रतिपल हिंसा होती है। खाना बनाते हुए, सब्जी साफ करते हए, सफाई करते हए निरपेक्ष भाव रखें, पानी को छानकर काम में लें, व्यर्थ का पानी न बहाएं। सब्जी साफ करना व सुधारना कहें, सब्जी काटना नहीं कहें। सब्जी सुधारते हुए भी उसमें ममत्व न रखें। घरेलू कार्यों में होने वाली जीव-हिंसा के समय भी नवकार मंत्र का स्मरण चलता रहे। गृहकार्य तो करने ही पड़ते हैं फिर भी हम कर्मनिर्जरा कर सकते हैं व पाप-बंध रोक सकते हैं। गैस, चूल्हे या स्टोव पर से गर्म तवा, भगोना या कूकर जमीन पर न रखकर किसी घेरी पर या बर्तन पर रखें। चूल्हे पर उबलने वाली वस्तु ढक कर रखें जिससे गर्म भाप से वायुकायिक जीव बच सकेंगे। गर्म कूकर को एक दम न खोलें। खौलता हुआ गर्म पानी नाली या बेसिन में न डालें, पानी ठंडा हो तभी नाली में डालें। खाना बनाते समय छोटी-छोटी सावधानियां पाप-बंध से बचा सकती हैं। गैस चूल्हे के ऊपर ट्यूब लाइट या बल्ब नहीं लगवायें जिससे लाइट के मच्छर गैस पर नहीं गिरें। भोजन के बाद झूठे बर्तन पड़े न रहने दें, भोजन में जूठन न छोड़ें, खाते समय ध्यान रहे जितना खाना हो उतना ही थाली में लिया जाये। एक तो पड़ी हुई जीव-हिंसा होती है दूसरा उस व्यर्थ जाने वाले भोजन से किसी का पेट भी भर सकता है। इस प्रकार खाना बनाते व खाते हुए भक्ष्य-अभक्ष्य का विवेक रखते हुए, पूर्ण शाकाहारी बनकर कर्मबंध से बच सकते हैं। आजकल सब्जियों को जानवरों का आकार देकर सलाद में प्रयोग किया जा रहा है, जो व्यर्थ में ही कर्मबंधन का रास्ता बना हुआ है। घर की सफाई ध्यानपूर्वक मुलायम झाडू से की जाए, चींटी, मकौड़े, आदि जहां पर हों वहाँ कपूर का महीन पाउडर डालने से जीव-जन्तु चले जाते हैं। चतुर्मास में घर में काई, लील, सेवार आदि जमने नहीं दें। थोड़े से यत्न से अनंत सूक्ष्म जीवों को अभय दान मिल जाएगा। धुले हुए कपड़े, पोंछा लगाने वाले कपड़े गीले इकट्ठे नहीं पड़े रहने दें। उन्हें धूप या हवा में सुखा दें। ___ आज सौंदर्य प्रसाधनों में, टूथपेस्टों में चर्बी, अंडों व जिलेटिन (हड्डियों का) का प्रयोग होता है, इनसे बचना चाहिए। अब तो आयुर्वेदिक हर्बल शैम्पू भी बनने लगे हैं। दैनिक जीवन में चमड़े के पर्स, बैल्ट, चप्पल, जूते आदि का उपयोग करके अप्रत्यक्ष रूप से हिंसा में भागीदर बनते हैं, अतः इनसे बचना चाहिए। विवाह, अन्य समारोह व दीपावली में इतने पटाखे जलाने व्यर्थ ही वायुकाय जीवहिंसा का महापाप बंधन होता है। कच्ची घास के लॉन पर समारोह करना, बाग-बगीचों में घूमते हुए घास पर चलना, पेड़-पौधों के पत्ते टहनियां व फल तोड़ना इन सबसे बचना चाहिए, इन्हें तोड़ने से हमारा तो कोई भला नहीं होता परन्तु वनस्पति-काय की व्यर्थ ही हिंसा होती है। विवाह, पूजा, अनुष्ठान व समारोहों में फूलों की सजावट होती है। टनों फूल पहले सजाये जाते हैं फिर कूड़े के ढेर में पड़े सड़ते हैं, जिन पर असंख्य कीट पतंगे किलबिलाते रहते हैं। दैनिक जीवन में छोटे-छोटे पापों से तो विवेकपूर्वक बचा जा सकता है। परन्तु महिलाओं को गर्भपात के ठन में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014040
Book TitleWorld Jain Conference 1995 6th Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain
PublisherAhimsa International
Publication Year1995
Total Pages257
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size23 MB
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