SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ था और 'ज्ञानपीठ पत्रिका' का अक्टूबर 1968 का अंक, संगोष्ठी अंक के रूप में निकाला था, जिसमें शोधकार्य तथा शोधरत छात्रों की सूची, प्रकाशकों, विद्वानों आदि का परिचय दिया गया था। पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी से डा० सागरमल जैन एवं डॉ० अरुणप्रताप सिंह के सम्पादकत्व में 1983 में एक सूची Doctoral Dissertations in Jaina and Buddhist Studies के नाम से प्रकाशित हुई थी। इसी प्रकार डा० गोकुलचन्द जैन वाराणसी ने एक सूची संकाय पत्रिका सम्पूर्णानन्द संस्कृत वि०वि०, वाराणसी के 'श्रमणविद्या अंक' (1983) में छापी थी। पर उसके बाद उनके आगामी संस्करण नहीं निकले। ___1988 में मैंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली के आर्थिक सहयोग से 'A Survey of Prakrit and Jainological Research' प्रोजेक्ट पूर्ण किया। जो रिपोर्ट आयोग को भेजी गई, उसमें 425 शोध प्रबन्धों की सूची थी। 1988 में ही इस रिपोर्ट का प्रकाशन श्री कैलाशचन्द्र जैन स्मृति न्यास से 'प्राकृत एवं जैनविद्या : शोध सन्दर्भ नाम से हुआ। ___1990 में श्री कैलाश चन्द जैन स्मृति न्यास ने 'प्राकृत एवं जैनविद्या शोध प्रबन्ध संग्रहालय' की स्थापना की। इस संग्रहालय में अब तक लगभग 150 शोध प्रबन्ध एकत्रित हो चुके हैं। अन्य के लिए प्रयास जारी है। इस संग्रहालय से 15 शोधार्थी लाभ ले चुके है। उन्हें आर्थिक छोड़कर अन्य सभी प्रकार की सुविधाएं दी गई हैं। दिल्ली, बम्बई, अहमदाबाद, मद्रास आदि 4-6 स्थानों पर इस प्रकार के संग्रहालय अवश्य होने चाहिए जिससे शोधार्थी को बहुत दूर न जाना पड़े और जैनविद्याओं पर तीव्र गति से शोध कार्य हो। विश्वास है कि इक्कीसवीं शती से पूर्व ही कोई संस्था इस कार्य को करने में आगे आयेगी। मई 1991 में प्राकृत एवं जैनविद्या शोध-सन्दर्भ का दूसरा संस्करण उक्त न्यास ने प्रकाशित किया जिसमें लगभग 600 देशी तथा 35 विदेशी शोध-प्रबन्धों का परिचय था, साथ ही जैन विद्याओं के शोध में संलग्न विश्वविद्यालयों/संथानों/पत्र-पत्रिकाओं/प्रकाशकों/शोध-निदेशकों का संक्षिप्त परिचय दिया गया था। शोधरत 55 शोधार्थियों एवं 95शोध योग्य विषयों की सूची इसमें दी गई है। इसके बाद लगभग 150 और शोध-प्रबन्धों की जानकारी 1993 में शोध-सन्दर्भ का परिशिष्ट निकालकर दी गई। __ वर्तमान में लगभग 65 विश्वविद्यालयों से प्राकृत और जैनविद्याओं में शोध-उपाधियां दी गई हैं। पन्द्रह विश्वविद्यालयों में प्राकृत एवं जैनविद्या अध्ययन के लिए स्वतन्त्र या संयुक्त विभाग हैं, 35 शोध संस्थान जैनविद्याओं पर शोध हेतु संलग्न हैं। इसके बाद भी जिस गति से शोध होना चाहिए नहीं हो रहा है। इक्कीसवीं शती में आशा की जानी चाहिए कि प्राकृतभाषा, अहिंसा, धर्मनिरपेक्षता, विश्व-शान्ति के अध्ययन-अध्यापन शोध-खोज के लिए कम से कम 5 विश्वविद्यालय भारत में और 5 विदेशों में स्थापित होंगे। भारत में जैन विश्व भारती, लाडनूं को मान्य विश्वविद्यालय (Deemed University) की मान्यता मिल चकी है। सोनागिर, जिला दतिया विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य चल रहा है। गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद में 1993-94से अन्तर्राष्ट्रीय जैन अध्ययन केन्द्र की स्थापना की गई है। विद्यापीठ की प्रशंसा करते हुए प्रधानमंत्री श्री पी०वी० नरसिंहराव ने अपने संदेश में कहा है कि 'विभिन्न धर्मों का ऐसा गहन अध्ययन, जो दूसरे धर्मों के प्रति आदर की भावना सिखाये, हमारी विरासत का भाग है तथा महात्मा गांधी के सन्देश का सार है, जिन्होंने 1920 में गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की थी। ___ यह केन्द्र जैन अध्ययन के सन्दर्भ में एक पूर्ण स्थापित केन्द्र होगा। इसमें एम०ए०, एम०फिल्० विद्यावाचस्पति, विद्यावारिधि आदि के पूर्णकालिक और अंशकालिक पाठ्यक्रम होंगे। पूर्णकालिक पाठ्यक्रमों के लिए छात्रवृत्तियों की भी व्यवस्था की गई है। प्राकृत भाषा और साहित्य, जैन दर्शन, जैन कला, जैन पाण्डुलिपि विज्ञान आदि का गहन अध्ययन-अध्यापन यहां होगा।' कुन्दकुन्दभारती, दिल्ली को राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली से शोध कराने हेतु मान्यता प्राप्त हो गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014040
Book TitleWorld Jain Conference 1995 6th Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain
PublisherAhimsa International
Publication Year1995
Total Pages257
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy