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यातनाएं देकर लोगों ने उन्हें सलीब पर चढ़ाया, तब भी उन्होंने लोगों को यह कहकर क्षमा किया कि "यह जानते नहीं।" यातना पर यातना सहन करते जाना और जबान में उफ़ न करना यह साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं। लेकिन यह हम सबके लिए उदाहरण है, क्योंकि हम जरा-सी बात पर आपे से बाहर हो जाते हैं, नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने देते।
'सहिष्णुता' के लिए 'तहम्मुल', 'सब्र' जैसे अरबी शब्द आते हैं। फ़ारसी का 'बर्दाश्त' शब्द भी उसी अर्थ में प्रयुक्त होता है। 'बुर्दबारी' भी हम सहिष्णुता के लिए प्रयोग में लाते हैं। अंग्रेजी में इसके समानार्थक शब्द
। धरती सहिष्णुता का प्रतीक है, यह सब कुछ सहन कर सकती है, इसीलिए इसे 'धृति' कहते हैं यानी धैर्य रखने वाली । शायद कबीर ने उसकी अपार सहनशीलता को लक्ष्य कर यह दोहा रचा है
खूदन तौ धरती सहै, बाढ़ सहै बनराई।
कुसबद सौ हरिजन सहै, दूजे सह्या न जाइ। मनुस्मृति (6/92) में धर्म के दस लक्षणों में 'धृति' यानी धैर्य को सर्वप्रथम रखा है-धैर्य, क्षमा, मन-निग्रह, चोरी न करना, बाहर-भीतर की शुद्धि, इन्द्रिय-संयम, सात्विक बुद्धि, अध्यात्म-विद्या, यथार्थ-भाषण और क्रोध न करना। गीता (16/1-3) में कृष्ण ने देवी सम्पदा-सम्पन्न पुरुष के लक्षणों में भी 'धृति को सम्मिलित किया है
अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम् । दया भूतेष्वलोलुप्तंव मार्दवं हीरचापलम् ।। तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोही नातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।। सहिष्णुता, सहनशीलता, धैर्य, सहनशक्ति सभी समानार्थक हैं और समाज को, राष्ट्र को मर्यादा में, अनुशासन में रखने के लिए इस शब्द की अति आवश्यकता है। जहां सहनशीलता नहीं, वहीं अशान्ति है, संघर्ष है, अविश्वास है, हिसा और अत्याचार है। ___सन् 1955 में बाण्डुगं कान्फ्रेन्स हुई थी। पं० नेहरू ने उसमें भाग लिया था वहां 'पंचशील' का एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसके पांच 'शील' या सिद्धान्त थे
१. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व 2. समानता एवं परस्पर लाभ
एक-दूसरे की प्रादेशिक या भौगोलिक अखंडता एवं सार्वभौमिकता का सम्मान 4. आर्थिक, राजनीतिक अथवा सैद्धान्तिक किन्हीं भी कारणों से एक-दूसरे के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करना ।
आक्रमण न करना
उस समय 29 देशों ने इसे स्वीकृत किया था लेकिन यह सिद्धान्त भी संयुक्त राष्ट्र संघ अपने सदस्य देशों से आगे चलकर मनवा न सका। 13 जून 1955 को नेहरू एवं बुलगानिन ने अपनी संयुक्त विज्ञप्ति (ज्वाइन्ट कम्यूनिके) में 'पंचशील' को मान्यता दी। 1962 में भारत पर चीन का आक्रमण हुआ। उधर 1965 और 1971 में भारत-पाक युद्ध लड़े गये। यह शताब्दी तो युद्धों से रक्तरंजित है। 1914-18 में प्रथम विश्व युद्ध हुआ। 1939-45 में द्वितीय विश्वयुद्ध और फिर स्वेज़ केनाल पर लड़ाई, अरब-इस्राईल युद्ध, इराक-ईरान युद्ध, इराक-कुवैत युद्ध और बोस्निया-सर्ब युद्ध—एक लम्बा सिलसिला है। चचेनिया-रूस युद्ध भी चल रहा है। कई देशों में नरसंहार के भयावह दृश्य विश्व देख चुका है। युगेण्डा में ईदी अमीन का नरसंहार कौन भूलेगा ? चीन में दस हजार व्यक्तियों को टैंकों के नीचे कुचलकर मारा गया। रवेण्डा में आठ हजार व्यक्तियों को मौत के घाट उतारा जा चुका है, यह तो अप्रैल 1995 की ही घटना है। इस समय संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों की संख्या 150 से भी अधिक है, परन्तु शान्ति स्थापित नहीं हो पा रही है। शान्ति सब चाहते हैं, परन्तु युद्ध की नीति पर चलने से बाज भी नहीं आते।
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