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जाय। अगर कोई जानवर आदमी को खाता है तो उसे आदमखोर कहते हैं तथा उसे मार देते हैं। परन्तु मनुष्य जो जानवरों को खाता है, उसे मनुष्य ही कहा जाता है, उसे कोई दण्ड नहीं दिया जाता, यह कैसी विडम्बना है ? जिन बीमारियों को हम जन्म देते हैं उन्हें मिटाने के लिए इन निरपराध प्राणियों की जान लेते हैं। हमें जीवन प्रिय है, क्या इन बेसहारा प्राणियों को जीवन प्रिय नहीं ? भगवान महावीर ने कहा है-सव्वे पाणापिआऊया--प्राण सभी को प्रिय हैं। सव्वे जीवावि इच्छन्ति जीविऊ न मरिज्झिऊं—सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता, चाहे वह मनुष्य हो या पशु-पक्षी। अगर इंसान को कोई मारे तो उसे अपराधी घोषित किया जाता है पर अहिंसक जानवरों को मारना कोई अपराध नहीं माना जाता। जब तक इन्हें मारना कानूनन अपराध घोषित नहीं किया जाता यह विश्व शांति से नहीं रह सकता। हम तो उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जब सारा विश्व शाकाहरी बने, मनुष्य से भयभीत ये प्राणी भयमुक्त हो जाएं। परन्तु वह दिन आने तक न जाने कितने करोड़ प्रणियों की जीवन लीला समाप्त कर दी जायेगी। ___मांसाहार किसी भी दृष्टि से मनुष्य का आहार नहीं हो सकता। वैज्ञानिक व शारीरिक दृष्टि से यह केन्सर, हृदय व गुर्दे जैसे महारोगों का जन्मदाता है। प्राकृतिक दृष्टि से पर्यावरण को असन्तुलित करता है, धार्मिक दृष्टि से दुर्गति का प्रदाता है तथा आर्थिक दृष्टि से महंगा है। विदेशों में मांसाहर के दुष्परिणामों को जानकर करोड़ों लोग शाकाहार को अपना चुके हैं। वहाँ मांसाहार तेजी से कम हो रहा है। अमेरिका जैसे विकसित देश में 2 करोड़ लोग मांसाहार को छोड़ चुके हैं, वहाँ शाकाहार क्रान्ति हो रही है। "डाइट फॉर न्यू अमेरिका" पुस्तक की सर्वाधिक की शाकाहार के प्रति बढ़ती गहरी रुचि का प्रतीक कहा जा सकता है। मेक्डॉनल जैसी मांस विक्रय करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को अमेरिका छोड़कर भागने को मजबूर होना पड़ रहा है। उसी मेक्डानल कंपनी को 400 दुकानों के लिए मांसाहारी भोजन के लिए भारत सरकार ने लायसेंस दिया है। दुनिया का कोई भी धर्म या संस्कृति मांसाहार का समर्थन नहीं करती। बाहर के देशों में शाकाहारियों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन साधु-संतों के इस अहिंसा प्रधान देश में आज मांसाहार व मद्यपान को विशेष प्रोत्साहन दिया जा रहा है। जो सभी दृष्टियों से अनुचित व निन्दनीय कृत्य है। अलकबीर जैसे 20 भीमकाय यांत्रिक कत्लखानों के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत सरकार लायसेंस दे रही है। सोचिए ! अब देश के पशुधन का क्या होगा ? हजारों निष्पाप प्राणियों को रोज मौत के घाट उतारा जा रहा है। ये प्राणी बेजुबान हैं। यह प्राणी वेदना, व्याकुलता और व्यथा अपने मुँह से प्रकट करने में समर्थ नहीं हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम इनकी असह्य पीड़ा को अपनी जबान से लोगों तक पहुँचायें। जनता को पशुहत्या व मांसाहार के दुष्परिणामों से अवगत करायें। सत्य व तथ्य को उजागर करें तो करोड़ों प्राणियों की रक्षा हो सकती है। "मित्ति मे सव्वभुएसु" का आदर्श हमें प्रभु महावीर से प्राप्त हुआ है! उसे साकार कर दिखायें, इसे घर-घर पहुँचायें। जनमत अहिंसा के पक्ष में तैयार होगा, इसी जनता में से सत्ताधारी लोग चुने जाते हैं। अहिंसक विचारों के लोग यदि सत्ता में आयेंगे तो निश्चित ही अहिंसा के प्रचार में सुविधा होगी व वधशालाएँ बंद हो सकेंगी।
मेरा सभी पू. सन्त, सतियों के श्री चरणों में हृदय से निवेदन है कि आप इस कार्य को प्राथमिकता दें। एकेन्द्रिय की हिंसा के प्रति जितने जागरुक हैं उससे कई गुना अधिक पंचेन्द्रिय की हिंसा को रोकने के लिए सुनियोजित प्रयल अपेक्षित हैं। इसके लिए शाकाहार-सम्मेलन, शाकाहर-प्रशिक्षण शिविर आदि का आयोजन कर श्रावक-श्राविकाओं को इस ओर ध्यान देने हेत प्रेरित करायें। मांसाहार मानवता पर कलंक है। इसे हटाने के लिए सभी एक जट होकर मांसाहारियों को शाकाहारी बनाने का महत्वपूर्ण कार्य हाथ में लें, तो देश का नक्शा बदल सकता है। क्या आप जानते हैं ?
देश में 5 बड़े आधुनिक यांत्रिक कत्लखाने दिन-रात खून की नदियाँ बहा रहे हैं। विशालकाय भैसों को काटने के ... 2 बड़े कत्लखाने हैं। बड़े-बड़े सार्वजनिक कत्लखानों की संख्या 3000 है। छोटे कत्लखानों की संख्या 36000 है।
रुद्रारम (आन्ध्रप्रदेश) का अलकबीर यांत्रिक कत्लखाना प्रतिदिन 1500 भैंसपाडे व 6000 भेड़ बकरियों को काट रहा रहा।
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