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________________ अहिंसा शाकाहार दुनिया के सभी धर्मों ने अपने-अपने धर्मग्रन्थों में अहिंसा धर्म की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है, परन्तु जैन धर्म में जिस सूक्ष्मता व गहराई से अहिंसा का प्रतिपादन किया गया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। अहिंसा का जैन धर्म में वही स्थान है जो शरीर में प्राणों का है। जैनों का कोई ऐसा शास्त्र या धर्मग्रन्थ नहीं है, जिसमें अहिंसा धर्म का वर्णन किसी न किसी रूप में न आया हो। द्वादशांगी में प्रथम स्थान को प्राप्त आचारांग सूत्र का प्रथम अध्ययन "शस्त्र-परिज्ञा" छः काय जीवों की हिंसा को त्यागने का प्रभावशाली ढंग से निरूपण करता है। सूत्रकृतांग में समस्त सिद्धांतों का सार अहिंसा को बताते हुए कहा है कि एवं खु नाणिणो सारं, जं न हिंसइ कंचणं । ____ अहिंसा समयं चेव, एयावन्तं वियाणिया। अनगार धर्मामृत में कहा है : सर्वेषां समयानां हृदयं, गर्भश्च सर्वशास्त्राणाम् । व्रतगुणशीलादीनाम्, पिण्डः सारोऽपि चाहिंसा । अर्थात्-अहिंसा समस्त सिद्धांतों का हृदय है, सर्वशास्त्रों का गर्भ है, व्रतादि का पिण्ड है, अतः अहिंसा सारभूत ____ दशवैकालिक, प्रश्नव्याकरण, भगवती आदि सूत्रों में अहिंसा का विस्तृत विवेचन उसकी महत्ता का प्रबल परिचायक है। सम्पूर्ण जैन इतिहास अहिंसा व करुणा की करुण कहानियों से भरा पड़ा है। हमारे पूर्वजों ने एक-एक प्राणी के प्राणों को बचाने के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। भरी जवानी में जहाँ सारा विश्व भौतिक सुखों के लिए लालायित रहता है, वहीं एक युवा राजकुमार ने केवल प्राणियों की रक्षा के लिए देवतुल्य भौतिक सुखों को ठोकर मार दी। अनेकों महान् जैन सन्तों ने बड़े-बड़े राजा महाराजाओं को अहिंसा धर्म का अनुयायी ही नहीं बनाया अपितु उनके राज्य में होने वाली पशुओं की हिंसा को भी बंद करवा डाला। महामुनि गर्दभाली ने महाराजा संयति को, केशीस्वामी ने राजा परदेशी को, अनाथीमुनि ने मगध सम्राट श्रेणिक को, आचार्य हेमचन्द्रजी ने परमार्हत् राजा कमारपाल को व जैन दिवाकर प. चोथमलजी म.सा. ने महाराजा भपालसिंहजी को इस ओर प्रेरित करके अनेकों प्राणियों को अभयदान दिलाने का महान कार्य किया। ऋषि, महर्षियों के इस अहिंसा प्रधान देश की वर्तमान दुर्दशा देखकर हृदय पीड़ा से व्यथित हो उठता है। पूर्व के कसाई उतने ही पशुओं को काटते थे जितने खाने वालों की आवश्यकता थी। आज तो मांस का निर्यात किया जा रहा है। उससे प्रतिवर्ष 300 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त की जा रही है। जिसे निकट भविष्य में 900 करोड़ तक बढ़ाने का लक्ष्य है। 36 हजार छोटे बड़े कत्लखाने दिनरात पशुहत्या के व्यवसाय में संलग्न हैं जिसमें देवनार, ईदगाह, अलकबीर जैसे यांत्रिक कत्लखाने प्रतिदिन हजारों पशुओं को मौत के घाट उतारने में लगे हुए हैं। विदेशी मुद्रा कमाने की अंधी दौड़ में सरकार देश की पशु संस्कृति को नष्ट करने में जुटी हुई है। निर्यात का लक्ष्य पूरा करने के लिए आने वाले चंद दिनों में देश में ऐसे यान्त्रिक कत्लखाने लगाने की योजना है जिनका समय रहते समूचे अहिंसक समाज ने जबरदस्त विरोध नहीं किया तो देश का समूचा पशुधन नष्ट हो जायेगा। आने वाली पीढ़ियों को उनके केवल नाम या चित्र ही पुस्तकों में देखने और पढ़ने को मिल सकेंगे। पाकिस्तान में यह स्थिति आ चुकी है कि वहाँ पशुओं की कमी के कारण सप्ताह में 2 दिन कत्लखाने बंद करने पड़ते हैं। ऋषियों के इस देश में क्या उनके रहते हुए यह पशुसंपदा इसी तरह नष्ट कर दी जाएगी ? यह कहाँ का न्याय है कि अपना पेट भरने के लिए किसी निरपराध का पेट काट दिया जाए। अपने जीवन के लिए किसी मासूम की जिंदगी समाप्त कर दी जाए। अपने स्वाद के लिए इन मूक प्राणियों का संसार ध्वस्त कर दिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014040
Book TitleWorld Jain Conference 1995 6th Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain
PublisherAhimsa International
Publication Year1995
Total Pages257
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size23 MB
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