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________________ अच्छे वेतनमान में सर्विस की गारंटी दी जाए, तो इस क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की एक अच्छी टीम तैयार हो सकेगी और प्रातः स्मरणीय मुनिश्री कल्याणविजय जी, मुनिश्री पुण्यविजय जी, जिनविजय जी, पं० नाथूराम प्रेमी, डॉ० हीरालाल जैन एवं डॉ० ए० एस० उपाध्ये जैसे पुण्यपुरुषों का युग पुनः लौटकर आ जाएगा और उक्त ऐतिहासिक कार्य सम्पन्न होने से जैन-विद्या के विकास की अवरुद्ध धारा को पुनः गतिशील बनाया जा सकेगा। अंतर्राष्ट्रीय छात्रवृत्ति फंड ___अर्थाभाव के कारण हमारे समाज की अनेक प्रतिभाएं बीच में ही अपना अध्ययन छोड़कर घोर निराशा का जीवन व्यतीत करती हैं। इसके लिए एक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय छात्रवृत्ति-फंड की स्थापना की आवश्यकता है, जो प्रतिभावान जैन बच्चे-बच्चियों को देश-विदेश में उच्चशिक्षा हेत उत्साहवर्धक छात्रवृत्ति प्रदान कर सके। आज तकनीकी तथा गैरतकनीकी, प्रशासन, पुलिस तथा व्यापार-प्रबंधन के साथ ही सैन्यसेवा एवं स्वास्थ्य-सेवा के क्षेत्र में हजारों हजार सेवाभावी सुयोग्य जैन कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है। जैन समाज में ऐसी प्रतिभाओं की कमी नहीं है किंतु अर्थसंकट के कारण उनकी प्रतिभा एवं उत्साह का सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। वस्तुतः उनके बिना समाजहित के प्रसंगों में हमारी आवाज में भी बुलंदी नहीं आ सकती। उनके अभाव में हम हर जगह अपेक्षित तथा पिछड़ेपन का अनुभव करते हैं। अतः देश-विदेश के सभी जैन नेताओं को अंतर्राष्ट्रीय छात्रवृत्ति फंड के संबंध में एक निश्चित योजना बनाना चाहिए, जिससे सुयोग्य कार्यकर्ता दल तैयार हो सके और उनके सहयोग से हमारा समाज आगामी 21वीं सदी की गंभीर चुनौतियों का सामना कर सके। विद्वानों का सम्मान-पुरस्कार साधक विद्वान् तो एकांतवासी, स्वाभिमानी एवं समर्पित भाव से जिनवाणी एवं समाज की सेवा करने वाला होता है। वह अपने दायित्व को भलीभांति समझकर उसमें दत्तचित्त रहता है। अर्थसंकट तथा साधनाभावों का जीवन जीकर भी वह अपनी कठिनाई व्यक्त नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में समाज का दायित्व है कि ऐसे विद्वानों की ऊर्जाशक्ति को द्विगुणित करने हेतु ससम्मान आर्थिक अनुदान के साथ-साथ बिना किसी भेदभाव के गुणवत्ता के आधार पर राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के उच्च सार्वजनिक सम्मान-पुरस्कार की व्यवस्था करे। इसके लिए कम से कम 25 लाख रुपयों का एक स्थाई फंड तैयार किया जाए, जिसके ब्याज से उक्त उद्देश्य की पूर्ति हो सके। इन सम्मानों से सभी विद्वान प्रोत्साहित होकर ठोस कार्य कर सकेंगे। महाजन टोली नम्बर 2, आरा (बिहार) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014040
Book TitleWorld Jain Conference 1995 6th Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain
PublisherAhimsa International
Publication Year1995
Total Pages257
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size23 MB
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