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इक्कीसवीं सदी की दस्तक एवं जैन समाज के उत्तरदायित्व
प्रो० ( डॉ० ) राजाराम जैन निदेशक श्री कुन्दकुन्द भारती, नई दिल्ली
विश्व के कोने-कोने से पधारे हुए आप जैसे श्रमणों के मध्य अपने को पाकर हमें अत्यंत गौरव का अनुभव हो रहा है। आप लोगों के सम्मुख हम नतमस्तक भी है क्योंकि हमारी दृष्टि से आप सभी वैदेशिक व्यापार में निपुण तथा कुशल अर्थशास्त्रज्ञ उस पणिसमूह के वंशज हैं, जिनका उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है और श्रमण-संस्कृति के महान् संदेशवाहक रणवीर, दानवीर, क्षमावीर, एवं समाजशास्त्रियों की संतानें हैं। जिन कलिंग-सम्राट खारवेल, महासार्थवाह साहू, नट्टल, कोटिभट्ट श्रीपाल एवं भविष्यदत्त, प्रचंड सेनापति चामुंडराय तथा महामात्य वस्तुपाल - तेजपाल, वीरवर भामाशाह एवं जगडू शाह को भारतीय सांस्कृतिक इतिहास बड़े ही गौरव के साथ स्मरण करता है । जिस प्रकार इन महापुरुषों ने अपनी मातृभूमि भारत तथा जैन समाज के बहुमुखी विकास के लिए अथक प्रयास किए थे, उसी प्रकार आपके पूर्वज भी उनके चरण चिन्हों पर चलकर उनकी गौरवपूर्ण परंपराओं को आगे बढ़ाते रहे हैं और आप लोग भी उसी पथ के पथिक हैं।
जैनधर्म : विश्वधर्म
पुरातात्विक इतिहास साक्षी है कि जैनधर्म विश्वधर्म रहा था । सहस्राब्दियों पूर्व हमारे पूर्वज अहिंसा, अनेकांत, विश्वबंधुत्व तथा अपरिग्रह के सर्वोदयी संदेश लेकर विश्व के कोने-कोने में पहुंचते रहे हैं। एशिया के और संस्कृत साहित्य में भारतीय जैन महासार्थवाहों के वैदेशिक व्यापार के अनेक साक्ष्य उपलब्ध होते हैं, जिनमें आयात-निर्यात, विनिमय, नौका-परिवहन, मुद्रा - प्रणाली तथा विविध उद्योग-धंधों आदि के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इन साहित्यिक तथ्यों से भी जैन समाज एवं जैनधर्म की सार्वजनीयता स्पष्ट होती है और इन कारणों से हम सभी का मस्तक गर्वोन्नत हो उठता है।
एक प्रश्न
मेरे मन में बार-बार यह प्रश्न उठ रहा है कि आपसे विनयपूर्वक प्रश्न करूं कि आप लोग आबाल वृद्ध नर-नारी, हजारों-हजार मीलों के यात्राजनित घोर कष्टों को उठाकर भी यहां क्यों पधारें हैं ? किंतु जब आप लोगों के उत्सुकता भरे प्रमुदित चेहरे देखता हूं, तो मेरे उक्त प्रश्न का उत्तर मुझे स्वयमेव मिल जाता है। निश्चय ही आपका मातृभूमि प्रेम, तीर्थभूमियों के प्रति अनन्य आस्था तथा अपने गुरुजनों के चरणों का सान्निध्य प्राप्त करने की ललक ही आपको यहां खींचकर लाई है। सच्चे सम्यग्दृष्टि का यही लक्षण भी है। आपकी इस पवित्र भावना एवं कामना का हम श्रीकुन्दकुन्दभारती, नई दिल्ली की ओर से हार्दिक स्वागत करते हैं तथा सांस्कृतिक दूतों के समान आप जैसे सज्जनों को श्रीकुन्दकुन्दभारती की ओर से आपको सादर आमंत्रित करते हैं कि आप सभी उसके प्रांगण में पधारें तथा यह देखने की कृपा करें कि 21वीं सदी के जैन समाज के भविष्य निर्माण एवं नवीन पीढ़ी के मार्गदर्शन हेतु उसके द्वारा निर्मित योजना तथा कार्यकलापों को किस रूप में आगे बढ़ाया जा रहा है। आप उनका अध्ययन करें तथा वहां पर विराजमान परम तपस्वी आचार्यश्री विद्यानन्द जी महाराज का सान्निध्य प्राप्त कर उनके उपदेशामृत से भी लाभान्वित हों ।
वर्तमान विषम परिस्थितियां
इसका अनुभव तो सभी करने लगे हैं कि वर्तमान में हम संक्रमणकालीन विषम परिस्थितियों से गुजर रहे हैं। चारों ओर हिंसा, छल, कपट, भ्रष्ट राजनीति का बोलबाला है। उसने जन-जीवन को दुष्प्रभावित किया है। ऐसे
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