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जापान एक ऐसा देश है, जिसने औद्योगिक क्रान्ति का अधिकतम दोहन करते हुए भी प्रो. काओरू यामागुची की 'सक्षम जगतवर्ती ग्राम' की अवधारणा को जन्म दिया है। प्रो० यामागुची ने इस ग्राम-अर्थतन्त्र को म्युराटोपिअन अर्थतन्त्र का नाम दिया है। 'म्युरा' जापानी का शब्द है, जिसका अर्थ है 'ग्राम' एक ऐसा ग्राम जहां के लोग आत्मनिर्भर हों, पारम्परिक रीति-रिवाजों में आस्था रखते हों, प्रकृति के प्रति जिनके मन में सम्मान की भावना हो और जो अवकाश में एक-दूसरे की मदद के लिए कमर कसे हों। जब हम 'म्युरा' शब्द का विखण्डन करते हैं, तब हमें 'म्युराटोपिअन' अर्थतन्त्र की खूबियों का और अधिक गहराई से पता चलता है। ‘म्यु का अर्थ है—'न होना' (नर्थिगनेस) तथा 'रा' का अर्थ है- 'अपरिग्रह' यानी 'स्वामित्व' की अनुपस्थिति। यहां इस तरह 'म्युरा का अर्थ हुआ 'कुछ न होना' अर्थात् मालिकी का विसर्जन, उसकी गैरहाजिरी। 'टोपिआ' ग्रीक शब्द है, जिसका अर्थ है 'जगह' । इस तरह कुल मिलाकर 'म्युरा' एक ऐसी जगह हुआ जहां आगामी युग की नयी समाज-रचना का सूत्रपात होगा।
सहज ही प्रश्न उठता है कि इस नयी समाज-रचना के आधार क्या होंगे ? __ आज हम देख रहे हैं के यन्त्रोद्योग-प्रधान समाज-रचना सफल नहीं हुई है। चारों ओर प्रदूषण है, महामारियां हैं,
और गरीबी है, कृत्रिम अभाव बने हए हैं। पंजीखोर-बाजारोन्मख-सट्टेबाज अर्थतन्त्र ने विश्व की रीढ क्षत-विक्षत कर दी है। साम्यवादी अर्थतन्त्र परास्त हो चुका है। जो अर्थतन्त्र आज है, श्रीमती नन्दिनी जोशी के अनुसार, उसके मुख्यतः छह आधार हैं-1. एक जैसा माल (स्टैंडर्डाइज़ेशन) 2. मनुष्य का एकांगी विकास (स्पेशियलाइज़ेशन) 3. प्रचण्ड व्यवस्था-तन्त्र (सिंक्रोनाइज़ेशन) 4. केन्द्रीकृत विकास (कंसेन्ट्रेशन) 5. अधिकतम कमाई का ध्येय (मेक्सेमाइज़ेशन) 6. आर्थिक तथा राजकीय सत्ताओं का केन्द्रीकरण (सेंट्रलाइजेशन)। लेकिन जो ग्राम-तन्त्र क्षितिज पर आना चाहता है उसके मुख्य दो आधार हैं-1.स्वावलम्बन; 2. परोपकार या परस्परोपग्रह (एक दूसरे की मदद अथवा एक दूसरे के साथ जीवन्त हिस्सेदारी)।
उपर्युक्त अर्थतन्त्र के मुख्य लक्षण होंगे—उत्पादक और ग्राहक एक; मालिक-मजदूर एक; बचत करने वाला और खर्च करने वाला एक; मकान-मालिक और किरायेदार एक' प्रकृति के प्रति परिपूर्ण सम्मान अर्थात उसे कमाई का साधन न मानना, न बनाना। इस तरह आने वाला मानव-समाज वह नहीं होगा जो आज मृग-मरीचिका की तरह हमारे जीवन में प्रवेश कर गया है, बल्कि वह 'म्युराटोपिअन अर्थतन्त्र' होगा जो दुनिया को अहिंसा और अपरिग्रह के माध्यम से अधिक सुन्दर और बेहतर बनायेगा।
* सुंदर दुनिया माटे सुंदर संघर्ष (गुजराती); नंदिनी जोशी; उन्नति प्रकाशन, अहमदाबाद-380006, 1993
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