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________________ खतरनाक है। हमें अहिंसा को केन्द्र में रखकर सूर्य उर्जा का उपयोग करना होगा। उत्तम भोजन (शाकाहार) उत्तम विचारों को जन्म देगा जिससे वासना और विलास के लिए हमारे विचार प्रदूषित नहीं होंगे। इससे अनेक जन-अहित और आत्म-अहित के कार्य रुक सकेंगे। आज के मानव में बढ़ता पागलपन का कारण भौतिक सुखों की अधिकता और विचारों का दषित होना है। आज अधिक आवाज भी मानव मन को असंतुलित बना रही है। आज विश्व में योग और ध्यान द्वारा मौन की जो साधना की जा रही है, वह इसका निर्देश है। भविष्य में मानव को मौन द्वारा ही मानसिक शांति प्राप्त होगी। जैन दर्शन का सामायिक इसके लिए उत्तम उपाय है। आत्मालोचन द्वारा अपने दोषों का अन्वेषण, मौन और चिंतन की प्रक्रिया मनुष्य को शांति प्रदान करेगी। आने वाला कल विज्ञान की चरमोन्नति का होगा, पर उसे उन्नति में मानसिक शांति के लिए अध्यात्म का समन्वयन भी करना होगा। संस्कार सिंचन में जैनधर्म की भूमिका : सबसे जटिल वैश्विक समस्या है-संस्कारों का विस्तरण। भौतिकवाद एवं भोगवादी सभ्यता में डूबे और डूबते जा रहे विश्व को जैनदर्शन ही स्थिर बना सकेगा। इसके शुभ लक्षण ये हैं कि आज वह जगत् जिसने विषय-वासना को ही जीवन का सुख माना था वह भी अध्यात्म की ओर उन्मुख हुआ है। थोड़ा-सा भय भी दृष्टिगत हो रहा है कि भारत जैसे सुसंस्कृत देश भी पश्चिमी भोगवाद से आकर्षित हो रहे हैं। पर, यह भी विश्वास है कि यह क्षणिक अनुकरण का उन्माद समाप्त हो जाएगा। जिस तरह आज विश्व की दूरियां समाप्त हो गई हैं, आज विश्व अति निकट हो गया है, आज हर देश-समाज की गतिविधियां परस्पर को प्रभावित कर रही हैं उसी प्रकार आने वाले कल में पूरा विश्व इन सीमाओं को अतिक्रान्त करके एक समाज का रूप ले लेगा। उस समय संस्कार किसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र के न रहकर वैश्विक बनेंगे। सही अर्थों में "वसुधैव कुटंबकम्' का सूत्र सार्थक होगा। हम जानते हैं कि जहां 'फ्राइड' का काम-विज्ञान समाप्त होता है वहीं से भारतीय संस्कृति का उन्नयन होता है। वह 'कामतृप्ति' को ही सभी विकारों का शमन मानता है जबकि भारतीय संस्कृति में काम की तृप्ति के पश्चात् अध्यात्म की ओर मुड़ने का शुभ प्रयास होता है। वानप्रस्थ आश्रम इसकी उत्तम मिसाल है। इसमें जैनधर्म का "ब्रह्मचर्यव्रत' महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। वास्तव में चारित्रिक विकास ही विश्व-शांति का अमोघ उपाय है। __वर्तमान युग में एक आशास्पद बात यह भी है कि विश्व के अन्य देशों में निवास करने वाले जैन भाईयों में पिछले 15-20 वर्षों में एक चेतना जागी है। वे जहां भी स्थिर हुए हैं वहां मंदिर, स्थानक, जैन केन्द्रों का निर्माण कर जैनधर्म का शिक्षण दे रहे हैं और अहिंसा व शाकाहार का प्रचार कर रहे हैं। परदेश के भौतिकवादी प्रवाह में वे संस्कारों के द्वीप निर्मित कर रहे हैं। इन्हीं द्वीपों पर आनेवाले कल के मानव को राहत मिलेगी, आश्रय मिलेगा। जैनधर्म के चार पुरुषार्थ 'धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष' के अनुसार व्यक्ति अर्थोपार्जन करेगा, संसार भी भोगेगा पर वह धर्म अर्थात् नीति, सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह को सदैव अपनाये रहेगा। उसका ध्येय इनको भी त्याग कर मोक्ष अर्थात् शाश्वत् सुख होगा। आने वाला कल मानव को सुख-शांति अहिंसा, दया, क्षमा, करुणा, विवेक, परस्पर मैत्री, जिओ और जीने की सुविधा देने का युग होगा। विज्ञान की समृद्धि उसे स्वर्ग-भोगभूमि का दैहिक सुख देंगी तो जैन-दर्शन के सिद्धांत उसे मानसिक आध्यात्मिक सुख देंगे। इनके परस्पर संतुलन से ही नए युग की समृद्धि होगी। यह सत्य है कि यह विषय कुछ काल्पनिक है पर वर्तमान युग के प्रवाह, बदलते जनमानस, मानवता के प्रति जागृति इसका संकेत हैं कि व्यक्ति संघर्ष के स्थान पर सहयोग का पक्षधर होगा। __मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आने वाले युग की सुख-शांति-समृद्धि में जैनधर्म की भूमिका अति महत्वपूर्ण होगी। अहमदाबाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014040
Book TitleWorld Jain Conference 1995 6th Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain
PublisherAhimsa International
Publication Year1995
Total Pages257
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size23 MB
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