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प्रागैतिहासिक भारत में समाज सामाजिक मूल्य और परंपराएं
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(स्व.) डॉ जगदीशचन्द्र जैन इस ब्रह्माण्ड में मानव की सृष्टि ने अद्भुत क्रांति मचा दी। उसने अपने अगले पांव उठाकर पिछले पांवों के आधार से चलना शुरू किया। अपने हाथों से वह जी-तोड़ मेहनत करने लगा। बस इतना काफी था।
आदिम मानव के औजारों से अनुमान किया जाता है कि आज से लगभग 5 लाख वर्ष पूर्व वह इस पृथ्वी-मंडल पर आविर्भूत हुआ। 5 लाख वर्ष कुछ कम नहीं होते। पुरा पाषाण-युग में वह हड्डी अथवा पत्थर से औजारों का काम लेता। वेद-ग्रंथों में इन्द्र के वज्रायुध का उल्लेख है जो संभवतः हड्डी अथवा पत्थर का रहा होगा। पुराणों में उल्लेख है कि वृत्र राक्षस का वध करने के लिए दधीचि ऋषि की हड्डियों से बने आयुध का उपयोग किया गया। इसी प्रकार आजमगढ़ और गाजीपुर जिलों में सांप के विषैले नुकीले दांत तथा आरे के आकार की लंबी और पैनी मछली की हड्डियां मिली हैं जिन्हें पाषाण युग की आदिम जातियां अपने बाण की नोंक पर रखकर शिकार किया करती थीं।
आदिम मानव का घर नहीं था, वह खानाबदोश था। भोजन की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमता फिरता था। उत्पादन पर उसका अधिकार नहीं हुआ था। प्रकृति द्वारा प्रदान किए हुए खाद्य-फल-फूल, पौधे, पौधों की जड़ें, कीड़े-मकौड़े आदि द्वारा जीवन-निर्वाह किया करता।
पीकिंग की गुफा में 'पीकिंग मानव' के जो अवशेष प्राप्त हुए हैं, वे हमें आज से 5 लाख वर्ष पूर्व पाषाण-युग की ओर ले जाते हैं। आज से लगभग साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व चीन में कछुए की खोपड़ी को गरम-गरम लोहे की सलाई से दागा जाता और उससे जो खोपड़ी पर दरार पड़ती, उसकी सहायता से भविष्यवाणी की जाती। प्रागैतिहासिक काल की दृष्टि से यह तथ्य कुछ कम महत्वपूर्ण नहीं। भारत में आदिम मानव के अस्तित्व के चिह्न उत्तर-पश्चिमी पंजाब के पहाड़ों की तलहटियों में पाए गए हैं।
पुरातन-काल में भारत का बहुभाग अरण्य, वन और जंगलों से घिरा था। महाभारत में खाण्डव वन के दहन की कथा का उल्लेख है। कुरुक्षेत्र का यह वन इन्द्र के लिए पवित्र था तथा अर्जुन और कृष्ण की सहायता से अग्नि देवता ने इसे जलाकर खाक कर दिया था। मतलब यह कि इस प्रकार जंगलों को जला-जलाकर लोग आवास आदि तैयार किया करते। मगध का प्रदेश भी घने जंगलों से आबाद था। कहा गया है कि आर्यों ने जब पूर्व की ओर प्रस्थान किया तो वे सदानीरा (आधुनिक गंडक) नदी से आगे न बढ़ सके। कारण कि आगे का प्रदेश घने जंगलों से घिरा था। अनेक जातियों के कबीले यहां निवास करते थे।
जाहिर है कि जंगलों में रहने वाली इन आदिम जातियों का जंगल में उगने वाले वृक्ष, पेड़, पौधे, लता, वहां रहने वाले पशु, पक्षी, कीट, पतंग तथा आस-पास के पहाड़, पर्वत, नदी, नाले आदि के साथ घनिष्ठ संबंध था।
भारत के ऋषि-मुनियों, देवी-देवताओं, पवित्र ग्रंथों आदि की नामावलि इस कथन की द्योतक है। ऋषभ, मांडूक्य (उपनिषद्), श्वेताश्वतर (उपनिषद्) तैत्तिरीय (ब्राह्मण), पिप्पलाद, औदुंबर, वत्स, गौतम, काश्यप, कौशिक, वाल्मीकि, ह्यग्रीव, औलक्य, हलायुध, पशुपति, अरण्यानी हनुमंत, गजानन, शुनःशेप, सीता (हल पद्धति) इक्ष्वाकु, मत्सय, कूर्म, वराह आदि अवतार, पार्वर्ती, बंशलता, वृक्षमलिका, शाबरी आदि विद्याएं, तिलोतमा आदि अप्सराएं उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं। इसी प्रकार जैसे नन्दि वृषभ शिव से जुड़ा हुआ है, वैसे ही गरुड़ विष्णु से, हंस सरस्वती से, मूषक गणेश से और मयूर कार्तिकेय से जुड़े हुए हैं। ऐरावत हाथी और ऊँचे कान वाले अथवा उच्च स्वर से हिनहिनाने वाले इन्द्र के घोड़े की गणना मांगलिक पशुओं में की गई है, अतएव उन्हें पूजा-अर्चना के योग्य बताया है। वृषभ,
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