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सिद्धान्त चक्रवर्ती ऐलाचार्य श्री विद्यानन्द जी महाराज
पैठन जनवरी १२, १९८५
मंगल कामना
धर्मानुरागी,
८ से १० फरवरी, १९८५ तक अन्तर्राष्ट्रीय जैन कान्फ्रेंस आयोजित की जा रही है। अहिंसा, विश्व शान्ति और शाकाहार को जो सही दिशा देने का अहिंसा इन्टरनेशनल का प्रयास है वह सफल हो ऐसा शुभाशीवदि है।
नई पीढ़ी का श्रावक समाज धीरे-धीरे अहिंसा एवं शाकाहार में विश्वास खोता जा रहा है। उस विश्वास को पुनः प्रतिष्ठापित करने में आपकी योजना सफल होगी ऐसी हमें पूर्ण आशा है।
करुणा जीव का स्वभाव है। यदि कुछ प्रयास किया जाए तो वह अच्छाइयों को अपना सकता है। इसके साथ-साथ बुद्धिजीवी वर्गों में परधर्म सहिष्णुता के भाव भी जागृत होंगे जिससे राष्ट्र बहुत मज़बूत होगा तथा शान्ति बढ़ेगी। ''अत्ताचेव अहिंसा" आत्मा स्वभाव से ही अहिसक है। चेतना को तनिक जगाने मात्र की आवश्यकता है जिससे कि वह धर्म और अहिंसा की ओर अग्रसर हो सके ।
ऐलाचार्य विद्यानन्द मुनि
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