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अहमदाबाद की एक मस्जिद से उपलब्ध अरबी भाषा में लिखा गया एक अभिलेख भी इस बात की साक्षी दे रहा है। इस मस्जिद का अधिकांश भाग सोलंकी-युग में बांधे जाने का उल्लेख मिलता है । इससे सिद्ध होता है कि मुसलमानों के गुजरात विजय के दो दशक पूर्व ये लोग यहां पर शान्तिपूर्ण ढंग से रहते थे । हमारे यहां जिस समय सोलंकी शासन था, उस समय दक्षिण के शैवपंथी राजाओं ने वैष्णव धर्मानुयायियों से संघर्ष मोल लिया था, इस बात के भी उदाहरण हमें मिलते हैं। लेकिन, गुजरात के किसी भी शैवानुयायी शासक ने ऐसा नहीं किया। संजाण के हिन्दू राजा ने पारसी जनता को संरक्षण प्रदान किया था। यही नहीं, उनके रहने के लिए भूमि दी गयी थी। इसे हम गुजरात के सांस्कृतिक इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना कह सकते हैं । इस प्रकार के परधर्मियों को अपने साथ रहने की इतनी उदारता बरती गयी हो, ऐसे उदाहरण इतिहास में विरल ही हैं। गुजरात की इसी अहिंसा-अस्मिता से गांधीजी ने एक सात्विक बल तैयार किया था और यहां की सहिष्णुता के भीतर से ही उन्होंने जगत को व्यापक धर्म-भावना का संदेश भी दिया था।
गुजरात की ऐसी परधर्म सहिष्णूतावृत्ति को यदि कायरता का प्रतिरूप कहा जाए तो इससे बड़ी भूल और क्या होगी ? हो सकता है कुछ व्यक्ति इसे इस रूप में भी देखें लेकिन इससे गुजरात की अस्मिता को कभी प्रांच नहीं पायी । इसी में हमें सर्वधर्म समभाव की गति दिखायी देती है। इस प्रकार की सहिष्णुता की छत्र-छाया में ही गुजरात, गुजरात के विविध धर्मों एवं धर्मावलम्बियों को गौरव मिला है। वस्तुतः गुजरात की आम जनता अपेक्षाकृत अधिक सूख-शान्ति एवं सुरक्षा का जो अनुभव कर सकी है, उसका श्रेय भी इसी को है।
प्रोफेसर, गुजराती विभाग गुजरात विश्वविद्यालय अहमदाबाद (गुजरात)
जो चरित्रयुक्त है, वह अल्प शिक्षित होने पर भी विद्वान व्यक्ति को मात कर देता है: किन्तु जो चरित्रहीन है, उसके लिए बहुत श्रुतज्ञान से भी क्या लाभ है ?
समरणसुतं, 267
ज्ञान से ध्यान की सिद्धि होती है। ध्यान से सब कर्मों का क्षय होता है, कर्मों के क्षय का फल मोक्ष है; इसलिए ज्ञान का अभ्यास करना चाहिए।
समणसुत्तं, 478
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