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- वस्तुतः अहिंसा और जीवदया की भावना गुजरात की प्रजा में शताब्दियों से घर किये हए हैं। सिद्धान्ततः ही नहीं, वह व्यवहार में भी परिलक्षित होती है। महात्मा गांधी इसी प्रदेश की विभूति थे, जिन्होंने आजादी की लड़ाई अहिंसा की भूमिका पर प्रारम्भ की। अहिंसा और वीरता इन दोनों को कुछ लोग विरोधी मानते थे, लेकिन गांधीजी ने इन्हीं तथाकथित विरोधी बातों को एकत्रित कर एक नया बल पंदा किया था। अहिंसापूर्ण वीरता की लड़ाई लड़ने का एक नया ही संदेश गांधीजी ने हमें सिखाया। बलवतराय ठाकोर ने इसी भावना का उल्लेख अपनी निम्न पंक्तियों में किया है
'छे जंग सात्विक बलो प्रकटाववानो,
चारित्र्य सौम्य व्रत साधु खिलववानो।' सामने वाले को आहत किये बगैर ही उससे विजयी होने का प्रयोग, जिसे बुद्ध और महावीर ने प्रशस्त किया था, गांधीजी ने सिद्ध कर दिखाया। सच तो यह है कि समूचे गुजरात की अहिंसा एवं करुणापूण संस्कृति का सत्व सामर्थ्य और पौरूष से पूर्ण है। अशोक के शिलालेखों में धर्माज्ञाएं यद्यपि टंकित तो हुई देश के अनेक भागों में, लेकिन वे अंकुरित और पल्लवित हुई गुजरात के जन-जीवन में ही।
सुसंस्कृत व्यक्ति का एक अन्य बड़ा पुरूषार्थ है कि वह पारस्परिक विचारों, रुखों एवं मान्यताओं के प्रति सहिष्णू बने । गुजरात में इस तरह के परधर्म या परप्रजा के प्रति सहिष्णुता-भाव व्यापक रूप में दृष्टिगत होता है । स्वयं को परम माहेश्वर कहलाने वाले अनेक मैत्रक राजामों मे बौद्ध विहारों को खुले हाथों दान दिया। सोलंकी राजवंशियों ने अपने नाम के आगे "उमापति-वरलब्धप्रसाद" का विरुद तो लगाया, पर सोलंकी युग के ही संस्थापक मूलराज ने जैन स्थान और उनके सुपूत्र चामुण्ड ने वीरगणि नामक जैन साधू को आचार्यपद से सुशोभित किया था, इस बात का भी उल्लेख मिलता है। और, एक ऐसा उल्लेख भी प्राप्त होता है कि सिंहराज ने विष्णु मंदिर बंधवाया और नेमिनाथ का अनुष्ठान किया। यही नहीं, श्री हेमचन्दाचार्य सोमनाथ के मंदिर में महादेव-शंकर की उपासना करते पाये जाते हैं । महाराजा कुमारपाल परममाहेश्वर होने के साथ ही परमार्हत की उपाधि भी धारण करते हैं। चित्तौड़ से प्राप्त लेख के आधार पर दिगम्बर प्राचार्य रामकीति ने प्रारम्भ में शिव-स्तुति ही की थी। वस्तुपाल-तेजपाल द्वारा मस्जिद बंधवाने और सोमनाथ की उपासना करने के भी संकेत प्राप्त होते हैं । जगडूशाह का चरित्रांकन करने वाले बेधड़क इस तथ्य को प्रस्तुत करते हैं कि सन्तान-प्राप्ति के लिए उन्होंने हिन्दू देवों की पूजा की थी। भयंकर अकाल से प्रजा को बचाने वाले जगडूशाह ने मस्जिद बंधवायी। बाधेलावंशीय अर्जुनदेव के समय का एक अभिलेख वेरावल से प्राप्त हुमा है, जिससे ज्ञात होता है कि सोमनाथ जैसे धर्म स्थान में भी परमियों के लिए कितनी उदारता बरती जाती थी। नाखुदा पीरोज ने सोमनाथ देव के नगर के बाहरी हिस्से में मस्जिद बंधवायी थी। यही नहीं, उसकी व्यवस्था का भार मुस्लिम जाति के जिम्मे ही सौंपा गया था। कुछ समय पूर्व ही जिस प्रजा का हृदय इतना प्रौदार्यपूर्ण दिखायी दे, यह सचमुच हमारे समाज को प्रतिबिम्बित करने वाला आईना है। जैन संस्कृति के अनेकान्तवाद द्वारा दी गयी परम सहिष्णुता और सभी दिशानों से सत्य को स्वीकार करने वाली मनोवृत्ति ने इसमें महत्तम योगदान दिया है, इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता।
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