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चौर्य (अस्य) व्रत आधुनिक सन्दर्भ में
लेखक ने साहस एवं धैर्य बटोर कर अचौर्य व्रत को जीवन में उतारने की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है। आज के ऊँचे जीवन स्तर की चर्चा, प्रदर्शन और प्रदर्शन के वातावरण में जहां व्यक्ति का लोभ सामाजिक, धार्मिक और कानून की मर्यादायें तोड़ रहा है, लेखक की अचौर्य की चर्चा अरण्य रोदन से अधिक अर्थ नहीं रखेगी यह जानते हुए भी लेख हम प्रकाशित कर रहे हैं क्योंकि जीवो और जीने दो का महावीर का नारा बिना अचौर्य के सार्थक नहीं हो सकता -सम्पादक
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अचौर्य, चौर्य या चोरी शब्द का प्रतिकारी है । वर्तमान में चोरी की व्यधि से व्याक्ति ही नहीं किन्तु समाज एवं राष्ट्र व्यापक रूप से प्रभावित एवं पीड़ित है । वर्तमान में चोरी का कृत्य सभ्यता एवं आधुनिकता का प्रतीक तथा जीवन का सर्वव्यापी अंग बन गया है । भ्रष्टाचार, चोर बाजारी, मिलावट कर वंचन, शोषण एवं काले धन की समस्याओं से राष्ट्र के समान्य जन जीवन की गति ठित हो रही है । आर्थिक ढांचा चरमरा रहा है, उसकी धुरी कब और कहां टूट जाये कुछ कल्पना नहीं की जा सकती । श्रात्मिक शुद्धता का लक्ष्य तो दूर रहा सामान्य नैतिकता एवं सोजन्य पूर्ण ध्यवहार से हम कोसों दूर भटक गये हैं ।
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DO डा० राजेन्द्रकुमार बंसल कार्मिक अधिकारी
हुआ करती थी । सार्वजनिक उपयोग से सम्बन्धित सम्पत्ति जो कि समूह के हितों को प्रभावित करती थी, के प्रति व्यक्तियों का दृष्टिकोण पवित्र रहता था । इसी प्रकार साहित्य, कला, विचार एवं संस्कृति आदि का क्षेत्र चोरी के प्रभाव से अछूता था । किन्तु अब ज्यों-ज्यों आधुनिक सभ्यता का विस्तार एवं प्रसार हो रहा है और व्यक्तिवादी दृष्टिकोण का बोलबाला होता जा रहा है। सार्वजनिक सम्पत्ति कला, साहित्य एवं संस्कृति की चोरी व्यापक रूप से बिना किसी संकोच के की जाने लगी है जिसके दुष्परिणाम अब हमारे समक्ष आ चुके हैं।
चोरी आधुनिक जगत की एक प्रमुख समस्या है । इसका क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है । जीवन का कोई ऐसा अंग नहीं जो चोरी के भाव एवं कृत्य से प्रभावित नहीं हुआ हो। पहले चोरी व्यक्तिगत धन सम्पत्ति आदि मूत्तं एवं भौतिक वस्तुओं की ही
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"जीवन की आवश्यकतएं बिना चोरी एवं बेईमानी के पूर्ण नहीं सो सकती" यह कथन प्रायः सुनने में आता है । उद्योग, व्यापार, व्यक्तिगत पेशा या नौकरी प्रादि प्रथपार्जन के समस्त साधन चोरी के पर्यायवाची बन गये हैं। जो जहां कार्यरत है किसी न किसी प्रकार ऐसे साधन खोजने में
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