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________________ मिलता है अर्थात् यमराज का घर। अपभ्रंश मुह के लिए प्राकृत तुड मराठी तोंड में यही जउहर के रूप में प्रयुक्त है तथा वही सीदी के लिए प्राकृत दद्दर मराठी दादर राजस्थानी में जौहर हो गया। ___ इसी तरह भारत की अन्य आधुनिक भाषाओं - राजस्थानी एवं गजराती भाषाओं पर प्राकृत- के साथ प्राकृत का केवल विकास की दृष्टि से ही अपभ्रश का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है। सम्बन्ध नहीं है, अपितु प्राकृत के शब्दों का वर्तकई विद्वानों ने इस पर विशेष प्रकाश डाला है। मान में उनमें प्रयोग भी होता है। भोजपूरी, कुछ उदाहरण यहां द्रष्टव्य है। मेवाड़ी में कई है, मैथली, बंगला, उड़िया, सिंधी एवं पंजाबी भाषाओं मारवाड़ी में कंइ हो, ढढ़ाड़ी में कांई छ आदि ने भी प्राकृत-अपभ्रश से अनेक प्रभावों को ग्रहण प्रयोगों में कई शब्द प्राकृत कानि एवं अपभ्रंश किया है । अतः प्राकृत भाषा का वर्तमान युग में कांइ का रूपान्तर है प्राकृत की कई क्रियाएं शिक्षण एवं अध्ययन होने से भारतीय संस्कृति की राजस्थानी में थोडे परिवर्तन के साथ प्रयुक्त होती। विरासत का तो पता चलेगा ही, साथ ही देश में हैं। यथा भाषायी समन्वय का वातावरण भी बनेगा। देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए बनाता है के लिए प्राकृत घड़इ राज० धड़े प्राकृत का शिक्षण दृढ़ भूमिका तैयार कर मांगता है के लिए प्राकृत जांचइ राज० जांचे सकता है। होगा-के लिए प्राकृत होसइ राज० होसी हिन्दी में प्राकृत के अनेक शब्द एवं क्रियाएं प्रसिद्ध विद्वान् एल० पी० टेसीटरी ने राज यथावत आज भी प्रयुक्त होती हैं। प्राकृत के कुछ स्थानी एवं गुजराती भाषाओं के स्वरूप पर प्राकृत शब्दों के हिन्दी अर्थ प्रस्तुत हैं । जैसेके प्रभाव को विशेष रूप से स्पष्ट किया है। गुजराती में प्राकृत के किम एवं इम सर्वनाम अक्खाड़ =अखाड़ा डोरे डोरा केम छ, एम छै आदि रूप में प्रयुक्त होते हैं। कई उक्खल=ोखली बप्प बाप गुजराती शब्द सीधे प्राकृत से ग्रहण किये गये कोइला---कोयला बइल्ल-बैल हैं। जैसे स्नान के लिए प्राकृत अंगोहल गज० खड्डा खड्डा बड्डा-बड़ा चोक्ख-चौखा पत्तल-पतला छइल्लो=छैला साडी=साड़ी गहरा के लिए-प्राकृत उण्डा गज० उण्डा लड़का के लिए प्राकृत छोयरा गुज० छोकरा यही स्थिति हिन्दी क्रियाओं की है। जैसेमुर्गी के लिए -प्राकृत कुक्कड़ी गुज० कूकड़ी । कड्ढ= काढ़ना खेल-खेलना मराठी भाषा का प्राकृत से घनिष्ठ सम्बन्ध चुक्क= चूकना छुट्ट=छूटना है। जो शब्द 5-6वीं शताब्दी में प्राकृत-साहित्य देख-देखना बोल्ल=बोलना में प्रयुक्त होते थे वे आज भी मराठी भाषा में न केवल हिन्दी भाषा और प्राकृत में कई बोले जाते हैं । जैसे समानताएं हैं, अपितु प्राकृत साहित्य और हिन्दी करधनी के लिए प्राकृत कच्छोट मराठी कासोटा साहित्य की कई विधानों में भी घनिष्ठ सम्बन्ध पत्थर के लिए प्राकृत गार मराठी गार है । प्राकृत कवियों की कई अनुभूतियां हिन्दी में कीचड़ के लिए प्राकृत चिक्खल मराठी चिखल देखने को मिलती हैं। प्राकृत गाथा सप्तशती की अंघोल 3/15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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