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________________ देखा तो महावीर से पूछने लगा। महावीर पूर्ववत् आध्यात्म-जगत् में विचरण करने के सम्मुख नगण्य मौन ही रहे । उसने आव देखा न ताव । वह सी थी । शारीरिक वेदना के वे एक दृष्टा मात्र महावीर को क्रोध में कितने ही ऐसे शब्द कह गया थे । गीता में स्पष्ट कहा हैजो शिष्टता से युक्त कदापि नहीं कहे जा सकते । ___"मात्रास्पर्शस्तु कौन्तेय !" इतना ही नहीं महावीर को निर्दयतापूर्वक मारने भी लगा। इतना होने पर भी महावीर जब शांत दुःख-सुख तो केवल इन्द्रियजन्य है। इन्द्रियों पर तथा मौन धारण किये हुए थे कि इन्द्र वहां आ ही जिनने विजय प्राप्त कर ली तो फिर वेदना गया और उस ग्वाले को समझाया तथा महावीर नाम वाली वस्तु रह भी कहां गई। महावीर की सेवा में रहने के लिए इन्द्र स्वयं कटिबद्ध हुआ वस्तुतः शरीर के क्रीतदास नहीं थे अपितु शरीर तो महावीर ने उत्तर दिया कि दूसरों के बल पर उनका दास था अतः अपनी समता-साधना के पथ साधना साधना नहीं कही जा सकती। कहा भी पर अडिग रूप से निरन्तर चलते ही रहे । इस गया है-"स्ववीर्येणैव गच्छन्ति जिनेन्द्राः परमं पद” भांति अनेकों बाधायों एवं कष्टों को सहन करते तदनन्तर इन्द्र स्वस्थान पर चला गया। हुए अपनी समता-साधना के शिखर पर चढ़ कर ___ शुक्ल ध्यान में अवस्थित होते हुए उनने समस्त एक बार फिर वैसी ही घटना महावीर की कर्मसंबंधी वासना को नष्ट कर ही दिया । तदनन्तर साधना में घटी। एक ग्वाल ने क्रुद्ध होकर उनके केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त करते हुए कर्ण-कुहरों में काष्ठ की कीलें ठोक दी क्योंकि वे सम्पूर्ण विश्व के चराचर पदार्थों को हस्तामलकवत् उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दे रहे थे । उस कर दिया। समता की साधना शक्ति के बल पर मूर्ख को क्या पता कि वे ध्यानावस्थित होकर मौन खड़े हैं। ग्वाला ने सोचा कि इसको पूरा ही। उपदेशामृत के द्वारा समस्त व्यक्तियों को पावन बधिर क्यों नहीं कर दिया जाय । महावीर को बनाया । उनका यह ही कल्याणकारी उपदेश उन काष्ठ की खूटियों के ठोके जाने से कितनी थापीड़ा हुई होगी फिर भी वे मौन ही खड़े रहे । यह है तितिक्षा की चरम सीमा ! यह है क्षमा की स्पष्ट कल्पतरु है संयम जग में, परिभाषा! त्याग अमरता का फल है । चेतना में अनुभूति की शून्यता हो गई थी यह समता पर आधारित ये ही, बात भी नहीं थी किन्तु वेदना की उनकी अनुभूति समता बिन सब निष्फल है ।। मूढन में मुखिया जो बिनु ज्ञान क्रिया अवगाहे, जो बिनु क्रिया मोख पद चाहे । जो बिनु मोख कहे मैं सुखिया, सो अजान मूढ़न में मुखिया ।। __-महाकवि बनारसीदास महषीर जयन्ती स्मारिका 76 1-19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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