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________________ जाने पर न केवल उसने उदयसिंह को शरण ही दी 6 पं० चैनसुखदास न्यायतीर्थ (सन् 1900 से अपितु उसने बनवीर से युद्ध कर उसे सिंहासन पर 1969)-भावना विवेक, जैनदर्शनसार, बिठाया । महाराणा तेजसिंह की रानी अहित प्रवचन, प्रवचनसार आदि कई स्वतन्त्र और महाराण। समरसिंह की माता की जैनधर्म और संग्रह ग्रंथों के रचनाकार तथा जैन पर अटूट श्रद्धा थी। इतिहास रत्न डॉ० ज्योति- दर्शन, जैन बन्धु, वीरवाणी पत्रों के सम्पादक प्रसाद के अनुसार उसने चित्तौड़ दुर्ग के पार्श्वनाथ सुप्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान् । के सुन्दर मंदिर के अतिरिक्त और भी कई स्थानों 7 पं० भंवरलाल पोल्याका जनदर्शनाचार्य पर जैन मन्दिर बनवाये थे । साहित्यशास्त्री--महावीर जयन्ती स्मारिका ___अनेकान्त वर्ष 10 के पृष्ठ 196 पर डॉ. और वीर निर्वाण स्मारिका के सम्पादक । कस्तूरचन्द्र कासलीवाल ने अपने लेख 'ग्रंथ और 8 डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल-अध्यक्ष साहित्य ग्रंथकारों की भूमि राजस्थान' में सच ही लिखा है शोध विभाग श्री महावीरजी ग्रंथ सूचियों कि राजस्थान ग्रंथागारों और जैन ग्रंथकारों की आदि के सम्पादक । भूमि है जहां 200 से अधिक ग्रंथ भण्डार हैं जिनमें 9 डॉ. कैलाशचन्द जैन रीडर विक्रम वि. विद्यालय सभी विषयों के ग्रंथों का विशाल संग्रह है । यहां राजस्थान में जैन धर्म और राजस्थान के नगरों के विद्वान् समस्त भारत में प्रसिद्ध हैं जिनमें से कुछ का सांस्कृतिक अध्ययन' ग्रंथों के तथा कई निम्न हैं निबन्धों के लेखक प्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान् । 1 प्राचार्यकल्प पं० टोडरमलजी-(1740 से 10 प्राचार्य हस्तीमलजी-'जनधर्म का मौलिक 1770) भारत प्रसिद्ध विद्वान् थे । दूर-दूर के इतिहास भाग 1 व 2 के लेखक व निर्देशक । लोग इनसे अपनी शंकाओं का समाधान प्राप्त 11 डॉ० हुकमचन्द भारिल्ल न्यायतीर्थ शास्त्री करते थे। मोक्ष मार्ग प्रकाशक के लेखक पं० टोडरमल स्मारक भवन, जयपुर कई ये ही थे जिसकी हजारों प्रतियां कई भाषाओं पुस्तकों के लेखक । में अनूदित होकर अब तक छप चुकी हैं। 12 इतिहासरत्न श्री अगरचन्द नाहटा बीकानेर2 पं० जयचन्दजी छाबड़ा (जन्म 1748 ई०) हजारों लेखों के लेखक । समयसार आदि कई ग्रंथों के टीकाकार । दीवान 13 स्व० डॉ० नेमिचन्द ज्योतिषाचार्य--पारा । अमरचन्दजी के समकालीन । 14 पं० भंवरलाल न्यायतीर्थ वीरवाणी . के 3 4. दौलतराम कासलीवाल (1688 से सम्पादक। 1773)--हरिवंशपुराण, पद्मपुराण आदि स्थानाभाव से विस्तार से लिखने में असमर्थ ___ 18 ग्रंथों के टीकाकार। हैं ।विस्तृत जानकारी के लिए वायस आफ अहिंसा 4 पं० सदासुखजी (1795-1866)-रत्नकरण अलीगंज वर्ष 12 पृष्ठ 54 से 58 देखें। श्रावकाचार वचनिका मादि के कर्ता । . राजस्थान में अतिशय क्षेत्रों की भी बहुत बड़ी 5 भट्टारक सकलकीर्ति (12 वीं शताब्दि)- संख्या है जिनमें श्री महावीरजी' केसरियाजी, आदिनाथ पुराण, शांतिनाथ पुराण, महावीर पद्मपुरा, तिजारा, चांदखेड़ी आदि प्रसिद्ध हैं जिनका पुराण आदि कई ग्रंथों को रचनाकार प्रसिद्ध प्रत्येक का अपना अपना इतिहास है जिसके लिए सन्त । एक स्वतन्त्र ही लेख की आवश्यकता है। . 1. टाड : अनल्स और एण्टीक्वीटीज आफ राजस्थान वाल्यूम I पृष्ठ 245-246 । . 2-76 महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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